वर्तमान क्षण में खोजें आनंद || Vaibhav Vyas


 वर्तमान क्षण में खोजें आनंद

वर्तमान में जीने की कला जब व्यक्ति सीख जाता है तो फिर उससे आनंद-खुशियां दूर नहीं रह पाती क्योंकि आनंद कभी भूतकाल या भविष्य में नहीं, वरन् वर्तमान में क्षण में ही मौजूद हो सकता है। आप देखिये, जब घर में, मंदिर में या कहीं भी और स्थल पर आरती हो रही हो तो आरती के बाद में जयघोष बोले जाते हैं। उस देवत्व की घोष के बाद में और कई तरह के जयघोष रहते हैं। उसके साथ में एक महत्वपूर्ण जय यह भी होती है कि आज के आनन्द की जय। आज जो क्षण बीता है, आज जो क्षण कर्म के साथ लगातार चला है, आज जो यह कर्म के सिद्धान्तों के साथ में चला है, आज जो हमने खुशियां प्राप्त की है, अनुभूतियां, अनुभव प्राप्त किये हैं उन सभी का सम्मिलित स्वरूप का रूपक जो आनन्द है हम उसकी वहां जय बोलते हैं। किन्तु एक बार स्वयं से पूछे जाने की आवश्यकताएं रहती हैं कि रात्रि अंतराल में सोते समय हम अपनी चिंताओं की जय बोलकर तो नहीं सोते। हममें व्यग्रताएं हैं और जो भय है उसकी जय तो हम अपने भीतर नहीं बोलते हैं। दिन में कितने अज्ञात भय लेकर चले, एक बार यदि संध्या समय उसका अंदाजा लगाया जाए तो मालूम चलता है कि हां वाकई में उससे कुछ भी निकलने वाला नहीं था, किन्तु हम उस क्षण चिंताओं के साथ में थे।

हम वर्षों पूर्व की यात्रा को देखें तो कई बार लगता है नौकरी पेशा जीवन में जब चिंता कर रहे थे, तो वह बचकानी हरकत लगती है, जिसका सरोकार दूर-दूर तक नहीं है। आज के परिप्रेक्ष्य में देखें तो लगेगा कि उस समय की चिंताएं निर्मूल थी और आज की चिंताएं बड़ी जड़ों को लिए हुए है। आज का जो वर्तमान है कुछ क्षण या कुछ वर्षों के बाद भूतकाल हो जाएगा तो लगेगा कि यह चिंता भी कुछ नहीं थी। सिर्फ भीतर की बेस लैस पोजीशन थी, जिन्होंने ये सारे ही भय परोसने का कार्य किया और वहां से हम अपने आनन्द को भूलते चले गए। जीवन में जब हम आनन्द की जय वहां उस आरती के साथ में लगातार जय घोष के साथ चलने वाले होते हैं तब महसूस भी करें कि वाकई में हमको आनंदित किया है। लगातार एक श्रद्धा के भाव को साथ लेकर चले हैं। भले ही श्रद्धा है, आस्था है, विश्वास है, कर्म के सिद्धान्त है, कर्म है, कोई भी दूसरा स्वरूप है वो सब कुछ आनंद के मूल के साथ में वर्तमान में चलने वाला होता है। तनाव रहेगा। कामकाज है तो यह सब कुछ रहेगा किन्तु ये कितने समय तक हावी है और हम कब इससे मुक्त होकर अपनी यात्रा को तय कर पा रहे हैं, जब व्यक्ति ये समझ लेता है तो वह अंततोगत्वा छोटी-छोटी चिंताओं से खुद को लम्बे समय तक साथ लेकर चलने वाला नहीं होता है। समस्याएं हैं तो समाधान भी साथ रहेंगे। जीवन है तो उद्देश्य रहेंगे। किन्तु उन उद्देश्यों के साथ में यदि सिर्फ चिंताएं जुड़ती चली जाती है तो व्यक्ति खुद को उस कार्य की खुशी से दूर करता चला जाता है। इसी वजह से हम जिस भी कर्म के साथ हों वहां पर आनंद यदि खोजने जाएंगे तो प्राप्त होने वाला होगा। और यदि हम उस खोजबीन के साथ में होंगे ही नहीं, ये सोचेंगे कि कब परिवर्तन करेंगे तो केवल फस्र्टेशन निकलकर आएंगे। आपने जॉब चेंज की, फाइनेंसियल गेन मिले, किन्तु प्रोफाइल संतोषजनक नहीं है, उस ओहदे पर है जहां से परिवर्तन की ओर भी नहीं जा सकते। या फिर इतना साहस हो कि हम परिवर्तन की ओर जा पाएं, और नहीं जा सकते हैं तो वहीं पर आज इस क्षण में उस कर्म के साथ में आनंद को खोजने का प्रयास जरूर करें और वहीं से यात्रा बेहतरी की ओर जाने की शुरुआत करती है। अन्यथा हम अपने लिए आज के साथ सिर्फ रिग्रेट्स को खुद को देने वाले होते हैं और जैसे ही उन रिगे्रट्स से व्यक्ति दूर हटा आप देखिये, आनंदित सैद्धान्तिक आधार के साथ जीवन में जुड़ता चला जाता है। तो एक बार इस शब्द को भीतर तक महसूस करने की आवश्यकताएं बनी रहती है। एकांत के साथ में कुछ समय जरूर चला जाए। खुद के भीतर के भावों को पहचाना जाए, कि प्रत्येक कर्म के उद्देश्य के बाद में हमारी निहितार्थ ऊर्जा क्या है और वहीं से स्पंदन मिलेगा वो काफी हद तक समृद्धि के साथ में उस दिवस में चलने वाला रहेगा।

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