गणेश जी को जन्म से ही सभी देवों का आशीर्वाद || Vaibhav Vyas


 गणेश जी को जन्म से ही सभी देवों का आशीर्वाद

गणेश भारतीय संस्कृति के अभिन्न अंग हैं। वे सुख-समृद्धि, रिद्धि-सिद्धि, वैभव, आनन्द, ज्ञान एवं शुभता के अधिष्ठाता देव हैं। उनका जन्म भाद्रपद शुक्ल की चतुर्थी को हुआ। शिव-पावर्ती के पुत्र के गणेश जी के जन्म पर सभी देव उन्हें आशाीर्वाद देने आए थे। विष्णु ने उन्हें ज्ञान का, ब्रह्मा ने यश और पूजन का, धर्मदेव ने धर्म तथा दया का आशीर्वाद दिया। शिव ने उदारता, बुद्धि, शक्ति एवं आत्म संयम का आशीर्वाद दिया। लक्ष्मी ने कहा कि जहां गणेश रहेंगे, वहां मैं रहूंगी।Ó सरस्वती ने वाणी, स्मृति एवं वक्तृत्व-शक्ति प्रदान की। सावित्री ने बुद्धि दी। त्रिदेवों ने गणेश को अग्रपूज्य, प्रथम देव एवं रिद्धि-सिद्धि प्रदाता का वर प्रदान किया। इसलिये वे सार्वभौमिक, सार्वकालिक एवं सार्वदैशिक लोकप्रियता वाले देव हैं।

ऋद्धि-सिद्धि गणेशजी की पत्नियाँ हैं। गणेश की पूजा यदि विधिवत की जाए, तो इनकी पतिव्रता पत्नियां ऋद्धि-सिद्धि भी प्रसन्न होकर घर-परिवार में सुख-शांति-समृद्धि और संतान को निर्मल विद्या-बुद्धि देती है। सिद्धि से 'क्षेमÓ और ऋद्धि से 'लाभÓ नाम के शोभा सम्पन्न दो पुत्र हुए। जहां भगवान गणेश विघ्नहर्ता हैं, मंगलकर्ता हैं तो उनकी पत्नियां ऋद्धि-सिद्धि यशस्वी, वैभवशाली व प्रतिष्ठित बनाने वाली होती है। वहीं शुभ-लाभ हर सुख-सौभाग्य देने के साथ उसे स्थायी और सुरक्षित रखते हैं।

प्राचीन काल से हिन्दू समाज कोई भी कार्य निर्विघ्न सम्पन्न करने के लिए उसका प्रारम्भ गणपति की पूजा से ही करता आ रहा है। भारतीय संस्कृति में सब देवताओं की पूजा से प्रथम गणपति की पूजा का विधान है। बड़े एवं साधारण सभी प्रकार के लौकिक कार्यों का आरंभ उनके दिव्य स्वरूप का स्मरण करके किया जाता है। व्यापारी अपने बही-खातों पर 'श्री गणेशाय नम:Ó लिख कर नये वर्ष का आरंभ करते हैं। प्रत्येक कार्य का शुभारंभ गणपति पूजन एवं गणेश वंदना से किया जाता है। विवाह का मांगलिक अवसर हो या नए घर का शिलान्यास, मंदिर में मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा का उत्सव हो या जीवन में षोड्स संस्कार का प्रसंग, गणपति का स्मरण सर्वप्रथम किया जाता है। स्कंद पुराण के अनुसार जो भक्ति-पूर्वक गणेश की पूजा-अर्चना करता है, उसके सम्मुख विघ्न कभी नहीं आते। गणपति गणेश अथवा विनायक सभी शब्दों का अर्थ है देवताओं का स्वामी अथवा अग्रणी।

ऐसी मान्यता है कि गणेशजी की सम्पूर्ण शारीरिक रचना के पीछे भगवान शिव की व्यापक सोच रही है। एक कुशल, न्यायप्रिय एवं सशक्त शासक एवं देव के समस्त गुण उनमें समाहित किये गये हैं। गणेशजी का गज मस्तक हैं अर्थात वह बुद्धि के देवता हैं। वे विवेकशील हैं। उनकी स्मरण शक्ति अत्यन्त कुशाग्र हैं। हाथी की भ्रांति उनकी प्रवृत्ति प्रेरणा का उद्गम स्थान धीर, गंभीर, शांत और स्थिर चेतना में है। हाथी की आंखें अपेक्षाकृत बहुत छोटी होती हैं और उन आँखों के भावों को समझ पाना बहुत कठिन होता है। दरअसल गणेश तत्ववेत्ता के आदर्श रूप हैं। गण के नेता में गुरुता और गंभीरता होनी चाहिए। उनके स्थूल शरीर में वह गुरुता निहित है। उनका विशाल शरीर सदैव सतर्क रहने तथा सभी परिस्थितियों एवं कठिनाइयों का सामना करने के लिए तत्पर रहने की भी प्रेरणा देता है। उनका लंबोदर दूसरों की बातों की गोपनीयता, बुराइयों, कमजोरियों को स्वयं में समाविष्ट कर लेने की शिक्षा देता है तथा सभी प्रकार की निंदा, आलोचना को अपने उदर में रख कर अपने कर्तव्य पथ पर अडिग रहने को प्रेरित करता है। छोटा मुख कम, तर्कपूर्ण तथा मृदुभाषी होने का द्योतक है।

गज मुख पर कान भी इस बात के प्रतीक हैं कि किसी बात को सुनने के लिए कान सदैव खुले रखें। गणेशजी सात्विक देवता हैं उनके पैर छोटे हैं जो कर्मेन्द्रिय के सूचक और सत्व गुणों के प्रतीक हैं। मूषक गणपति का वाहन है जो चंचलता एवं दूसरों की छिद्रान्वेषण की प्रवृत्ति को नियंत्रित करने का प्रेरक है। गणेशजी को प्रथम लिपिकार माना जाता है। उन्होंने ही देवताओं की प्रार्थना पर वेद व्यासजी द्वारा रचित महाभारत को लिपिबद्ध किया था। अनंतकाल से अनेक नामों से गणेश दुख, भय, चिन्ता इत्यादि विघ्न के हरणकर्ता के रूप में पूजित होकर मानवों का संताप हरते रहे हैं।

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