सूर्य उपासना त्वरित फलवती || Vaibhav Vyas


 सूर्य उपासना त्वरित फलवती

सूर्य की उपासना त्वरित फलवती होती हैं। श्रीकृष्ण के पुत्र सांब की सूर्योपसना से ही कुष्ठ रोग से निवृत्ति होने की कथा भी प्रसिद्ध हैं। सूर्य ब्रह्मण्ड की क्रेन्द्रीय शक्ति हैं । यह सम्पूर्ण सृष्टि का गतिदाता हैं। इसे जगत को प्रकाश ज्ञान, ऊर्जा, ऊष्मा और जीवन शक्ति प्रदान करने वाला व रोगाणु, कीटाणु (भूत-पिचाश आदि) का नाशक कहा गया है।

ज्योतिष शास्त्र में इसे कालपुरूष की आत्मा और नवग्रहों में सम्राट कहा गया हैं। रविवार सूर्य भगवान का प्रमुख दिन कहलाता है। भारतीय संस्कृति में सूर्य को मनुष्य के श्रेय व प्रेय मार्ग का प्रवर्तक भी माना गया हैं। कहा जाता हैं कि प्रत्यक्ष देव सूर्य की उपासना त्वरित फलवती होती हैं। भगवान राम के पूर्वज सूर्यवंशी महाराज राजधर्म को सूर्य की उपासना से ही दीर्ध आयु प्राप्त हुई थी।

हिन्दू धर्म के अनुसार नवग्रहों में सर्वप्रथम ग्रह सूर्यदेव हैं, जिन्हें पिता के भाव कर्म का स्वामी माना गया हैं। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार नेत्र, सिर, दांत, नाक, कान, रक्तचाप, अस्थिरोग, नाखून, हृदय पर सूर्य का प्रभाव होता हैं और इनमें होने वाली तकलीफें व्यक्ति की जन्मकुण्डली में सूर्य के अनिष्टकारी होने पर ही होती हैं। माना जाता है कि पिता-पुत्र के संबंधों में विशेष लाभ के लिए सूर्य साधना पुत्र को करनी चाहिए। मान्यता है कि यदि कोई सूर्य का जाप, मंत्र पाठ प्रति रविवार को 11 बार कर ले तो व्यक्ति यशस्वी होता हैं। साथ ही प्रत्येक कार्य में उसे सफलता मिलती हैं। संक्रांति का दिन सूर्य साधना के लिए सूर्य की प्रसन्नता में दान पुण्य देने के लिए सर्वोत्तम हैं।

सूर्य की उपासना के लिए मंत्रों की साधना शीघ्र फलदायी मानी गई है।

सूर्य मंत्र- ऊँ सूर्याय नम:।

ऊँ ह्यं हृीं हृौं स: सूर्याय नम:।

ऊँ जुं स: सूर्याय नम:।

सूर्य का पौराणिक मंत्र-

जपाकुसुम संकाशं काश्यपेयं महाद्युतिम।

तमोहरि सर्वपापघ्नं प्रणतोडस्मि दिवाकरम्।

सूर्य गायत्री मंत्र-

ऊँ आदित्याय विदमहे प्रभाकराय धीमहितन्न: सूर्य प्रचोदयात्।

ऊँ सप्ततुरंगाय विद्महे सहस्त्रकिरणाय धीमहि तन्नो रवि: प्रचोदयात्।

ऐसी मान्यता है कि सूर्य मंत्र 'ऊँ सूर्याय नम: व्यक्ति चलते-चलते, दवा लेते, खाली समय में यानि कभी भी करता रहे तो इससे लाभ मिलता है। जिससे सूर्य देव की प्रसन्नता मिलती ै और यश प्राप्त होता हैं। रोग शांत होते हैं। प्रतिदिन सूर्योदय के समय अघ्र्य मंत्र से अघ्र्य देने पर यश-कीर्ति, पद-प्रतिष्ठा पदोन्नति होती हैं । नित्य स्नान के बाद एक तांबे के लोटे में जल लेकर उसमें थोड़ा सा कुमकुम मिलाकर सूर्य की ओर पूर्व दिशा में देखकर दोनों हाथों में तांबे का लोटा लेकर मस्तक तक ऊपर करके सूर्य को देखकर अध्र्य जल चढाना चाहिए।

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