श्राद्ध कर्म में रखें महत्वपूर्ण बातों का ध्यान || Vaibhav Vyas


 श्राद्ध कर्म में रखें महत्वपूर्ण बातों का ध्यान

मनु स्मृति में भी श्राद्ध कर्म के बारे में बताया गया है कि श्राद्ध कर्म करते समय महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखकर श्राद्ध कर्म करना चाहिए, जिससे श्राद्ध कर्म विधि-विधानपूर्वक पूर्ण होकर फलाफल देने वाला रहता है।
- 10 हजार निरक्षर ब्राह्मण भोजन करते हैं, वहां यदि वेदों का ज्ञाता एक ही ब्राह्मण श्राद्ध निमित्त भोजन करके संतुष्ट हो जाए तो उन 10 लाख ब्राह्मणों के बराबर फल को देता है।
- श्राद्ध करने के पूर्व क्षौरकर्म नहीं करना या कराना चाहिए।
- श्राद्ध करने के पूर्व कपड़े भी नहीं धोना चाहिए।
- तर्पण में दोनों हाथों को संयुक्त कर जल देना चाहिए।
- दूसरे की भूमि पर श्राद्ध नहीं करना चाहिए।
- परिस्थितिवश घर से बाहर यदि श्राद्ध करना हो तो जङ्गल, पर्वत, पुण्य तीर्थ, देव मन्दिर में श्राद्ध कर सकते हैं, क्योंकि इन पर किसी का स्वामित्व नहीं होता है।
- देव कार्य में तो ब्राह्मणों की परीक्षा न करें, परन्तु पितृकार्य में तो प्रयत्न पूर्वक ब्राह्मण की परीक्षा करें।
- श्राद्ध में ब्राह्मण की उपस्थिति आवश्यक है।
- श्राद्ध में यदि ब्राह्मण भोजन कराना सम्भव ना हो तो सूखे अन्न, घृत, चीनी, नमक आदि षडरस वस्तुओं को दक्षिणा सहित श्राद्ध भोजन के निमित्त किसी वेदज्ञाता ब्राह्मण को दे देना चाहिए।
- परिस्थितिवश यदि वेदज्ञाता ब्राह्मण न प्राप्त हो तो कम से कम गो ग्रास निकालकर गायों को इस निमित्त खिला देना चाहिए।
- श्राद्ध के समय रेशमी, नेपाली कम्बल, ऊन, काष्ठ, तृण, पर्ण , कुश आदि के आसन श्रेष्ठ माने गए हैं।
- काष्ठ आसनों (लकड़ी के आसन) में शमी, काश्मीरी, शल्ल, कदम्ब, जामुन, आम, मौलसिरी एवं वरुण के आसन श्रेष्ठ हैं।
-  किसी भी आसन में लोहे की कील नहीं होनी चाहिए।
- जहां तक हो सके, आसन का रंग सफेद हो।
- जिनकी मृत्यु तिथि ज्ञात नहीं है, उनका अमावस्या के दिन श्राद्ध  करना चाहिए।
- अमावस्या को समस्त पितरों के नाम पर तर्पण भी करना चाहिए।
- वृद्धिकाल में पुत्र जन्म तथा विवाह आदि मांगलिक कार्य में जो श्राद्ध किया जाता है, उसे वृद्धिश्राद्ध (नान्दी श्राद्ध) कहते हैं।
- इस नान्दी श्राद्ध का स्वरूप हम लोगों ने बदल दिया है। जब भी विवाह आदि माङ्गलिक कार्य होते हैं, तब हम नान्दी श्राद्ध न करते हुए मात्र पितरों के निमित्त धन और वस्त्र लेकर बहन - बेटियों, ब्राह्मण को दे देते हैं।
- कूर्म पुराण, याज्ञवल्क्य स्मृति, ब्रह्मोक्त  याज्ञवल्क्य संहिता, महाभारत आदि में चतुर्दशी के दिन श्राद्ध नहीं करने का स्पष्ट उल्लेख है।
- चतुर्दशी के दिन सिर्फ युद्ध में शहीद हुए सैनिक, दुर्घटना से, शास्त्राघात से मृत हुए व्यक्ति का श्राद्ध होता है।
- शुक्ल पक्ष की अपेक्षा कृष्ण पक्ष और पूर्वाह्न की अपेक्षा कुतप वेला का समय श्राद्ध के लिए श्रेष्ठ माना जाता है।
- श्राद्ध के भोजन पर रज:स्वला स्त्री और श्वान की दृष्टि नहीं पडऩा चाहिए।
- जिसके घर में श्वान होते हैं, उसके घर में पितृ प्रवेश नहीं करते हैं। (कूर्मपुराण,औशन स्मृति)

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