अमावस्या पर स्नान और दान-पुण्य का विशेष महत्व || Vaibhav Vyas


 अमावस्या पर स्नान और दान-पुण्य का विशेष महत्व

किसी भी माह के कृष्ण पक्ष की 15वीं तिथि को अमावस्या होती है। पौष माह की अमावस्या के दिन नदी स्नान, दान आदि का विशेष महत्व होता है। इस दिन पितृ दोष से मुक्ति के लिए विशेष उपाय किए जाते हैं। जिनसे पितृ दोष का निवारण होकर घर परिवार में सुख-समृद्धि और शांति का वास होने लगता है साथ ही छोटी-छोटी बाधाएं दूर होकर मानसिक संतुष्टि मिलने वाली रहती है। पंचांग के अनुसार, पौष माह के कृष्ण पक्ष की अमवास्या तिथि का प्रारंभ 02 जनवरी को तड़के 03 बजकर 41 मिनट पर हो रहा है और इसका समापन 02 जनवरी को ही देर रात 12 बजकर 02 मिनट पर होगा। ऐसे में अमावस्या तिथि सूर्योदय पूर्व ही 02 जनवरी से प्रारंभ हो रही है, इसलिए अमावस्या की उदयातिथि 02 जनवरी को ही को है।

इस बार पौष अमावस्या के दिन सर्वार्थ सिद्धि योग भी बन रहा है जिससे इस योग में की गई पूजा-उपासना, दान-पुण्य और स्नानादि का महत्व और अधिक बढ़ जाता है। किसी नदी-सरोवर में स्नान करने के पश्चात् दान-पुण्य की महिमा शास्त्रों में बताई गई है। जिससे समस्याओं का निवारण होता है साथ ही सिद्ध योग में किया गया धार्मिक कार्य शीघ्र और शुभ फलदायी होता है और जीवन में सफलता और कार्य सिद्धि का योग बनने वाला होता है।

पौष अमावस्या के दिन प्रात:काल नदी स्नान करने का विशेष महात्म्य कहा गया है। स्नान के बाद गरीबों को उनकी जरूरत की वस्तुएं दान करें। शास्त्रों में अमावस्या के दिन अन्न, वस्त्र, सोना और गाय का दान का विशेष महत्व बताया गया है। पूरी श्रद्धा निष्ठा से किया गया दान-पुण्य मानसिक संतुष्टि प्रदाता भी माना गया है।

पौष अमावस्या के दिन स्नान और दान के बाद पितरों का स्मरण करें। उनके लिए तर्पण, पिंडदान, श्राद्ध आदि करना चाहिए। अमावस्या के दिन पितरों को तृप्त करने के लिए ये सब किया जाता है, ताकि पितर खुश हों और आपको सुखी एवं समृद्ध जीवन का आशीर्वाद दें। ऐसा करने से जाने-अनजाने पितृ दोष से भी मुक्ति मिलती है। पितरों के लिए श्राद्ध कर्म मुहूर्त के अनुसार दोपहर में 11.30 बजे से लेकर दोपहर 02.30 बजे तक करना विशेष फलदायी रहता है। पितरों के तर्पण-श्राद्ध कर्म के बाद किसी ब्राह्मण को भोजन करना और उसे यथासंभव दान-पुण्य देने से फलों में और वृद्धि होने वाली मानी गई है। पितरों के निमित्त किए जाने वाले कर्मकांड स्वयं नहीं कर सकें तो किसी योग्य ब्राह्मण से उचित विधि-विधान से यह कार्य सम्पन्न करवाना चाहिए, जिससे उसका सही और शीघ्र फल प्राप्त किया जा सके। किसी भी तिथि विशेष को विशेष संयोग बनने से कार्य शीघ्र फलदायी होने वाला होता है। ऐसे ही पौष अमावस्या पर सर्वार्थ सिद्धि योग बनने के कारण इस समय विशेष में की पूजा-उपासना, दान-पुण्य और पितर तर्पण शीघ्र फलदायी होकर परिणाम देने वाले होते हैं।

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