कलयुग केवल नाम आधारा || Vaibhav Vyas


 कलयुग केवल नाम आधारा

शास्त्रों-पुराणों में कहा गया है कि कलियुग में नाम संकीर्तन के अलावा जीव के उद्धार का अन्य कोई भी उपाय नहीं है। बृहन्नार्दीय पुराण में आता है-

हरेर्नाम हरेर्नाम हरेर्नामैव केवलं।

कलौ नास्त्यैव नास्त्यैव नास्त्यैव गतिरन्यथा।।

अर्थात् कलियुग में केवल हरिनाम, हरिनाम और हरिनाम से ही उद्धार हो सकता है। हरिनाम के अलावा कलियुग में उद्धार का अन्य कोई भी उपाय नहीं है! नहीं है! नहीं है! कृष्ण तथा कृष्ण नाम अभिन्न हैं- कलियुग में तो स्वयं कृष्ण ही हरिनाम के रूप में अवतार लेते हैं। केवल हरिनाम से ही सारे जगत का उद्धार संभव है-

कलि काले नाम रूपे कृष्ण अवतार। 

नाम हइते सर्व जगत निस्तार।।

पद्मपुराण में कहा गया है-

नाम: चिंतामणि कृष्णश्चैतन्य रस विग्रह:।

पूर्ण शुद्धो नित्यमुक्तोस्भिन्नत्वं नाम नामिनो:।।

हरिनाम उस चिंतामणि के समान है जो समस्त कामनाओं को पूर्ण सकता है। हरिनाम स्वयं रसस्वरूप कृष्ण ही हैं तथा चिन्मयत्त्व (दिव्यता) के आधार हैं। हरिनाम पूर्ण हैं, शुद्ध हैं, नित्यमुक्त हैं। नामी (हरि) तथा हरिनाम में कोई अंतर नहीं है। जो कृष्ण हैं- वही कृष्णनाम है। जो कृष्णनाम है- वही कृष्ण हैं। कृष्ण के नाम का किसी भी प्रामाणिक स्त्रोत से श्रवण उत्तम है, परन्तु शास्त्रों और पुराणों के अनुसार कलियुग में हरे कृष्ण महामंत्र ही बताया गया है। कलियुग में इस महामंत्र का संकीर्तन करने मात्र से प्राणी मुक्ति के अधिकारी बन सकते हैं। कलियुग में भगवान की प्राप्ति का सबसे सरल किंतु प्रबल साधन उनका नाम-जप ही बताया गया है। श्रीमद्भागवत गीता का कथन है- यद्यपि कलियुग दोषों का भंडार है तथापि इसमें एक बहुत बड़ा सद्ग्गुण यह है कि सतयुग में भगवान के ध्यान (तप) द्वारा, त्रेतायुग में यज्ञ-अनुष्ठान के द्वारा, द्वापर युग में पूजा-अर्चना से जो फल मिलता था, कलियुग में वह पुण्यफलश्रीहरि के नाम-संकीर्तन मात्र से ही प्राप्त हो जाता है।

राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे।

सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने।। 

स्वयं भगवान शिव ने कहा- हे पार्वती! मैं निरंतर राम नाम के पवित्र नामों का जप करता हूँ, और इस दिव्य ध्वनि में आनंद लेता हूँ । रामचन्द्र का यह पवित्र नाम भगवान विष्णु के एक हजार पवित्र नामों (विष्णुसहस्त्रनाम) के तुल्य है।

ब्रह्माण्ड पुराण में कहा गया है-

सहस्त्र नाम्नां पुण्यानां, त्रिरा-वृत्त्या तु यत-फलम् ।

एकावृत्त्या तु कृष्णस्य, नामैकम तत प्रयच्छति।।

विष्णु के तीन हजार पवित्र नाम (विष्णुसहस्त्रनाम) जप के द्वारा प्राप्त परिणाम ( पुण्य ), केवल एक बार कृष्ण के पवित्र नाम जप के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है।

भक्तिचंद्रिका में महामंत्र का माहात्म्य इस प्रकार वर्णित है-बत्तीस अक्षरों वाला नाम-मंत्र सब पापों का नाशक है, सभी प्रकार की दुर्वासनाओं को जलाने के अग्नि-स्वरूप है, शुद्धसत्त्वस्वरूप भगवद्वृत्ति वाली बुद्धि को देने वाला है, सभी के लिए आराधनीय एवं जप करने योग्य है, सबकी कामनाओं को पूर्ण करने वाला है। इस महामंत्र के संकीर्तन में सभी का अधिकार है। यह मंत्र प्राणिमात्र का बान्धव है, समस्त शक्तियों से सम्पन्न है, आधि-व्याधि का नाशक है। इस महामंत्र की दीक्षा में मुहूत्र्त के विचार की आवश्यकता नहीं है। इसके जप में बाह्यपूजा की अनिवार्यता नहीं है। केवल उच्चारण करने मात्र से यह सम्पूर्ण फल देता है। इस मंत्र के अनुष्ठान में देश-काल का भी कोई प्रतिबंध नहीं है।

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