कार्तिक पूर्णिमा का विशेष महात्म्य || Vaibhav Vyas


 कार्तिक पूर्णिमा का विशेष महात्म्य

कार्तिक महीने में धार्मिक आयोजन, पूजा-अर्चना, दान-पुण्य और ध्यान-स्नान का विशेष महत्व है जिसके चलते जातक कम समय में अधिक लाभ अर्जित करने वाला हो जाता है। ऐसे ही कार्तिक पूर्णिमा का भी शास्त्रों में बहुत अधिक महात्म्य बताया गया है जिसके चलते इसे महापुनित पर्व माना गया है। कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि इस दिन ही भगवान भोलेनाथ ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का अंत किया था, जिसकी वजह से उनका नाम त्रिपुरारी पड़ा। कार्तिक पूर्णिमा का उत्सव पांच दिन तक चलता है, जो देवउठनी एकादशी से शुरू होता है और पूर्णिमा तक चलता है।

देवउठनी एकादशी से लेकर कार्तिक पूर्णिमा तक हर रोज तुलसी को जल अवश्य देना चाहिए और तुलसी के पास रखी मिट्टी से तिलक भी लगाना चाहिए। अगर संभव हो सके तो इसको आदत बना लें क्योंकि ऐसा करने से घर में सुख-समृद्धि आती है और रोगों से मुक्ति मिलती है। मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही तुलसी बैकुंठ धाम पहुंची थीं इसलिए इनको जल देने से भगवान विष्णु का भी आशीर्वाद प्राप्त होता है। देव प्रबोधिनी एकादशी से लेकर कार्तिक पूर्णिमा तक हर रोज विष्णु सहस्त्रनाम और लक्ष्मी स्तोत्र का पाठ करना चाहिए और सायंकाल के समय दीपदान करना चाहिए। ऐसा करने से आर्थिक मामलों में चल रही परेशानी दूर होकर सुख-समृद्धि का वास होने लगता है।

देवउठनी एकादशी से कार्तिक पूर्णिमा तक इन 5 दिनों में दिन उगते हुए सूर्य यानी उदित होते सूर्य को जल जरूरी दें। जल में सिंदूर मिलाकर देना और भी लाभप्रद होगा। सूर्य को हर रोज जल देने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है और बुद्धि के साथ-साथ मान-सम्मान की भी वृद्धि होती है। साथ ही कुंडली में सूर्य की स्थिति मजबूत होती है। सूर्य आत्मा, पिता, सरकारी नौकरी, उच्च पद आदि का कारक ग्रह है और सूर्य के शुभ प्रभाव से इनके साथ-साथ जीवन में अपार सफलता भी मिलती है। अगर आपके आसपास कोई नदी या तालाब है तो एकादशी से लेकर कार्तिक पूर्णिमा तक हर रोज एक दीपक जल में प्रवाहित कर दें। अगर ऐसा कुछ नहीं है तो उस दीपक को तुलसी के पास हर रोज रखें। मान्यता है कि नदी-तालाब में दीपक प्रवाहित करने से अकाल मृत्यु का भय नहीं सताता है। साथ ही पितरों का भी आशीर्वाद मिलता है। इसके साथ ही शनि, यम, राहु, केतु आदि के बुरे प्रभाव से बचने के लिए भी दीपदान किया जाता है।

देव प्रबोधिनी एकादशी से लेकर कार्तिक पूर्णिमा तक हर रोज स्नान करने वाले जल में गंगाजल और तिल मिलाकर स्नान करना चाहिए। मान्यता है कि ऐसा करने से आर्थिक तंगी दूर होती है और आपके रुके हुए कार्य भी बनने लगते हैं। ये पांच दिन बेहद शुभ माने जाते हैं और इसलिए इन दिनों किए गए उपाय बेहद शुभ होने के साथ ही शीघ्र फलदायी माने गए हैं।

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