उज्जैन में विशिष्ठ है महाकाल की भस्म आरती || Vaibhav Vyas

 

उज्जैन में विशिष्ठ है महाकाल की भस्म आरती

उज्जैन के श्री महाकालेश्वर भारत के 12 प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है. महाकालेश्वर मंदिर की महिमा का विभिन्न पुराणों में विशद वर्णन किया गया है। उज्जैन भारतीय समय गणना के लिए केंद्रीय बिंदु हुआ करता था और महाकाल को उज्जैन का विशिष्ट पीठासीन देवता माना जाता था। मान्यता है आज भी समय के देवता, शिव अपने सभी वैभव में उज्जैन में शाश्वत शासन करते हैं। उज्जैन के महाकाल में लिंगम स्वयं के भीतर से शक्ति को प्राप्ति करने के लिए माना जाता है। महाकालेश्वर की मूर्ति दक्षिणमुखी होने की वजह से ये दक्षिणामूर्ति मानी जाती है। महाकाल के ऊपर गर्भगृह में ओंकारेश्वर की मूर्ति भी प्रतिष्ठित है।

इस मंदिर के गर्भगृह के पश्चिम, उत्तर और पूर्व में गणेश, पार्वती और कार्तिकेय के चित्र स्थापित हैं, दक्षिण में नंदी की प्रतिमा है। तीसरे तल्ले पर नागचंद्रेश्वर की मूर्ति है जो केवल नागपंचमी के दिन दर्शन के लिए खुली होती है। महाशिवरात्रि के दिन मंदिर के पास एक विशाल मेला लगता है और रात के चारों प्रहर की यहां पूजा होती है।

भस्म आरती- उज्जैन में महाकालेश्वर की भस्म आरती प्रसिद्ध है। भगवान महाकालेश्वर को श्रद्धा सुमन अर्पित करने के लिए ये आरती हर रोज सुबह 4 बजे की जाती है। यहां एक ज्योतिर्लिंग मौजूद है, जो परमात्मा ज्योतिस्वरूप माना जाता है। भस्म आरती एक विशेष प्रकार की आरती है जो उज्जैन में ब्रह्म मुहूर्त (सूर्योदय से लगभग दो घंटे पहले) के दौरान की जाती है। पुजारी पवित्र मंत्रों का उच्चारण करते हुए महादेव को पवित्र राख (भस्म) चढ़ाते हैं। आरती करते समय इस तरह का वातावरण होता है कि भक्तों को उनके सामने परमात्मा की उपस्थिति का अहसास होता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, भगवान शिव को काल या मृत्यु का स्वामी माना गया है। इसी वजह से 'शवÓ से 'शिवÓ नाम बना। महादेव के अनुसार, शरीर नश्वर है और इसे एक दिन भस्म की तरह राख हो जाना है और शिव के अलावा किसी का भी काल पर नियंत्रण नहीं है। भगवान शिव को पवित्र भस्म लगाया जाता है, जो भस्म लगाए हुए ध्यान करते हुए दिखाई देते हैं। कहा जाता है कि भस्म आरती भगवान शिव को जगाने के लिए की जाती है इसलिए आरती सुबह 4 बजे की जाती है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि प्राचीन समय में उज्जैन में महाराज चंद्रसेन का शासन था, जो भागवान शिव के परमभक्त थे। न केवल चंद्रसेन बल्कि उज्जैन की प्रजा भी भगवान शिव को बहुत पूजती थी. एक बार राजा रिपुदमन ने चंद्रसेन के महल पर हमला कर दिया और राक्षस दूषण के माध्यम से प्रजा को काफी नुकसान पहुंचाया। ऐसे में प्रजा ने भगवान शिव को याद किया और भगवान शिव ने वहां स्वयं आकर दुष्ट राक्षस का अंत किया। इसके बाद राक्षस के राख से अपना श्रृंगार किया और वो हमेशा लिए वहां बस गए, तभी से ऐसा माना जाता है कि उस जगह का नाम महाकालेŸवर रखा गया और यहां भस्म आरती की जाने लगी।

मान्यता अनुसार स्वयंभू, भव्य और दक्षिणमुखी होने के कारण महाकालेश्वर महादेव की अत्यन्त पुण्यदायी महत्ता मानी गई है। इसी वजह से यहां पर ऐसी मान्यता है कि इसके दर्शन मात्र से ही मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है।

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