प्रदोष व्रत में प्रदोष काल में करें पूजा || Vaibhav Vyas


 प्रदोष व्रत में प्रदोष काल में करें पूजा

प्रदोष व्रत की पूजा प्रदोष काल में की जाती है। प्रदोष काल संध्या के समय सूर्यास्त से लगभग 45 मिनट पहले शुरू हो जाता है। प्रदोष व्रत की पूजा में पुष्प, पंच फल, पंच मेवा, रत्न, सोना, चांदी, दक्षिणा, पूजा के बर्तन, कुशासन, दही, शुद्ध देशी घी, शहद, गंगा जल, पवित्र जल, पंच रस, इत्र, गंध रोली, मौली जनेऊ, पंच मिष्ठान्न, बिल्वपत्र, धतूरा, भांग, बेर, आम्र मंजरी, जौ की बालें,तुलसी दल, मंदार पुष्प, गाय का कच्चा दूध, ईख का रस, कपूर, धूप, दीप, रूई, मलयागिरी, चंदन, शिव व मां पार्वती की श्रृंगार की सामग्री आदि होनी चाहिए।

प्रदोष व्रत की पूजा विधि-विधान से करने के लिए सुबह जल्दी उठकर स्नान कर लें। स्नान करने के बाद साफ-स्वच्छ वस्त्र पहन लें। घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें। अगर संभव है तो व्रत करें। भगवान भोलेनाथ का गंगा जल से अभिषेक करें। भगवान भोलेनाथ को पुष्प अर्पित करें। इस दिन भोलेनाथ के साथ ही माता पार्वती और भगवान गणेश की पूजा भी करें। किसी भी शुभ कार्य से पहले भगवान गणेश की पूजा की जाती है। भगवान शिव को भोग लगाएं। इस बात का ध्यान रखें भगवान को सिर्फ सात्विक चीजों का भोग लगाया जाता है। भगवान शिव की आरती करें। इस दिन भगवान का अधिक से अधिक ध्यान करें।

प्रदोष व्रत में भगवान शिव की उपासना की जाती है। यह व्रत शुभ व महत्वपूर्ण व्रतों में से एक है। प्रदोष के दिन भगवान शिव की पूजा करने से व्यक्ति के पाप धूल जाते हैं और उसे मोक्ष प्राप्त होता है। प्रदोष को प्रदोष कहने के पीछे एक कथा जुड़ी हुई है। चंद्र को क्षय रोग था, जिसके चलते उन्हें मृत्युतुल्य कष्ट हो रहा था। भगवान शिव ने उस दोष का निवारण कर उन्हें त्रयोदशी के दिन पुन:जीवन प्रदान किया, इसलिए इस दिन को प्रदोष कहा जाने लगा। प्रत्येक माह में जिस तरह दो एकादशी होती हैं, उसी तरह दो प्रदोष भी होते हैं। प्रदोष व्रत से मिलने वाले फल- अलग-अलग वारों के अनुसार प्रदोष व्रत के लाभ प्राप्त होते है। जैसे- रविवार को पडऩे वाले प्रदोष व्रत से आयु वृद्धि तथा अच्छा स्वास्थ्य लाभ प्राप्त किया जा सकता है। सोमवार के दिन त्रयोदशी पडऩे पर किया जाने वाला व्रत आरोग्य प्रदान करता है और इंसान की सभी इच्छाओं की पूर्ति हो मंगलवार के दिन त्रयोदशी का प्रदोष व्रत हो तो उस दिन के व्रत को करने से रोगों से मुक्ति व स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होता है। बुधवार के दिन प्रदोष व्रत हो तो, उपासक की सभी कामनाओं की पूर्ति होती है। गुरुवार के दिन प्रदोष व्रत पड़े तो इस दिन के व्रत के फल से शत्रुओं का विनाश होता है। शुक्रवार के दिन होने वाला प्रदोष व्रत सौभाग्य और दाम्पत्य जीवन की सुख-शांति के लिए किया जाता है।  संतान प्राप्ति की कामना हो तो शनिवार के दिन पडऩे वाला प्रदोष व्रत करना चाहिए।

इस व्रत में दो समय भगवान शिव की पूजा की जाती है, एक बार सुबह और एक बार शाम को सूर्यास्त के बाद, यानी कि रात्रि के प्रथम पहर में, शाम की इस पूजा का बहुत महत्व है, क्योंकि सूर्यास्त के पश्चात रात्रि के आने से पूर्व का समय प्रदोष काल कहलाता है। प्रदोष व्रत का उद्यापन- इस व्रत को ग्यारह या फिर 26 त्रयोदशियों तक रखने के बाद व्रत का उद्यापन करना चाहिए। व्रत का उद्यापन त्रयोदशी तिथि पर ही करना चाहिए। उद्यापन से एक दिन पूर्व श्री गणेश का पूजन किया जाता है। पूर्व रात्रि में कीर्तन करते हुए जागरण किया जाता है। ऊँ उमा सहित शिवाय नम: मंत्र का एक माला यानी 108 बार जाप करते हुए हवन किया जाता है। हवन में आहुति के लिए खीर का प्रयोग किया जाता है। हवन समाप्त होने के बाद भगवान भोलेनाथ की आरती की जाती है और शांति का पाठ किया जाता है। अंत में दो ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता है और अपने सामथ्र्य अनुसार दान-दक्षिणा देकर आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है।

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