इन बातों का भी ख्याल रखें श्राद्ध कर्म मे || Vaibhav Vyas


 इन बातों का भी ख्याल रखें श्राद्ध कर्म मे 

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार श्राद्ध कर्म में जितनी महत्ता विधि-विधान से श्राद्ध कर्म करने की है, उतनी ही इस विषय से जुड़ी अन्य बातों का भी ध्यान रखकर उसी अनुरूप कर्म करने से फल प्राप्ति में श्रेष्ठता मिलनी वाली रहती है। श्राद्ध कर्म के दिन जिन पूर्वजों का श्राद्ध हो उस दिन क्षौरकर्म (कटिंग, शेविंग) नहीं करना चाहिए। जिस दिन अपने घर में श्राद्ध हो, उस दिन दूसरे के घर में भोजन करना निषेध माना गया है। श्राद्ध में क्रिया और वाक्य की शुद्धता बहुत जरूरी है। संयुक्त परिवार हो तो श्राद्ध ज्येष्ठ पुत्र द्वारा एक ही स्थान पर सम्पन्न होना चाहिए। यदि पुत्र अलग-अलग रहते हों तो श्राद्ध भी सभी को अलग - अलग करना चाहिए। हेमाद्रि के अनुसार श्राद्ध में पिता की पिण्ड दान आदि सम्पूर्ण क्रिया पुत्र को ही करनी चाहिए। पुत्र के अभाव में पत्नी करें और पत्नी के अभाव में सहोदर भाई को करनी चाहिए। यदि गया श्राद्ध कर दिया हो तो मृत्यु तिथि व श्राद्ध पक्ष में तिथि पर धूप नहीं देवें व पिण्डदान ना करें। उस दिन सिर्फ तर्पण करें, गाय और ब्राह्मण को श्राद्ध निमित्त भोजन कराएं। गया श्राद्ध सभी पुत्र (छोटे-बड़े) कर सकते हैं। बद्रीनाथ में ब्रह्म कपाली नहीं कराई हो तो गयाजी में एक बार नहीं, अनेक बार श्राद्ध कर सकते हैं। गया श्राद्ध कराने के बाद ही बद्रीनाथ तीर्थ में ब्रह्म कपाली कराएं। यदि बद्रीनाथ में पहले ब्रह्म कपाली करा दी हो तो फिर गयाजी में श्राद्ध नहीं करना चाहिए।

जिस श्राद्ध में क्रोध और उतावलापन होता है, वह निष्फल हो जाता है। श्राद्ध में देशी गाय व उसका दूध, दही, घी का बहुत अधिक महत्त्व है। यदि श्राद्ध वाले दिन घर में सूतक हो तो गौशाला जाकर दक्षिण दिशा की ओर मुंह कर अपने दोनों हाथ आकाश में ऊपर उठा कर सम्बंधित पितृदेव का नाम लेकर उनके निमित्त गाय को घास देने का संकल्प करें। फिर यथाशक्ति घास गाय को खिलाने से पितृ प्रसन्न हो जाते हैं। श्राद्ध में चन्दन, खस, कर्पूर सहित सफेद चन्दन ही पितृ कार्य  के लिए प्रशस्त हैं। अन्य पुरानी लकडिय़ों के चन्दन उपयोग में नहीं लेना चाहिए। कस्तूरी, लाल चन्दन, गोरोचन, सल्लक तथा पूतिक आदि निषिद्ध हैं। पितरों को सदैव तर्जनी उंगली से ही चन्दन देना चाहिए। श्राद्ध में कदम्ब, केवड़ा, मौलसिरी, बेलपत्र, करवीर, लाल तथा काले रंग के सभी फूल, उग्र गन्ध वाले और गन्ध रहित सभी फूल वर्जित हैं। ब्राह्मण के यहां श्राद्ध के निमित्त भोजन करने वाले ब्राह्मण द्वारा श्राद्ध समाप्ति के बाद अस्तु स्वधा  बोलना चाहिए। इसी तरह क्षत्रिय के यहां पितर: प्रीयन्ताम् और वैश्य के यहां अक्षय्य मस्तु शब्द का उच्चारण करना चाहिए, तभी श्राद्ध सम्पूर्ण होता है। एकादशी होने से श्राद्ध में चावल की वजाय साबूदाना या अन्य फलियारी वस्तु की खीर बनाना चाहिए। एकादशी पर श्राद्ध निमित्त फलाहारी भोजन बनाना चाहिए। श्राद्ध समाप्ति पश्चात ब्राह्मण को घर की सीमा तक पहुंचाने के लिए नहीं जाना चाहिए। श्राद्ध में ब्राह्मणों को बैठाकर पैर धोना चाहिए। खड़े होकर पैर धोने पर पितर निराश होकर चले जाते हैं। सात्विक अन्न - फलों से पितरों की सर्वोत्तम तृप्ति होती है। श्राद्ध के निमित्त भोजन करने वाले ब्राह्मणों को भोजन करते समय मौन रहना चाहिए। पुत्र को कम से कम वर्ष में दो बार श्राद्ध अवश्य करना चाहिए। जिस दिन व्यक्ति की मृत्यु होती है उस तिथि पर वार्षिक श्राद्ध तथा दूसरा पितृपक्ष में श्राद्ध अवश्य करना चाहिए।  श्राद्ध के दिन पांच स्थानों पर श्राद्ध के निमित्त बनी समस्त थोड़ी-थोड़ी वस्तु दो-दो पूरी के साथ पत्ते पर रखकर निकालना चाहिए। एक भाग गाय को, दूसरा भाग श्वान (कुत्ते) को, तीसरा भाग  कौवे को, चौथा भाग देवताओं को और पांचवां भाग चींटियों को दे दें।

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