भगवान कृष्ण का बाल स्वरूप है मनमोहक || Vaibhav Vyas


 भगवान कृष्ण का बाल स्वरूप है मनमोहक

भगवान विष्णु के आठवें अवतार के रूप में भगवान श्रीकृष्ण की पूजा-अर्चना की जाती है। श्रीकृष्ण के विभिन्न स्वरूपों की पूजा का भी विशेष प्रचलन अलग-अलग जगहों पर देखने-सुनने को मिलता है। जिससे उसका परिणाम उसी अनुसार मिलने वाला होगा है, खासकर बाल रूप में तो कान्हा की लीलाएं सभी के मन को लुभाती हैं। ऐसी मान्यता है कि भक्त सच्चे मन से भगवान कृष्ण को याद कर ले तो उसके जीवन की सभी परेशानियां दूर हो जाती हैं। उनको याद करने का सबसे सरल उपाय है मंत्र जाप करना। श्रीकृष्ण से संबंधित ऐसे सहज-सरल मंत्र हैं जिन्हें प्रतिदिन नियमपूर्वक जप करने से नकारात्मकता तो दूर होती ही है साथ में मंत्रों का जाप करने से मन शांत होकर कष्टों-मुसीबतों से छुटकारा दिलाने वाला भी होता है।

धन-वैभव, मुसीबतों, बीमारियों, दरिद्रता और सुख-समृद्धि के लिए अलग-अलग तरह के मंत्रों का जाप शीघ्र फलदायी माना गया है। आप अपनी समस्याओं के निराकरण के लिए किसी भी एक मंत्र का नियमपूर्वक जाप करते हैं तो निश्चित ही शीघ्र परिणाम सम्मुख आने वाले होंगे। जैसे-

हे कृष्ण द्वारकावासिन् क्वासि यादवनन्दन। आपद्भि: परिभूतां मां त्रायस्वाशु जनार्दन।।

जीवन में अचानक कोई बहुत बड़ी विपत्ति या मुसीबत आ जाए तो इस मंत्र का कम से कम 108 बार जप करें। मान्यता है कि इस मंत्र के जाप से श्रीकृष्ण की कृपा अवश्य मिलती है।

ऊँ नमो भगवते तस्मै कृष्णाया कुण्ठमेधसे। सर्वव्याधि विनाशाय प्रभो माममृतं कृधि।।

यह श्रीकृष्ण का गूढ़ मंत्र माना गया है जो सभी प्रकार के भय, संकट और बीमारियों को दूर करने में मदद करता है। जीवन में आने वाली बाधाएं दूर करने में भी यह मंत्र कारगर है। रोजाना सुबह नींद से जगते ही बिना किसी से कुछ बोले तीन बार इस मंत्र का जाप करने से बीमारियां दूर होती हैं और अनिष्ट का निवारण होता है।

ऊँ नमो भगवते श्री गोविन्दाय।

ऐसी मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण के इस मंत्र का जाप जो भी भक्त करता है उसे सुख, समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।

कृं कृष्णाय नम:।

यह भगवान श्रीकृष्ण का मूल मंत्र है और ऐसी मान्यता है कि इस मंत्र का जाप करने से व्यक्ति का धन अगर कहीं अटका हुआ हो तो उसकी प्राप्ति शीघ्र होने वाली हो सकती है। साथ ही इस मंत्र के जाप से घर-परिवार में सुख-शांति बनी रहती है।

श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारी

हे नाथ नारायण वासुदेवा।।

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