भक्ति भाव से करें भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना || Vaibhav Vyas


 भक्ति भाव से करें भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना

शास्त्रों में बताया गया है कि भगवान कृष्ण को भाद्रपद महीना सबसे प्रिय है। यह पवित्र चातुर्मास के 4 महीनों में दूसरा महीना है। इस महीने के स्वामी चंद्रमा कहलाते हैं। वेदों और पुराणों में इस महीने से जुड़े पूजा-पाठ और खान-पान के विशेष नियम बताए गए हैं, जिनका पालन हर व्यक्ति को करना चाहिए। भगवान कृष्ण के प्रिय इस महीने में भगवान ऋषिकेश की भी पूजा होती है। भगवान कृष्ण और उनके ज्येष्ठ भ्राता बलराम का जन्म भी इसी महीने में हुआ है। इस कारण यह भगवान कृष्ण का प्रिय मास कहा जाता है। व्रत और त्योहार की दृष्टि से यह महीना बेहद खास माना जाता है।

भाद्र मास में भगवान श्रीगणेश की पूजा के बाद बालगोपाल की प्रतिमा का दक्षिणावर्ती शंख से अभिषेक करना चाहिए और उन्हें माखन-मिश्री का भोग लगाना चाहिए। भोग में तुलसी का पत्ता अवश्य डालना चाहिए। दूध में केसर मिलाकर बालगोपाल को अर्पित करें और प्रसाद के रूप में घर के सभी सदस्यों को दें। भगवान के लिए नए पीले चमकीले वस्त्र लेकर आएं। इसके साथ ही ऊं कृष्णाय मंत्र का नित्य जप करें।

भाद्रपद मास में आयुर्वेद की दृष्टि से शुद्ध शाकाहारी रहकर पूजा-उपासना करने से भगवान की कृपा शीघ्र मिलने वाली मानी गई है। इस महीने में मांस, शहद, गुड़, हरी सब्जी, मूली एवं बैंगन नहीं खाना चाहिए। इससे स्वास्थ्य संबंधित समस्याएं हो सकती हैं। इसके पीछे वैज्ञानिक कारण यह है कि इस महीने में बरसात की अधिकता के हरी पत्तेदार सब्जियां सडऩे लगती हैं और उनमें विषाणु उत्पन्न हो जाते हैं। भाद्रपद में तेल से बनी चीजें भी खाने से बचना चाहिए। भाद्र महीने में भगवान विष्णु और उनके अवतारों की पूजा का विशेष महत्व होता है। इस कारण इस महीने में नशे आदि से दूर रह कर पूजा-अर्चना करने से शुभ फल की प्राप्ति होने लगती है।

भाद्रपद महीने में भगवान कृष्ण का जन्मोत्सव मनाया जाता है। कान्हाजी को मक्खन बहुत प्रिय था, इसलिए इस महीने में आपको भी मक्खन और मिश्री का सेवन करना चाहिए। इससे स्वास्थ्य लाभ मिलता है। गाय के घी का सेवन से शरीर को बल मिलता है। वहीं नहाने के पानी में गौमूत्र के इस्तेमाल से समस्त पापों का नाश होता है। इस महीने भगवान विष्णु के किसी भी स्वरूप की पूजा-अर्चना करने से उसी अनुरूप फल की प्राप्ति होने वाली रहती है इसलिए किसी भी स्वरूप की पूजा करें उसमें भाव की प्रमुखता होना जरूरी है, क्योंकि भगवान भाव के भूखे होते हैं।

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