श्राद्ध कर्म से पितरों का आशीर्वाद मिलता है || Vaibhav Vyas


 श्राद्ध कर्म से पितरों का आशीर्वाद मिलता है

भाद्रपद मास की पूर्णिमा से शुरू पितृ पक्ष आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि तक रहते हैं। हिंदू धर्म में पितृ पक्ष का बहुत अधिक महत्व होता है। पितृ पक्ष को श्राद्ध पक्ष के नाम से भी जाना जाता है। पितृ पक्ष में पितरों का श्राद्ध और तर्पण किया जाता है। इस पक्ष में विधि- विधान से पितर संबंधित कार्य करने से पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है और पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।

पितृ पक्ष में पूर्वजों की मृत्यु की तिथि के अनुसार श्राद्ध किया जाता है। अगर किसी मृत व्यक्ति की तिथि ज्ञात न हो तो ऐसी स्थिति में अमावस्या तिथि पर श्राद्ध किया जाता है। इस दिन सर्वपितृ श्राद्ध योग माना जाता है। अगर ऐसा न हो तब भी अमावस्या के दिन श्राद्ध कर्म करना चाहिए जिससे अनजाने या भूलवश किसी का श्राद्ध नहीं किया गया है तब भी इस दिन श्राद्ध करने से उन्हें मुक्ति का मार्ग प्रशस्त होता है और जाने-अनजाने में हुई भूल की क्षमा मांगने का अवसर भी मिल जाता है।

ऐसा माना जाता है कि जीवन में आ रही तकलीफें पितृ पक्ष में पितर संबंधित कार्य करने से उनका निवारण होता है और जीवन में सुख-समृद्धि और खुशियां का आगमन होने लगता है। क्योंकि इस पक्ष में श्राद्ध तर्पण करने से पितर प्रसन्न होते हैं और आशीर्वाद देते हैं। पितर दोष से मुक्ति के लिए इस पक्ष में श्राद्ध, तर्पण करना शुभ होता है। मुख्यत: तो किसी सुयोग्य विद्वान ब्राह्मण के जरिए ही श्राद्ध कर्म (पिंड दान, तर्पण) आदि करवाना चाहिए।  श्राद्ध कर्म में पूरी श्रद्धा से ब्राह्मणों को तो दान दिया ही जाता है साथ ही यदि किसी गरीब, जरूरतमंद की सहायता भी आप कर सकें तो बहुत पुण्य मिलता है।  इसके साथ-साथ गाय, कुत्ते, कौवे आदि पशु-पक्षियों के लिए भी भोजन का एक अंश जरूर डालना चाहिए। यदि संभव हो तो गंगा नदी के किनारे पर श्राद्ध कर्म करवाना चाहिए। यदि यह संभव न हो तो घर पर भी इसे किया जा सकता है। जिस दिन श्राद्ध हो उस दिन ब्राह्मणों को भोज करवाना चाहिए। भोजन के बाद दान दक्षिणा देकर भी उन्हें संतुष्ट करें।

श्राद्ध पूजा दोपहर के समय शुरू करनी चाहिए. योग्य ब्राह्मण की सहायता से मंत्रोच्चारण करें और पूजा के पश्चात जल से तर्पण करें। इसके बाद जो भोग लगाया जा रहा है उसमें से गाय, कुत्ते, कौवे आदि का हिस्सा अलग कर देना चाहिए। इन्हें भोजन डालते समय अपने पितरों का स्मरण करना चाहिए. मन ही मन उनसे श्राद्ध ग्रहण करने का निवेदन करना चाहिए और जाने-अनजाने हुई गलतियों की क्षमा मांगनी चाहिए, जिससे प्रसन्न होकर वे आशीर्वाद प्रदान करने वाले होते हैं।

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