भगवान लक्ष्मी नारायण की पूजा से मां लक्ष्मी की भी कृपा || Vaibhav Vyas

 

भगवान लक्ष्मी नारायण की पूजा से मां लक्ष्मी की भी कृपा

सनातन परंपरा में भगवान विष्णु को सृष्टि का पालक माना गया है। जो समय-समय पर पृथ्वी पर प्राणियों के कल्याण के लिए अवतार लेते रहे हैं। पुराणों के अनुसार भगवान विष्णु क्षीर सागर में निवास करते हैं और शेषनाग की शैय्या पर शयन करते हैं। उनकी उनकी नाभि से कमल उत्पन्न होता है, जिसमें ब्रह्मा जी स्थित हैं। उनकी पत्नी का नाम लक्ष्मी है, जिनका जुड़ाव नारायण यानि भगवान विष्णु से होते ही लोग उन्हें भगवान लक्ष्मीनारायण के नाम से पूजते हैं। भगवान विष्णु ने अपने नीचे वाले बाएँ हाथ में कमल, अपने नीचे वाले दाहिने हाथ में गदा, ऊपर वाले बाएँ हाथ में पाञ्चजन्य शंख और अपने ऊपर वाले दाहिने हाथ में सुदर्शन चक्र धारण कर रखा है। इसी वजह से भगवान विष्णु की पूजा अर्चना से मां लक्ष्मी की कृपा भी स्वत: मिलने लगती है।

भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना के लिए नित्य नियमपूर्वक स्नानादि से निवृत होकर विधिवत पूजा-उपासना करनी चाहिए और एक माला श्री विष्णु हरि के किसी भी मंत्र की जाप करना बेहद सकारात्मकता देने वाला होता है। इसी तरह भगवान विष्णु की कृपा पाने के लिए गुरुवार के दिन पानी में एक चुटकी हल्दी डाल कर स्नान करें और पीले रंग के कपड़े पहनें। गुरुवार के दिन भगवान विष्णु का अभिषेक पहले गाय के दूध से फिर शंख में गंगाजल भर कर करें। इसके बाद उन्हें पीले रंग के वस्त्र अर्पित करें। भगवान विष्णु की पूजा करते समय भगवान को हल्दी, पीला चंदन, केसर आदि का तिलक लगाएं और पीले रंग के पुष्प और फल चढ़ाएं।

भगवान विष्णु को शीघ्र प्रसन्न करने के लिए गुरुवार के दिन किसी ऐसे मंदिर में जाकर जहां पर भगवान विष्णु की प्रतिमा हो, वहां पर गुड़, चने की दाल, केसर और पीले रंग का कपड़ा चढ़ाएं। यदि भगवान विष्णु का मंदिर न मिले तो आप उनके अवतार भगवान श्रीकृष्ण को भी यह सभी सामग्री चढ़ाकर उनका आशीर्वाद मांग सकते हैं। पीपल के पेड़ में भगवान विष्णु का वास माना जाता है, ऐसे में गुरुवार के दिन पीपल पर मीठा जल जरूर चढ़ाएं और शाम के समय दीपक प्रजवलित करना चाहिए। गुरुवार के दिन भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए गाय के दूध की खीर बनाकर प्रसाद में चढ़ाएं। भगवान विष्णु की पूजा में दो चीजों का प्रयोग अवश्य करें- पहला उनके लिए जलाए जाने वाले दिया में गाय का घी प्रयोग में लाएं और दूसरा प्रसाद में तुलसी दल को अवश्य चढ़ाएं। इस प्रकार भक्ति भाव से की गई पूजा-आराधना शीघ्र फलदायी मानी गई है।

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