गया में पिंडदान से मोक्ष प्राप्ति सहज || Vaibhav Vyas


 गया में पिंडदान से मोक्ष प्राप्ति सहज

पितृपक्ष में पूर्वजों की आत्मा की शांति पिंडदान और श्राद्ध करने की परंपरा है। ज्यादातर लोगों की इच्छा होती है कि वो गया जाकर ही पिंडदान करें। हिंदू मान्यताओं के अनुसार, पिंडदान मोक्ष प्राप्ति का एक सहज और सरल मार्ग है। यूं तो देश के कई स्थानों में पिंडदान किया जाता है, लेकिन बिहार के फल्गु तट पर बसे गया में पिंडदान का बहुत महत्व है। कहा जाता है कि भगवान राम और सीताजी ने भी राजा दशरथ की आत्मा की शांति के लिए गया में ही पिंडदान किया था। गया में पहले विभिन्न नामों की 360 वेदियां थीं, जहां पिंडदान किया जाता था। इनमें से अब 48 ही बची हैं। इन्हीं वेदियों पर लोग पितरों का तर्पण और पिंडदान करते हैं।

गया में श्राद्ध की पौराणिक मान्यता भी है। पौराणिक मान्यताओं और किवंदंतियों के अनुसार, भस्मासुर के वंश में गयासुर नामक राक्षस ने कठिन तपस्या कर ब्रह्माजी से वरदान मांगा था कि उसका शरीर देवताओं की तरह पवित्र हो जाए और लोग उसके दर्शन मात्र से पाप मुक्त हो जाएं। इस वरदान के मिलने के बाद स्वर्ग की जनसंख्या बढऩे लगी और प्राकृतिक नियम के विपरीत सब कुछ होने लगा। लोग बिना भय के पाप करने लगे और गयासुर के दर्शन से पाप मुक्त होने लगे। इससे बचने के लिए देवताओं ने यज्ञ के लिए पवित्र स्थल की मांग गयासुर से मांगी। गयासुर ने अपना शरीर देवताओं के यज्ञ के लिए दे दिया। जब गयासुर लेटा तो उसका शरीर पांच कोस में फैल गया। तबसे इस जगह को गया के नाम से जाना जाता है। यही कारण है कि आज भी लोग अपने पितरों को तारने के लिए पिंडदान के लिए गया आते हैं।

मान्यताओं के अनुसार फल्गु नदी के तट पर पिंडदान किए बिना पिंडदान हो ही नहीं सकता। पिंडदान की प्रक्रिया पुनपुन नदी के किनारे से प्रारंभ होती है। एक आम धारणा है कि एक परिवार से कोई एक ही गया करता है। गया करने का मतलब है कि गया में पितरों को श्राद्ध करना, पिंडदान करना. गरूड़ पुराण में लिखा गया है कि गया जाने के लिए घर से निकलने पर चलने वाले एक-एक कदम पितरों के स्वर्गारोहण के लिए एक-एक सीढ़ी बनते जाते हैं।

गया में श्राद्ध का भी विशेष महत्व माना गया है। गया को विष्णु का नगर माना गया है। यह मोक्ष की भूमि कहलाती है। विष्णु पुराण और वायु पुराण में भी इसकी चर्चा की गई है। विष्णु पुराण के मुताबिक, गया में पिंडदान करने से पूर्वजों को मोक्ष मिल जाता है और वे स्वर्ग चले जाते हैं। माना जाता है कि स्वयं विष्णु यहां पितृ देवता के रूप में मौजूद हैं, इसलिए इसे पितृ तीर्थ भी कहा जाता है। गया को 'मोक्षस्थलीÓ भी कहा जाता है। यहां साल में एक बार 17 दिन के लिए मेला लगता है जिसे पितृपक्ष मेला कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि पितृपक्ष में फल्गु नदी के तट पर विष्णुपद मंदिर के करीब और अक्षयवट के पास पिंडदान करने से पूर्वजों को मुक्ति मिलती है।

Comments