क्या है श्राद्ध कर्म? || Vaibhav Vyas



 क्या है श्राद्ध कर्म?

पितृ पक्ष के प्रति अपने घर से, अपने निवास स्थान से, अपने शहर से दूर रह रहे लोगों में काफी प्रश्न होते हैं। उनका मानना है कि श्रद्धा भाव के साथ में श्राद्ध कर्म पूर्ण तो करना चाहते हैं, लेकिन हमारे पास में इतनी सुविधाएं उपलब्ध नहीं है, इसके लिए हमें कोई सरलीकृत तरीका बताइये जिससे हम इस श्राद्ध कर्म को पूर्ण कर सकें और हमारे पूर्वजों का आशीर्वाद पूर्ण रूप से प्राप्त कर सकें। इसके लिए सबसे पहले ये समझने की आवश्यकता है कि श्राद्ध कर्म है क्या? ये दो शब्दों से मिलकर बना है वो है श्राद्ध और कर्म। श्रद्धया इति श्राद्धम्। जहां श्रद्धा विद्यमान है वहां पूर्वजों का श्राद्ध पूर्ण रूप से सुव्यवस्थित तरीके से होगा ही होगा इसमें शकोशुबा नहीं है। दूसरा शब्द है कर्म। यहां कर्तव्य शब्द यूज में नहीं लिया गया है। दूसरा शब्द है कर्म। कर्म का अर्थ वो है कि जो जीवन में आपको करना ही करना है। एक नितांत अवसरीय क्षेत्र के रूप में जो कर्म किया जाता है उसे हम कर्म कहते हैं। एक तरह से खाना-भोजन आपके सामने रखा हुआ है, आप उसे ग्रहण करते हैं वो कर्म है। जब वो उदर के भीतर चला जाता है और जो अन्दर की प्रक्रिया संपन्न होती है उसे कहा गया है क्रिया। ये भेद है कर्म और क्रिया के रूप में। इस तरह से ये पूर्ण शब्द हो जाता है श्राद्ध-कर्म-क्रिया। यानि जो श्राद्ध कर्म किया गया उसके बेसिस पर उसके माध्यम से हमारे पूर्वजों ने क्रिया स्वरूपेन हमें आशीष दी। श्राद्ध कर्म सामने देखा, लेकिन जो आशीष मिली वो अदृश्य रूप में हमारे जीवन में विद्यमान होती चली गई जिससे देखा नहीं जा सकता, जिस क्रासमॉस के माध्यम से हमें मिलती है। एक तरह से गुगल मैप के द्वारा आप किसी को अपनी लोकेशन सेंड कर सकते हैं, आजकल व्हाटसप में भी सिस्टम आ गया है कि आप किसी को भी अपनी लोकेशन सेंड कर सकते हैं। जब आप श्राद्ध कर्म पूर्ण करते हैं, मान लीजिये आपके पास वो सारी सुविधाएं उपलब्ध नहीं है। आपको आपके पूर्वजों की पुण्य तिथि ज्ञात है, उसके बेसिस पर आप जहां भी रह रहे हैं। सबसे पहले शुद्धिकरण के साथ में भोजन बनाइये, जिसमें लहसुन-प्याज आदि नहीं हो। वो भोजन बनाने के बाद में आप अपने राइट हैंड साइड की तर्जुनी में एक जगह जो जमीन में आसन बिछाकर बैठ जाइये। भोजन सामने रख दीजिये। उसमें पांच ग्रास टालने के आवश्यकता है, जिसमें से तीन ग्रास सबसे महत्वपूर्ण है-1 कौवे के लिए, 1 श्वान के लिए और एक गाय के लिए। कौवे के लिए जो आप ग्रास टालेंगे उसे छत पर रख सकते हैं, श्वान के लिए श्वान आपको गली में मिल ही जाते हैं और यदि गाय उपलब्ध नहीं है तो गो शाला के अन्दर वो ग्रास आपको यानि एक जो भोजन का एक निश्चित आहारीय जो टुकड़ा है वो इन तीन तरीकों से विभक्त होना चाहिए और जो चौथा एक तरह से भोजना का जो हिस्सा है वो आपको ब्राह्मण को मंदिर में या जहां पर ब्राह्मण विराजित हैं, रहते हैं यदि घर में बुला पाए तो सबसे उत्तम। नहीं तो जहां पर ब्राह्मण रहते हैं वहां जाकर आप उन्हें पूरा का पूरा भोजन उन्हें जाकर समर्पित कीजिये। अब संकल्प लेने के लिए क्या किया जाए। आप राइट हैंड साइड में सबसे पहले तर्जुनी में जल लीजिए जल लेने के बाद में आप सबसे पहले अपने शहर का नाम लीजिये जहां पर आप जिस शहर में रह रहे हैं, ये हिन्दी महीना है आश्विन महीना। आप लिखते जाइये ये हिन्दी महीना है आश्विन महीना, पक्ष है कृष्ण पक्ष, जो तिथि एकम से यानि प्रतिपदा से लगाकर अमावस्या के बीच में जो तिथि आ रही है उस तिथि का नाम लेना बहुत ही अधिक आवश्यक है। वार कौनसा है इसके साथ में आप कौन से गोत्र से बिलांग करते हैं जैसे मेरा कश्यप गोत्र है, किसी का कपिंजल गोत्र है, किसी का मोदगिल गोत्र है, जो गोत्र है आपका जिस भी कास्ट से आप बिलांग करते हैं जो भी गोत्र है उसके नाम का उच्चारण लीजिये और जिस पूर्वज का आप श्राद्ध कर्म पूर्ण कर रहे हैं उनका नाम लीजिये और उसके बाद में उस जल को छोड़ दीजिये। एक तरह से आपने संकल्प ले लिया कि मैं ब्राह्मण को ये भोजन तृप्ति के अनुसार करवाने जा रहा हूं और इसके बाद में जब सर्व पितृ अमावस्या आती है यदि संभव हो तो इस दिन तर्पण के लिए किसी भी नदी या तालाब पर जाना चाहिए और ब्राह्मण के द्वारा इस कर्म को पूर्ण किया जाना चाहिए। जिससे क्रिया के रूप में आपको आपके पूर्वजों का पूर्ण रूप से आशीर्वाद प्राप्त हो। जीवन का संचार निरन्तर, निर्बाद्ध गति से चलता रहे और हम हमारे सारे कार्य पूर्ण करके, निवृत करके, परम धाम की तरफ एक उम्र के बाद अग्रसर हो ऐसी प्रार्थना करनी चाहिए और उसके बाद में अपने कर्म में फिर से संलग्न हो जाना चाहिए। तो ये है सरल विधि जिसके द्वारा संकल्प लेकर आप पूर्ण रूप से अपने पितरों को तृप्त करके उनका आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं।

Comments