रक्षाबंधन पर्व पर दस प्रकार का स्नान || Vaibhav Vyas


 रक्षाबंधन पर्व पर दस प्रकार का स्नान 

श्रावण महीने में  रक्षाबंधन की पूर्णिमा वाले दिन वेदों में दस प्रकार के स्नान का महत्व बताया गया है। रक्षाबंधन पर्व 22 अगस्त, 2021 रविवार वाले दिन मनाया जाएगा।

1-  भस्म स्नान - उसके लिए यज्ञ की भस्म थोड़ी-सी लेकर वो ललाट पर थोड़ी शरीर पर लगाकर स्नान किया जाता है। यज्ञ की भस्म अगर उपलब्ध नहीं है तो गौचंदन धूपबत्ती घरों में जलाते हैं। उस समय अपने इष्टमंत्र, गुरुमंत्र का जाप करते रहें पश्चात् उसकी भस्म बचेगी उसे काम ले सकते हैं क्योंकि जप भी एक यज्ञ है।

2- मृत्तिका स्नान- इसको दूसरा स्नान माना गया है।

3- गोमय स्नान - गोमय स्नान यानि गौ का गोबर उसमे थोड़ा गोझरण मिक्स हो उसका स्नान माना गया है। वेद मेें कहा गया इसलिए गौमाता के गोबर में (देशी गाय के) लक्ष्मी का वास माना गया है।

4- पंचगव्य स्नान- गौ का गोबर, गोमूत्र, गाय के दूध के दही, गाय का दूध और घी- ये पंचगव्य कहलाता है। इसके स्नान से शरीर स्वस्थ रहें, पुष्ट रहें, बलवान रहें ताकि सेवा और साधना करते रहे, भक्ति करते रहें।

5- गोरज स्नान- गायों के पैरों की मिट्टी थोड़ी ले, और वो लगा ले। गवां ख़ुरेंम ये वेद में आता है इसका नाम है दशविद स्नान जिसे रक्षाबंधन के दिन किया जाता है।

6-  धान्यस्नान - सप्तधान्य स्नान जिसमें गेंहूँ, चावल, जौ, चना, तिल, उड़द और मूंग ये सात चीजें होती है, इनसे स्नान किया जाता है। वेदों में सप्तधान स्नान श्रावण पूर्णिमा के दिन लगाने का विधान है। 

7- फल स्नान- वेद भगवान कहते हैं फल स्नान मतलब कोई भी फल का थोडा रस, नहीं तो आँवला बढियाँ फल है, स्नान करनी चाहिए। इससे जीवन में अनंत फल की प्राप्ति हो और सांसारिक  फल की आसक्ति छूट जाती है।

8- सर्वोषौधि स्नान- सर्वोषौधि यानि आयुर्वेदिक औषधि, इस स्नान में कई जड़ी-बूटी आती हैं। जैसे दूर्वा, सरसों, हल्दी, बेलपत्र ये सब डालते हैं  उसमें वो थोड़ा-सा पाऊडर  लेके शरीर पर रगड के स्नान किया जाता है जिससे सब इन्द्रियाँ आँख, कान, नाक, जीभ, त्वचा ये सब पवित्र रहे।

9- कुशोधक स्नान- कुश को थोड़ा पानी में मिलाकर स्नान का महत्व बताया गया है। कुश को परम पवित्र माना गया है। इस स्नान से मन में मलिन विचार दूर होने लगते हैं।

10-  हिरण्य स्नान- हिरण्य स्नान माने अगर अपने पास कोई सोने की चीज है। कोई सोने का गहना वो बाल्टी में डाल दिया, हिला दिया और स्नान कर लिया।

ये दशविद स्नान श्रावण पूर्णिमा को करने का विधान वेद में बताया गया है। इसमें से आप जितने कर सकते हो उतने कर लेने के पश्चात शरीर पर पानी डालते समय ये श्लोक बोलना-

ऊँ नमामि गंगे तव पाद पंकजं सुरासुरै: वंदित दिव्यरूपं।

भुक्तिचं मुक्तिचं ददासनित्यं भावानुसारें न सारे न सदा स्मरानाम।।

गंगेच यमुनेच गोदावरी सरस्वती नर्मदे सिंधु कावेरी।

जलस्म्ये सन्निधिं कुरु।।

ऊँ ह्रीं गंगाय ऊँ ह्रीं स्वाहा।।

तीर्थों का स्मरण करते हुये स्नान करें तो ये बड़ा पुण्यदायी स्नान श्रावण पूर्णिमा (रक्षाबंधन) के दिन प्रभात को किया जाना चाहिये, ऐसा वेदोक्त वाक्य है।

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