भावनात्मक संबंधों का प्रतीक पर्व रक्षाबंधन || Vaibhav Vyas


 भावनात्मक संबंधों का प्रतीक पर्व रक्षाबंधन

रक्षाबंधन पर्व का ऐतिहासिक, सामाजिक, आध्यात्मिक और राष्ट्रीय महत्व है। यह भाई एवं बहन के भावनात्मक संबंधों का प्रतीक पर्व है। इस दिन बहन भाई की कलाई पर रेशम का धागा बांधती है तथा उसके दीर्घायु जीवन एवं सुरक्षा की कामना करती है। बहन के इस स्नेह बंधन से बंधकर भाई उसकी रक्षा के लिए कृत संकल्प होता है। रक्षा बंधन का शाब्दिक अर्थ रक्षा करने वाला बंधन मतलब पवित्र धागा है। इस पर्व में बहनें अपने भाई की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधती हैं और बदले में भाई जीवन भर उनकी रक्षा करने का वचन देते हैं। रक्षा बंधन को राखी या सावन के महीने में पडऩे की वजह से श्रावणी व सलोनी भी कहा जाता है। यह श्रावण माह के पूर्णिमा में पडऩे वाला प्रमुख त्योहार है।

श्रावणी पूर्णिमा में, रेशम के धागे से बहन द्वारा भाई के कलाई पर बंधन बांधे जाने की रीत को रक्षा बंधन कहते हैं। पहले के समय रक्षा के वचन का यह पर्व विभिन्न रिश्तों के अंतर्गत निभाया जाता था पर समय बीतने के साथ यह भाई बहन के बीच का प्यार बन गया है।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार देवताओं और असुरों में युद्ध आरंभ हुआ। युद्ध में हार के परिणाम स्वरूप, देवताओं ने अपना राज-पाट सब युद्ध में गंवा दिया। अपना राज-पाट पुन: प्राप्त करने की इच्छा से देवराज इंद्र  देवगुरु बृहस्पति से मदद की गुहार करने लगे। तत्पश्चात देव गुरु बृहस्पति ने श्रावण मास की पूर्णिमा के प्रात: काल में निम्न मंत्र से रक्षा विधान संपन्न किया-

येन बद्धो बलिराजा दानवेन्द्रो महाबल:।

तेन त्वामभिवध्नामि रक्षे मा चल मा चल:।।

इस पूजा से प्राप्त सूत्र को इंद्राणी ने इंद्र के हाथ पर बांध दिया। जिससे युद्ध में इंद्र को विजय श्री प्राप्त हुई और उन्हें अपना हारा हुआ राज पाट दुबारा मिल गया। ऐसी मान्यता है कि तब से ही यह रक्षा बंधन का त्योहार मनाया जाने लगा।

ऐसी मान्यता भी है कि श्रावणी पूर्णिमा या संक्रांति तिथि को राखी बांधने से बुरे ग्रह कटते हैं। श्रावण की अधिष्ठात्री देवी द्वारा ग्रह दृष्टि-निवारण के लिए महर्षि दुर्वासा ने रक्षाबंधन का विधान किया। इतिहास में आए उल्लेख के अनुसार मेवाड़ की महारानी कर्मावती ने मुगल राजा हुमायूं को राखी भेजकर रक्षा-याचना की थी। हुमायूं ने मुसलमान होते हुए भी राखी की लाज रखी।

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