नि:स्वार्थ प्रेम और अटूट विश्वास से पाएं भक्ति || Vaibhav Vyas


 नि:स्वार्थ प्रेम और अटूट विश्वास से पाएं भक्ति

मन के हारे हार है, मन के जीते जीत। तात्पर्य यदि मन में दृढ़ निश्चय करके किसी भी काम को किया जाए तो उस काम की पूर्ति का पचास प्रतिशत सफल होने तो उसी समय निश्चित हो जाता है, और बाकी पचास प्रतिशत प्रयासपूर्ति से हो ही जाता है। ऐसा ही भगवान की भक्ति-कृपा प्राप्ति के लिए कोई दृढ़ संकल्पित होकर ईश्वराधना करे तो फिर भगवान की भक्ति-कृपा प्राप्ति में भी कोई बाधा या दूरी नहीं रहती। इसके लिए यदि कोई इन पांच बातों में से किसी एक में थोड़ा भी अग्रसर होता है तो उस बुद्धिमान व्यक्ति का कृष्ण के प्रति सुप्त प्रेम क्रमश: जागृत हो जाता है। नियमित भक्ति करते रहने से हृदय कोमल हो जाता है। धीरे धीरे सारी भौतिक इच्छाओं से विरक्ति हो जाती है, तब वह कृष्ण के प्रीति अनुरुक्त हो जाता है। जब यह अनुरुक्ति प्रगाढ़ हो जाती है तब यही भगवत्प्रेम कहलाती है। इसके लिए-

-भक्तों की संगति करना

-भगवान कृष्ण की सेवा में लगना

-श्रीमद् भागवत का पाठ करना

-भगवान के पवित्र नाम का कीर्तन करना

-वृन्दावन या मथुरा में निवास करना।

इनमें से कुछ भी संकल्पित हो कर धारण किया जाए तो प्रेमरस में सरोबार हुआ जा सकता है। क्योंकि कहा गया है कि दुनिया में दो ही पौधे ऐसे हैं जो कभी मुरझाते नहीं। अगर जो मुरझा गए तो उसका कोई इलाज नहीं। पहला- नि:स्वार्थ प्रेम और दूसरा- अटूट विश्वास।

नि:स्वार्थ प्रेम और अटूट विश्वास से मुश्किल से मुश्किल बाधा पर भी पार पाया जा सकता है। फिर चाहे वह आध्यात्मिक हो भौतिक बाधा। मन का होना ही अशांति का कारण है दुनिया में प्राय: तीन तरह के अशांत लोग मिल जाएंगे। पहले अशांत को दुर्जन का नाम दिया जा सकता है। दुर्जन वह व्यक्ति है जो भीतर से भी अशांत है और बाहर से भी। दूसरी श्रेणी में सज्जन लोग आते हैं। ये भीतर से थोड़े गड़बड़ लेकिन, बाहर से ठीक-ठाक होते हैं। इनके भीतर अशांति अंगड़ाई ले रही होती है, पर चूंकि सज्जन हैं, इसलिए जैसे-तैसे उसे संभाल लेते हैं। ऐसे लोग शांत होने का अभिनय करने में इतने दक्ष हो जाते हैं कि असली शांति क्या होती है, भूल जाते हैं। तीसरी श्रेणी के लोग हैं संत जो कि भीतर-बाहर दोनों से शांत होते हैं। केवल शरीर से संत एक आवरण हो सकता है, लेकिन संत बनने के लिए मन पर काम करना पड़ता है। इसीलिए कहा गया है कि मन के हारे हार, मन के जीते जीत।

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