बुध का वक्री होना शक्ति प्रदान करता || Vaibhav Vyas


 बुध का वक्री होना शक्ति प्रदान करता

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार बुध को ज्ञान, विवेक एवं धन-संपदा का कारक माना गया है एवं इस ग्रह का वक्री होना कई तरह से शक्ति प्रदान कर सकता है। बुध के वक्री होने पर व्यक्ति को छठी इंद्रिय जैसा ज्ञान प्राप्त होता है और वह दूरदर्शी बनाता है। इसके प्रभाव से रहस्यमयी विद्याओं में रुचि बढऩे लगती है। अगर किसी व्यक्ति के जन्म के समय बुध वक्री हो तो वह संकेत और अंतर्दृष्टि की भाषा को समझने में निपुण बनता है। 

बुध के वक्री होने की पांच अवस्थाएं मानी गई हैं-

छाया चरण के पूर्व में- इस दौरान बुध की गति धीमी हो जाती है और वह उसी मार्ग में आगे बढ़ता है। बाद में रुक कर वक्री होना शुरू हो जाता है। छाया चरण की पूर्व अवस्था में वक्री बुध जीवन में कठिनाईयां उत्पन्न करता है। कई तरीकों से हम वक्री बुध में सहायता करते हैं जैसे अपने अंतर्मन की आवाज को नजऱअंदाज करना और ब्रह्मांड के संकेतों पर ध्यान नहीं देना।

बुध वक्री दशा- इस अवस्था में बुध वक्री होने से पूर्व धीरे होना शुरू हो जाता है। हिंदू पंचांग में इसे बैंगनी रंग में बनाया जाता है। इस दौरान आकाश में बुध की स्थिति स्थिर नजर आती है। इस अवस्था में वक्री बुध को शिखर के रूप में माना जाता है।

बुध वक्री- वक्री अवस्था के पश्चात् बुध पीछे की ओर चलने लगता है। बुध वक्री के क्षेत्र संचार, यात्रा, सूचना वितरण, कंप्यूटर प्रोग्राम व सीखना है। इन सभी चीजों में गलतियां और विवाद भरे रहते हैं। सामान्य तौर पर एक तिहाई आबादी द्वारा बुध वक्री का प्रत्येक चरण महसूस होता है। वक्री का प्रभाव कंप्यूटर, शिक्षा एवं संचार से जुड़े लोगों पर होता है। इस दौरान बैठकों, कार्यक्रमों और प्रतिबद्धताओं पर ध्यान देना चाहिए। यह समय रुके हुए कार्यों को पूरा करने और दोस्तों से मिलने के लिए फायदेमंद होता है।

बुध प्रत्यक्ष अवस्था- इस अवस्था में आकाश में बुध के पीछे जाने की गति धीरे-धीरे कम होती नजर आती है। वक्री बुध के शिखर पर होने की यह पंचांग में इस अवधि को भूरे रंग में दर्शाया गया है जो कि बुध वक्री अवस्था के अंतिम चरण और छाया चरण के बाद के समय के आरंभ को प्रस्तुत करता है।

छाया चरण के बाद- इस अवस्था में बुध आगे की ओर बढऩे लगता है। अब यह वो पूरा रास्ता तय करता है जिससे यह पीछे गया था। इस अवधि के दौरान गलत निर्णय लेना, ध्यान व अवधारणा की कमी जैसी दिक्कतें आती हैं।

स्वभाव में परिवर्तन- जब बुध वक्री होता है तो इसके शुभ और अशुभ फल का स्वभाव पर कोई अंतर नहीं आता है। किसी कुंडली विशेष में सामान्य रूप से शुभ फल देने वाले बुध वक्री होने की स्थिति में भी उस कुंडली में शुभ फल ही प्रदान करेंगे तथा किसी कुंडली विशेष में सामान्य रूप से अशुभ फल देने वाले बुध वक्री होने की स्थिति में भी उस कुंडली में अशुभ फल ही प्रदान करेंगे किन्तु वक्री होने से बुध के व्यवहार में कुछ बदलाव अवश्य आ जाते हैं। वक्री बुध का असर व्यक्ति की वाणी और निर्णय लेने की क्षमता पर भी पड़ता है। ऐसे लोग आम तौर पर या तो सामान्य से अधिक बोलने वाले होते हैं या फिर बिल्कुल ही कम बोलने वाले। वाणी में नियंत्रण की कमी आती है।

वक्री बुध के प्रभाव:-

साल में तीन या चार बार बुध वक्री होता है। इस दौरान आकाश में लगभग तीन सप्ताह के लिए बुध पीछे की ओर चलता है। इसे आप चलते हुए देख सकते हैं लेकिन कोई भी ग्रह अपनी संबंधित कक्षा से बाहर नहीं जा सकता है। बुध का वक्री होना नवीनता का कारक माना गया है। इस दौरान नई योजना बनाना, फिर से करना, पुनर्विचार करना, पुनर्गठन करना एवं पुनर्मूल्यांकन करने का समय होता है। ये समय कर्ज चुकाने, कागजी कार्रवाई को पूरा करने और पूर्व में किए गए वादे को पूरा करने के लिए अच्छा होता है।

Comments