शिव की भक्ति पाने का सरल उपाय शिव मानस पूजा || Vaibhav Vyas

 

शिव की भक्ति पाने का सरल उपाय शिव मानस पूजा

भगवान तो भाव के भूखे होते हैं। आज की व्यस्तता भरी जीवनशैली में अगर कोई शिवालय नहीं जा सकते हैं, या घर से दूर हैं, तब भी जहां कहीं भी हैं, वहां केवल भाव से शिव मानस पूजा ही कर ली जाए तो शिव की कृपा के अनायास ही पात्र बन जाते हैं, उसमें भी श्रावण मास में की गई ऐसी पूजा से मन सदा प्रफुल्लित रहने लगता है। इसलिए सावन के इस महीने में भोलेनाथ की पूजा के लिए शिव मानस पूजा करें। मन में भाव के साथ की गई आराधना न सिर्फ शिव भक्ति देगी, बल्कि भाव-विभोर कर देगा।
शंकराचार्य के द्वारा रची गई शिव-मानस पूजा के श्लोक संस्कृत में हैं अगर संस्कृत का उच्चारण न हो पाए तो हिन्दी अनुवाद को भी कंठस्थ कर इसका श्रवण-वाचन और मनन करके भक्ति के सोपान पाए जा सकते हैं।

रत्नै: कल्पित मासनं हिमजलै: स्नानं च दिव्यांबरं
नानारत्नविभूषितं मृगमदामोदांकितं चंदनम् ।
जातीचंपकबिल्वपत्ररचितं पुष्पं च धूपं तथा दीपं
देवदयानिधे पशुपते हृत्कल्पितं गृह्यताम् ।1।

अर्थ- मैं अपने मन में ऐसी भावना करता हूँ कि हे पशुपति देव! संपूर्ण रत्नों से निर्मित इस सिंहासन पर आप विराजमान होइए। हिमालय के शीतल जल से मैं आपको स्नान करवा रहा हूं। स्नान के उपरांत रत्नजडि़त दिव्य वस्त्र आपको अर्पित है। केसर-कस्तूरी में बनाया गया चंदन का तिलक आपके अंगों पर लगा रहा हूं। जूही, चंपा, बिल्वपत्र आदि की पुष्पांजलि आपको समर्पित है। सभी प्रकार की सुगंधित धूप और दीपक मानसिक प्रकार से आपको दर्शित करवा रहा हूं, आप ग्रहण कीजिए।

सौवर्णे मणिखंडरत्नरचिते पात्रे घृतं पायसं भक्ष्यं
पंचविधं पयोदधियुतं रंभाफलं पानकम् ।
शाकानामयुतं जलं रुचिकरं कर्पूर खंडोज्ज्वलं
तांबूलं मनसा मया विरचितं भक्त्या प्रभोस्वीकुरु।2।

अर्थ- मैंने नवीन स्वर्णपात्र, जिसमें विविध प्रकार के रत्न जडि़त हैं, में खीर, दूध और दही सहित पांच प्रकार के स्वाद वाले व्यंजनों के संग कदलीफल, शर्बत, शाक, कपूर से सुवासित और स्वच्छ किया हुआ मृदु जल एवं ताम्बूल आपको मानसिक भावों द्वारा बनाकर प्रस्तुत किया है। हे कल्याण करने वाले! मेरी इस भावना को स्वीकार करें।

छत्रं चामरयोर्युगं व्यजनकं चादर्शकं निर्मलं
वीणाभेरि मृदंग काहलकला गीतं च नृत्यं तधा।
साष्टांगं प्रणति: स्तुति र्बहुविधा एतत्समस्तं
मया संकल्पेन समर्पितं तव विभो पूजां गृहाण प्रभो।3।

अर्थ- हे भगवन, आपके ऊपर छत्र लगाकर चंवर और पंखा झल रहा हूं। निर्मल दर्पण, जिसमें आपका स्वरूप सुंदरतम व भव्य दिखाई दे रहा है, भी प्रस्तुत है। वीणा, भेरी, मृदंग, दुन्दुभि आदि की मधुर ध्वनियां आपको प्रसन्नता के लिए की जा रही हैं। स्तुति का गायन, आपके प्रिय नृत्य को करके मैं आपको साष्टांग प्रणाम करते हुए संकल्प रूप से आपको समर्पित कर रहा हूं। प्रभो! मेरी यह नाना विधि स्तुति की पूजा को कृपया ग्रहण करें।

आत्मा त्वं गिरिजा मति स्सहचरा: प्राणाश्शरीरं गृहं
पूजाते विषयोपभोगरचना निद्रा समाधि स्थिति: ।
संचार: पदयो: प्रदक्षिणविधि: स्तोत्राणि सर्वागिरो
यद्यत्कर्म करोमि तत्तदखिलं शम्भोतवाराधनम् ।4।

अर्थ- हे शंकरजी, मेरी आत्मा आप हैं। मेरी बुद्धि आपकी शक्ति पार्वतीजी हैं। मेरे प्राण आपके गण हैं। मेरा यह पंच भौतिक शरीर आपका मंदिर है। संपूर्ण विषय भोग की रचना आपकी पूजा ही है। मैं जो सोता हूं, वह आपकी ध्यान समाधि है। मेरा चलना-फिरना आपकी परिक्रमा है। मेरी वाणी से निकला प्रत्येक उच्चारण आपके स्तोत्र व मंत्र हैं। इस प्रकार मैं आपका भक्त जिन-जिन कर्मों को करता हूं, वह आपकी आराधना ही है।

करचरणकृतं वा कर्म वाक्कायजं वा
श्रवणनयनजं वा मानसं वापराधम्।
विहितमविहितं वा सर्वमेतत् क्षमस्व
जय जय करुणाब्धे श्रीमहादेव शम्भो।5।

अर्थ- हे परमेश्वर! मैंने हाथ, पैर, वाणी, शरीर, कर्म, कर्ण, नेत्र अथवा मन से अभी तक जो भी अपराध किए हैं। वे विहित हों अथवा अविहित, उन सब पर आपकी क्षमापूर्ण दृष्टि प्रदान कीजिए। हे करुणा के सागर भोले भंडारी श्री महादेवजी, आपकी जय हो। जय हो।

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