श्रीकृष्ण जन्मोत्सव की बहुत-बहुत शुभकामनाएं..|| Vaibhav Vyas

 श्रीकृष्ण जन्मोत्सव की बहुत-बहुत शुभकामनाएं

जिस अवतारी विचार को कोई भी कारागृह कैद नहीं रख पाया, उस अवतार के विचार ने इस जीव-जगत को एक नया चेतना का विस्तार दिया जिसमें ज्ञान योग, कर्म योग और भक्ति योग की स्थितियां समाहित रही। जिसने सृष्टि में प्रेम का उदाहरण प्रस्तुत किया, ये बताया कि कहां पर युद्ध छोड़ देना आवश्यक है और ये बताया कि कहां रणधीर वहां अडिग रहना आवश्यक है। किस तरह से अवतारी स्वरूप का विराट विस्तार सामने निकलकर आता है तो अहंकार किस तरह से बौना साबित हो जाता है। भले ही स्वयं के मामा हो, किन्तु जहां पर मर्दन की स्थितियां आई वहां एक क्षण भी पीछे हटने के स्वरूप को सामने नहीं रखा। जहां पर शिशुपाल वध की स्थितियां आई, किन्तु इसके पहले बारम्बार उस व्यक्ति को ये बताया कि हम आगाह कर रहे हैं, हम चेतावनी दे रहे हैं, किन्तु उसके बाद परिणाम के साथ में तुम्हें अडिग रहने की आवश्यकताएं रहेगी। कहीं पर तपस्वियों को निरन्तर तपस्या के बाद भी वो स्वरूप उपलब्ध नहीं हुआ, किन्तु कहीं स्वयं श्री हरि सहजता के साथ उन सभी के सम्मुख आतुर रहे, जहां पर भावना के भीतर सिर्फ और सिर्फ प्रेम और वात्सलय विद्यमान रहा।

अर्जुन को निरन्तर सुना और सुनने के बाद अपनी बात को रखा। श्रवण की परम्परा और महत्व जीवन के भीतर कितना आवश्यक है ये एक स्वरूप के साथ और एक विस्तारित अनुभव के साथ बताने का कार्य किया। जब जीवन के भीतर की स्थितियों को गहराई के साथ में श्रीमद भगवत गीता में रखा तो यह भी कहा कि ब्रह्मार्पणं ब्रह्महविब्र्रह्माग्नौ ब्रह्मणा हुतम्। ब्रह्मैव तेन गन्तव्यं ब्रह्मकर्मसमाधिना। तो वहीं उस श्रीमद भगवत गीता की पूर्णता के साथ पुन: संजय ने कहा- लाभस्ते श्यामजयस्ते श्याम, कुतुस्ते श्याम, पराजय: ये श्याम इनदेवश्र्यामो हृदयस्थोर्जनार्दन, वहां विजय और सिर्फ विजय है जहां श्रीकृष्ण स्वयं विद्यमान, मौजूद और प्राणी मात्र में चेतना के स्वरूप के साथ में है। जब भीष्म के साथ संवाद किया तो वहां पर भी जीव-जगत को एक अलग दर्शन देने का कार्य किया। जब बाल सुलभ चंचलता के साथ में आए तो माखन चोर कहलाए। और वहीं पर किसी और स्वरूप के साथ श्याम कहलाए। कहीं किसी और स्वरूप के साथ द्वारकाधीश कहलाए। कहीं किसी स्वरूप में किशोर नाम से तो कहीं किसी स्वरूप के साथ बांके बिहारी की छवि के रूप में एक निरन्तर आभा प्रत्येक व्यक्ति को चमत्कृत करती चली गई। भक्ति का स्वरूप क्या है? आस्था  का स्वरूप क्या है? कर्म का स्वरूप विस्तारित आधार पर होना चाहिए वो श्रीकृष्ण के नाम से साथ पूर्णतया जीवन में रचा-बसा हुआ नजर आता है। एक तरफ जहां प्रथमा के साथ सुदर्शन रहा तो वहीं पर इसी स्थिति के साथ में कंठ में मानवीय जीवन का दर्शन गहराई से उपस्थित रहने वाला रहा। जहां प्रथमा के साथ में पुन: बात करूं तो सुदर्शन रहा और वहीं आप देखे प्रथमा, मध्यमा, कनिष्का के साथ निरन्तर बांसुरी के सिरों को नया रूप मिला। ये सारे ही स्थितियां श्रीकृष्ण के साथ जुड़ी हुई है। इस अवसर और उत्सव पर बारम्बार शुभकामनाएं श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की प्रेषित करते हैं। बारम्बार इस दिवस में निवेदन है जहां आप निराशाओं के साथ में हो, जहां पर जीवन में किसी भंवर में उलझा हुआ पाएं, ऊहापोह हो, निर्णय-अनिर्णय पीछा नहीं छोड़ रहे हों, सही और गलत क्या है ये भीतर से बाहर निकलकर नहीं आ पा रहा, जहां अनुभव धोखा दे रहे हों, अपने पराये लगने लगे और पराये अपने है या नहीं इस विद्रोह के भीतर मन निरन्तर चलता रहे। चित्त की एकाग्रता कहीं पर भी महसूस नहीं हो। मानवीय जीवन उस भटकाव के साथ में हो जहां पर कोई भी प्रवृत्ति समझ में नहीं आ रही हो, क्या करना है, क्या करेंगे , क्यों आए है कहां जाएंगे? कर्म स्वरूप विस्तारित तौर पर क्या है, ये समझना है तो एक बार श्रीमद भगवत गीता की ओर बढऩे का प्रयास जरूर करना चाहिए। मानवीय जीवन एक नवचेतना के स्वरूप को भीतर तक मोहित करने वाला और कर्मशील करने वाला हो जाता है।

आप सभी को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की बारम्बार शुभकामनाएं।

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