दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं शुभ मुहूर्त में पूजा विशेष फलदायी || Vaibhav Vyas


 दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं

शुभ मुहूर्त में पूजा विशेष फलदायी

किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले शुभ मुहूर्त को देखा जाता है वैसे ही किसी भी मांगलिक कार्य की शुरुआत भी शुभ मुहूर्त में करने का प्रचलन रहा है। ऐसे ही किसी भी देवी-देवता की पूजा शुभ मुहूर्त में करना विशेष फलदायी रहता है। दीपोत्सव का पांच दिनों का यह पर्व भी शुभ मुहूर्त में खरीददारी, शुभ मुहूर्त में दीप प्रज्जवलित करना और शुभ मुहूर्त में ही पूजा-आराधना करने से वह पूजा-आराधना शीघ्र और शुभ फलदायी होती है। महालक्ष्मी पूजा-दीपोत्सव 4.11.2021 को अभिजित वेला में दोपहर 12 बजकर 21 मिनट से एक बजकर तीस मिनट के मध्य तक करना श्रेयष्कर रहेगा। इसके पश्चात गोधूली प्रदोष वेला में सायं 5 बजकर 50 मिनट से 6 बजकर 30 मिनट तक करना शुभ फलदायी रहेगा। स्थिर संज्ञक वृषभ लग्न में सायं 6.30 से 8:28 बजे तक करनी चाहिए। स्थिर संज्ञक सिंह लग्न में मध्य रात्रि 12.57 से 3:13 बजे तक करना विशेष शुभता प्रदान करने वाला रहेगा।

महालक्ष्मी पूजन पश्चात- सिंह लग्न वेला में कनकधारा स्त्रोत एवं श्रीसूक्त का पाठ लाभदायी माना गया है। महाकालरात्रि रात्रि 12 से 4 बजे तक गणेश मंत्र के साथ-साथ लक्ष्मी मंत्र की माला श्रेष्ठ फलदायी रहती है।

अमावस्या की काल रात्रि तथा कार्तिक कृष्ण अमावस्या को महाकालरात्रि कहा गया है। महालक्ष्मी पूजन पश्चात रात्रि 12 से 4 बजे तक महाकाल रात्रि के समय श्री सूक्त का पाठ, महालक्ष्मी सहस्त्र नाम का पाठ कनकधारा स्त्रोत का वाचन करना या योग्य पंडित द्वारा करवाने से आगामी आने वाले वर्ष में लक्ष्मी की अपार कृपा बनी रहती है। साधारण रूप से महाकालरात्रि में महालक्ष्मी पूजन पश्चात ऊन का आसन बिछाकर एक गणेश मंत्र की माला, एक लक्ष्मी की माला करने से भी घर में सुख-समृद्धि एवं लक्ष्मी का स्थायी वास घर में बना रहता है।

वृषभ एवं सिंह लग्न में महालक्ष्मी पूजन का विशेष महत्व है क्योंकि प्रथम तो वृषभ एवं सिंह लग्न स्थिर लग्न है। वृषभ लग्न लगभग प्रदोष वेला में आता है। ऐसी मान्यता है कि प्रदोष वेला में शिव-पार्वती साथ में रहते हैं इसलिए इस समय महालक्ष्मी पूजन करने से शिव-पार्वती का आशीर्वाद प्राप्त होकर सुख, समृद्धि तथा लक्ष्मी का स्थायी वास घर में बना रहता है। ब्रह्म पुराण के अनुसार लक्ष्मी जी आधी रात के समय घरों में आश्रय प्राप्त करने के लिए घूमती रहती हैं तथा सिंह लग्न आधी रात को ही आता है इसलिए सिंह लग्न में महालक्ष्मी पूजन करने से लक्ष्मी जी घर में स्थाई रूप से रहती हैं।

पूजा विधि का अर्थ होता है कि किस तरीके से पूजा की जाए। दिवाली के दौरान लक्ष्मी-गणेश की प्रतिमा की पूजा की जाती है। लक्ष्मी को धन/संपत्ति की देवी माना जाता है। वहीं भगवान गणेश बुद्धि और कार्य को सफल करने वाले देवता माने जाते हैं। लक्ष्मी पूजा में मीठे का भोग जैसे खीर, मिठाई, बत्ताशे, हलवा व मोदक का भोग लगाया जाता है। पूजास्थल में चावल या गेहूं की एक छोटी ढेरी बनाकर उस पर देसी घी का एक दिया जलाएं माता लक्ष्मी का ध्यान करते हुए तीन बार श्रीसूक्त का पाठ करें। मां लक्ष्मी सहित सभी देवी-देवताओं को भोग लगाएं। सच्चे भाव से की गई पूजा वर्ष पर्यन्त तक फलदायी मानी गई है।

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