भगवान नाम स्मरण से होते हैं दोष दूर || Vaibhav Vyas

 

भगवान नाम स्मरण से होते हैं दोष दूर

एक बार की बात है द्वापर युग के अंत में जब देवर्षि नारद ने ब्रह्माजी से कलियुग में कलि के प्रभाव से मुक्त होने का उपाय पूछा, तब सृष्टिकर्ता ने कहा- आदिपुरुष भगवान नारायण के नामोच्चारण से मनुष्य कलियुग के दोषों को नष्ट कर सकता है। नारदजी के द्वारा उस नाम-मंत्र को पूछने पर हिरण्यगर्भ ब्रह्माजी ने बताया-

हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।

हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।

इति षोडषकं नाम्नाम् कलि कल्मष नाशनं ।

नात: परतरोपाय: सर्व वेदेषु दृश्यते।।

अर्थात् सोलह नामों वाले महामंत्र का कीर्तन ही कलियुग में कल्मष का नाश करने में सक्षम है। इस मन्त्र को छोड़ कर कलियुग में उद्धार का अन्य कोई भी उपाय चारों वेदों में कहीं भी नहीं है।

अथर्ववेद के चैतन्योपनिषद में आता है-

स: ऐव मूलमन्त्रं जपति हरेर इति कृष्ण इति राम इति।

अर्थात् भगवन गौरचन्द्र सदैव महामंत्र का जप करते हैं जिसमे पहले 'हरेÓ नाम, उसके बाद 'कृष्णÓ नाम तथा उसके बाद 'रामÓ नाम आता है। ऊपर वर्णित क्रम के अनुसार महामंत्र का सही क्रम यही है की यह मंत्र 'हरे कृष्ण हरे कृष्णÓ से शुरू होता है।

पद्मपुराण में आए वर्णन के अनुसार-

द्वत्रिन्षदक्षरं मन्त्रं नाम षोडषकान्वितं ।

प्रजपन् वैष्णवो नित्यं राधाकृष्ण स्थलं लभेत्।।

अर्थात् जो वैष्णव नित्य बत्तीस वर्ण वाले तथा सोलह नामों वाले महामंत्र का जप तथा कीर्तन करते हैं- उन्हें श्रीराधाकृष्ण के दिव्य धाम गोलोक की प्राप्ति होती है। विष्णुधर्मोत्तर में लिखा है कि श्रीहरि के नाम-संकीर्तन में देश-काल का नियम लागू नहीं होता है। जूठे मुंह अथवा किसी भी प्रकार की अशुद्ध अवस्था में भी नाम-जप को करने का निषेध नहीं है। श्रीमद्भागवत महापुराण का तो यहां तक कहना है कि जप-तप एवं पूजा-पाठ की त्रुटियां अथवा कमियां श्रीहरि के नाम- संकीर्तन से ठीक और परिपूर्ण हो जाती हैं। हरि-नाम का संकीत्र्तन ऊंची आवाज में करना चाहिए।

जपतो हरिनामानिस्थानेशतगुणाधिक:।

आत्मानञ्चपुनात्युच्चैर्जपन्श्रोतृन्पुनातपच।।

अर्थात् हरि-नाम को जपने वाले की अपेक्षा उच्च स्वर से हरि-नाम का कीर्तन करने वाला अधिक श्रेष्ठ है, क्योंकि जपकर्ता केवल स्वयं को ही पवित्र करता है, जबकि नाम- कीर्तनकारी स्वयं के साथ-साथ सुनने वालों का भी उद्धार करता है। यहां तक कि-

वेदेरामायणेचैवपुराणेभारतेतथा।

आदावन्तेचमध्येचहरि: सर्वत्र गीयते।।

वेद, रामायण, महाभारत और पुराणों में आदि, मध्य और अंत में सर्वत्र श्रीहरि का ही गुण-गान किया गया है।

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