कुछ अच्छी आदतें डाल लीजिये और... || Vaibhav Vyas ||

 कुछ आदतें, किसी जगह के साथ, किसी समय के साथ व्यक्ति के भीतर खुद ब खुद आती चली जाती है। तो कुछ आदतें ऐसी होती हैं जिसको विकसित करने के लिए बहुत अधिक जद्दोजहद करनी होती है। एक व्यक्ति नई कंपनी में जाता है और वहां दूसरे या तीसरे दिन कोई कलिग कहता है। यहां की व्यवस्थाएं ऐसे ही चलेंगी, आप आदत डाल लीजिये और वो व्यक्ति ऐसी स्थिति को आत्मसात कर ले तो जो नकारात्मक संभावना थी, उसको खुद के भीतर कहीं न कहीं जोड़ता चला जाता है। वहीं कुछ लोग कहते हैं हमारी भाषा इस तरह से बदलती चली गई। वजह रही है कि जिस माहौल में रहे वहां से ऐसे कुछ शब्द मिले जो न चाहते हुए भी जुबान के साथ जुड़ते चले गए। अब वहीं पर व्यक्ति के भीतर की परिपक्वता काम आती है। वहां आप किस तरह से सहेजे हुए है। कुछ लोग कहते हैं आम बोलचाल की भाषा के शब्द घर परिवार में आने लग गए। पता ही नहीं चला और आदत में शुमार होते चले गए। व्यक्ति इतना अक्षुण्ण है ये सबसे महत्वपूर्ण आधार नजर आता है। 

यदि आप किसी भी जगह गए और उसी माहौल के साथ में ढलते चले गए तो कहीं न कहीं स्वयं के भीतर की जो अस्थिरता थी, उसकी जिम्मेदारी बन जाती है और वहीं हम अडिग रहते हैं। वहीं हम सावधान रहते हैं। प्रत्येक क्षण खुद को कहते हैं कि जो भीतर है वो सकारात्मक है, जो भीतर है वो बहुत मुश्किल से अर्जित किया है। उसको हम गलत रास्ते की ओर नहीं जाने देंगे। वहीं कोई आदत विकसित करनी है, सुबह पांच बजे उठना है। सुबह साढ़े पांच से अपने कार्य क्षेत्र के अंदर या अपने जीवन की शुरुआत करनी है उस आदत को ढालने के अंदर एक मेंडेंड बेस की आवश्यकता प्रत्येक दिन होती है। जब भी आप किसी प्रकृति के साथ बने हुए स्थान को देखने की ओर जाएंगे तो वहां पर मनोरम दृश्य अपने आप ही सामने होगा। किन्तु कोई कृत्रिम तौर पर बना हुआ पार्क है, जगह है, वहां आपको मालूम चलेगा कि कितनी मेहनत के साथ में इस जगह को तैयार किया गया है। यही अंतर है आदतों के ढल जाने के आधार पर । और यही अंतर है व्यक्ति विकास के क्रम को स्वयं के अंदर ऐसी आदत के रूप में लेकर आता चला जाए और जब भी ऐसी आदत को जो कि जीवन में सकारात्मक बदलाव को लेकर आने वाली हो उसको विकसित करने के लिए एक तपस्या रूपी आधार के साथ में चलना होता है। 

कहने को किसी व्यक्ति की सेवानिवृति के साथ में ये शब्द बोले जाते हैं कि 36 वर्षों के अंतराल में ये एक दिन भी देरी के साथ नहीं आए। 25 से 30 सेकंड के अंदर उन भावनाओं को सामने रखा गया किन्तु उस व्यक्ति ने लगातार 36 वर्षों तक एक तपस्या के साथ में खुद के भीतर की आदतों को विकसित करने का काम किया और हरेक दिन ये संकल्प अपने साथ में रखा कि मैं देरी के साथ में नहीं पहुंचुंगा यही व्यक्ति के भीतर की गुंजित होने वाली स्थितियां है। तो जहां पर भी आदतें ढल कर पहले से सामने आए उससे सावधान रहना और जो आदतें हम विकसित करना चाहते हैं उसके बारे में लगातार सोचते रहना और अपने कर्म को वहां प्रभावी आधार के साथ लेकर चलना ये दोनों बहुत ही अलग अलग आधार है। जिसके बारे में चिंतन की आवश्यकता रहती है।

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