अमावस्या पर करें पितरों का श्राद्ध-तर्पण || Vaibhav Vyas


 अमावस्या पर करें पितरों का श्राद्ध-तर्पण

पितरों का आभार व्यक्त करने के लिए अमावस्या अत्यन्त शुभ तिथि मानी जाती है। इसी वजह से इस शुभ तिथि में पितरों का श्राद्ध और तर्पण करने का विशेष महत्व होता है। पितरों को श्राद्ध-तर्पण देने से पितृदोष से मुक्ति मिलती है और साथ ही ऐसा करने से पितर प्रसन्न होते हैं और आशीर्वाद देते हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार अमावस्या के दिन स्नान और दान करने का विशेष महत्व होता है।
अमावस्या के दिन सुबह उठकर स्नान करें और पितरों का क्षाद्ध करें। संभव हो तो किसी नदी-सरोवर पर स्नान और तर्पण विशेष फलदायी माना गया है। इसके बाद ब्राह्माणों को घर बुलाएं और भोजन कराएं। इसके बाद दक्षिणा देकर विदा कराएं। इसके अलावा श्राद्ध का भोजन गाय, कुत्ते और कौए को भोजन कराना चाहिए। पितरों को प्रसन्न करने के लिए गरीब व्यक्तियों को भोजन कराएं, ऐसा करने से घर की आर्थिक स्थिति बेहतर होती है। अमावस्या के दिन घर के ईशान कोण में पूजा करें और गाय के घी का दीपक जलाएं. ऐसा करने से आपकी सभी परेशानियां दूर जाएंगी।
अमावस्या के दिन अगर कोई व्यक्ति दान- दक्षिणा लेने आता है तो उसे खाली हाथ नहीं लौटाना चाहिए। इस दिन कोई व्यक्ति आपके घर खाना मांगने आता है तो खाली पेट नहीं जान दें, ऐसे लोगों को आटा- चावल का दान करना चाहिए. अमावस्या के दिन मांस- मंदिरा और प्याज लहसुन खाने से परहेज करना चाहिए, ऐसा करने से पितृदोष लगता है इसलिए इन चीजों को नहीं खाना चाहिए। अमावस्या के दिन बाल और नाखून नहीं काटने चाहिए।
अमावस्या और पूर्णिमा ये दोनों पर्वतिथियां मानी गई हैं। अमावस्या और पूर्णिमा इन दोनों तिथियों में पृथ्वी, चन्द्र और सूर्य तीनों समसूत्र (एक ही लाइन) में होते हैं। अमावस्या में चन्द्रमा पृथ्वी और सूर्य के बीच में होता है। चन्द्रमा का जो अंश पृथ्वी की ओर होता है, उसमें सूर्य किरण का स्पर्श न होने से उस दिन चन्द्रमा नहीं दिखता है। जब चन्द्रमा क्षीण होकर नहीं दिखता, उस तिथि को 'अमावस्याÓ कहते हैं।
अमावस्या के दिन सूर्य की सहस्त्र किरणों में प्रमुख अमा यानी अमावस्या नाम की किरण इस दिन चन्द्रमा में निवास करती है। चन्द्रमा मन का स्वामी है। यह मनोबल बढ़ाने और पितरों का अनुग्रह प्राप्त कराने में सबसे ज्यादा सहायक होता है। अमावस्या और पूर्णिमा इन दोनों तिथियों में चन्द्रमा का विशेष प्रभाव पृथ्वी पर होता है जिससे पृथ्वी पर रहने वाले जीवों के शरीर व मन दोनों ही अस्वस्थ और चंचल हो सकते हैं। इससे बचने के लिए अमावस्या और पूर्णिमा इन दोनों तिथियों में दान-पुण्य व व्रत आदि करने का विधान है।

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