श्राद्ध पक्ष में रखें पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता || Vaibhav Vyas


 श्राद्ध पक्ष में रखें पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता

श्राद्ध पक्ष जिसे हम पितृ पक्ष के नाम से जानते हैं। जिन पूर्वजों की वजह से हम इस धरा पर है। इस जीवन को देख पा रहे हैं, उनके प्रति कतृज्ञता का भाव, समर्पण का भाव और श्रद्धा का भाव लेकर जब हम इस पावन कार्य को पूर्ण करते हैं तो मन में संतोष भी लेकर आ पाते हैं और अवसान की गति प्राप्त कर चुके उन पूर्वजों से आशीर्वाद का नेह स्वरूप भी प्राप्त करने वाले होते हैं। पितर दोष के साथ एक महत्वपूर्ण बात है जो ज्योतिष क्षेत्र में सामने आती है। यदि आप बारह ही भावों पर गौर करते हैं तो जो नवम भाव है वो भाग्य, भूतकाल, आध्यात्म, दर्शन और वहीं पर जीवन के जो अनुभव है उसका भाव है। अनुभव जो सिर्फ व्यक्ति को स्वयं से नहीं मिलते, जहां पर भी व्यक्ति किसी के साथ चर्चा करता है वहां से भी मिलते हैं। एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में हस्तांतरित होती हुई चीजें भी अनुभव के रूप में सामने आती है। नवम भाव आध्यात्म का है, लगातार हमने क्या सीखा, किस तरह की चिंतन की प्रक्रिया को सुना वो कहां से हमको मिला। इसी के साथ दर्शन की प्रवृतियां किसी तरह से जीवन के भीतर उतरती चली गई ये सब कुछ नवम भाव के साथ जुड़ता है। वहीं तृतीय त्रिकोण का आधार भी नवम भाव के साथ ही जुड़ा होता है। अब यहां थोड़ा-सा और गौर करने की आवश्यकता है कि बुध मानसिक चेतना के आधिपति हैं। बुध की स्थितियां जब व्यक्ति के साथ में मानसिक रूप से चेतन आधार को देती है, बुद्धि में दृढ़ता देने वाली होती है और वहीं बुध पारे की प्रकृति के ग्रह भी हैं। नवम भाव के साथ में बुध का सीधा आधार जुड़ा हुआ हो और बुध यदि पापी ग्रहों से दृष्ट भी हो तो कई बार जो पितर दोष संबंधी आधार होते हैं वो नजर आते हैं। यह एक बात कही जा सकती है। सूर्य का आधार भी कई बार वहां से जुड़ा रहता है। हालांकि यहां गौर कीजिये कि सूर्य स्वयं क्रूर ग्रह है, किन्तु प्रकाशमान ग्रह है, व्यक्ति को तेज की अनुभूति के साथ लेकर चलने वाले ग्रह है। अब यहां यदि पापी ग्रहों से दृष्ट रहेंगे तो उतनी परेशानियों का सामना व्यक्ति को नहीं करना पड़ता, किन्तु यदि सूर्य राहू का ग्रहण दोष बना हुआ है। सूर्य केतु की स्थितियां साथ है उसमें सूर्य का थोड़ा प्रभाव कम, ग्रहण दोष के साथ ज्यादा इंगित होती है और यदि कोई भी पापी ग्रह नवम भाव को देख रहा हो, बुध भी साथ हो, तो पितर दोष संबंधी आधार देखे गए हैं। ऐसी अवस्थाओं के अंदर श्राद्ध पक्ष का कर्म होता है वो बहुत से अच्छे से पूर्ण करने की ओर जाना चाहिए। ये एक आधार यहां सम्यक स्वरूप में सामने आने वाला होगा। हालांकि आप देखिये, पूर्णिमा और अमावस्या के श्राद्ध रहते हैं जैसे कि भाद्रपद की पूर्णिमा और आश्विन पक्ष की अमावस्या रहेगी ये दोनों ही श्राद्ध भी अतिमहत्वपूर्ण हो जाते हैं। उसमें भी सर्व पितृ अमावस्या करने जाते हैं तो सर्व पितृ अमावस्या का आधार है जो पूर्णिमा से लेकर अमावस्या तक जो पूर्वजों के अवसान की गति रही है वो तो यहां श्राद्ध कर्म के साथ होती ही है, वहीं मातृ नवमी श्राद्ध रहता है वो नवमी के दिन ही पूर्ण होता है। यदि कोई तिथि ज्ञात नहीं है, घर परिवार को भी कोई जानकारी नहीं है तो जो 6 अक्टूबर, 21 को सर्व पितृ अमावस्या रहती है, वो अति महत्वपूर्ण हो जाती है। आप वहां पर उस श्राद्ध कर्म को पूर्ण करने की ओर भी जा सकते हैं। ये प्रमुख आधार है। किन्तु सर्व प्रथम जो आधार रहना चाहिए वो है श्रद्धा का, वो है पावन आधार है वो है समर्पण। यदि तीनों ही प्रक्रिया साथ जुड़ी रहती है तो जो श्राद्ध कर्म है वो पूर्णता को प्राप्त करने वाला होता है। व्यक्ति जहां पर भी अपने जीवन में कोई कमी देख रहा है, उसकी पूर्णता के लिए भी वो अपने आशीष और मंगलकामनाओं की एक तरह से जो स्थितियां होती है उसको जीवन के भीतर लाने वाला हो सकता है। हम पूर्वजों को उसी आधार पर याद करे जैसा कि जीवन में उनका स्थान हमेशा से रहा है।

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