विधि-विधान से करें श्रीकृष्ण की पूजा-अर्चना || Vaibhav Vyas


 विधि-विधान से करें श्रीकृष्ण की पूजा-अर्चना

धार्मिक मान्यताओं में भाद्रपद माह विष्णु भगवान को अधिक प्रिय बताया गया है। जिसके चलते भक्त श्रावण माह में जिस तरह से पूरी श्रद्धा विश्वास से भगवान शंकर की पूजा करते हैं ठीक वैसे ही भादो के माह में श्री हरि की और इनके श्री कृष्ण स्वरूप की पूजा करते हैं। हिंदू धर्म के ग्रंथों में किए वर्णन के अनुसार इसी माह में भगवान नारायण ने श्री कृष्ण के रूप में जन्म लिया था। जिस कारण इस माह का महत्व अधिक बढ़ जाता है। ऐसे में जहां एक तरफ श्री कृष्ण से जुड़े उपाय आदि करने लाभदायक होते हैं। उसमें भी भाद्रपद माह के बृहस्पतिवार पूजा के लिए विशेष माने जाते हैं, क्योंकि बृहस्पतिवार के कारक देव ही श्री विष्णु हरि ही हैं।

इस मास में विशेष रूप से श्री कृष्ण भगवान की अराधना की जाती है। जो भी जातक इनकी इस माह में पूजा करना का इच्छुक हो उसे पूजन विधि से जुड़ी बातों का खास ध्यान रखना चाहिए, कि किस विधि से इनकी पूजा आदि करनी चाहिए। श्री कृष्ण की पूजा के तहत इस दौरान चौकी पर लाल कपड़ा बिछाएं, चौकी पर भगवान कृष्ण की मूर्ति एक पात्र में रखिए। इसके सामने दीपक जलाएं, साथ ही धूपबत्ती करें।

इसके बाद सबसे पहले श्री कृष्ण भगवान की पूजा का संकल्प और उसके पूरा होने की प्रार्थना करें। फिर श्री कृष्ण को पंचामृत से स्नान कराएं, उसके बाद गंगाजल से स्नान कराएं। फिर श्री कृष्ण की मूर्ति/प्रतिमा को साफ़-सुथरे या नए वस्त्र पहनाकर इनका श्रृंगार करें और एक बार फिर से इनके समक्ष दीप जलाकर, धूप दिखाएं। पूजा के दौरान इन्हें अष्टगंध चन्दन या रोली का ही तिलक लगाएं, जिसमें अक्षत मिले हों। वही भोग में श्री कृष्ण को उनकी सबसे प्रिय माखन-मिश्री और अन्य भोग सामग्री अर्पण कीजिए। हर व्यजंन में तुलसी का पत्ता विशेष रूप से हो।

फिर ध्यानपूर्वक श्रीकृष्ण के मंत्रों का यथासंभव जाप करना विशेष फलदायी रहता है। वैसे तो श्रीकृष्ण के मंत्रों की फेहरिस्त बहुत लम्बी हो जाती है फिर भी विशेषकर इन मंत्रों- ऊँ कृष्णाय नम:, ऊँ अच्युताय नम:, ऊँ अनन्ताय, नम: या फिर ऊँ गोविन्दाय नम: मंत्र का जाप पूरी श्रद्धा से करने पर निश्चय ही फलदायी होता है।

भाद्रपद माह में यदि संभव हो तो श्रीमद्भगवदगीता का वाचन-श्रवण भी करना चाहिए, क्योंकि माना जाता है कि श्रीमद्भगवदगीता का पाठ इस समय करना अति शुभ फलों का प्रदायक माना गया है। साथ ही आत्मिक संतुष्टि भी प्रस्फुटित होने लगती है।

Comments