आत्मविश्वास भावी भविष्य की सुरक्षा के रूप में संचित होता है।

क्या संचय में और वास्तविक तौर पर धन संचय में जीवन की सुरक्षा निहितार्थ है। ये सोचने लायक बात है। एक व्यक्ति जब अपने नौकरी पेशा जीवन या व्यापार की शुरुआत करता है तो उसके सामने कुछ छोटे-छोटे गोल होते हैं कि मुझे अपना एक आशियाना बनाना है, ये जो दुकान है या जगह है मुझे खरीदनी है। इसके अलावा इतना फिक्सड डिपोजिट होना चाहिए जिससे लाइफ सिक्योर हो जाए। कुछ वर्षों के अंदर व्यक्ति ये सब कुछ हासिल कर लेता है। उसके बाद पुन: असुरक्षा की भावना मन के भीतर प्रवेश करने लगती है कि यहां तक भी पहुंच कर संतुष्टि नहीं है। यहां पर तो और अधिक असुरक्षा बढ़ चुकी है। हमको इसके आगे के बारे में सोचना है। हमको कम से कम दो से तीन एसेट्स और इसके अलावा फिक्सड डिपोजिट, गोल्ड के साथ चल रही स्कीम्स आदि है, या शेयर मार्केट में निवेश है वो अधिक बढऩा चाहिए। जैसे ही व्यक्ति वहां पहुंचता है और कहीं न कहीं लगने लगता है कि जो दूसरे लोग हैं वो बहुत कुछ हासिल कर चुके हैं। हम आज भी कहीं पर नहीं पहुंचे। जीवन सुरक्षित कैसे रहेगा। 

आज मेरे पास ये काम है, कल की प्रवृतियां, परसों की प्रवृतियां क्या होगी । ऐसे में एक घेरे में रहता है। शुरुआत के बारे में नहीं सोचता है, जहां पहुंचा है वहीं असुरिक्षत महसूस करता चला जाता है और यही असुरक्षा की भावना जीवनभर चलती है। कभी स्वयं के लिए, कभी स्वयं की संतान के लिए, कभी संतान की संतान के लिए भी ये चिंताएं निरन्तर क्रम के अंदर है। हम सुकून खोजने चले थे, हम आनंद के साथ जीवनयापन करना चाहते थे और तथाकथित तौर पर मेटेरियलिस्टिक  वर्ल्ड के  अंदर खुद को सिक्योर करने की जद्दोजहद व्यक्तित्व और आनंद को इतना पीछे छोड़ देती है कि जीवन जीना भूल जाते हैं। 

रविवार का दिन है जब भी खाली समय मिले, अपनी चिंताओं के साथ बैठने की आवश्यकता नहीं है, सुविधाओं के साथ चलने की जरूरत नहीं है। रविवार की स्थितियां है तो उसमें आसपास का माहौल क्या है, जो क्षण वर्तमान में चल रहा है उसमें कितने रचे-बसे हैं, सबसे महत्वपूर्ण यही बात हमारे सम्मुख आती है। इसी वजह से जो कर्म हम कर रहे हैं उसमें कितनी निष्ठा है, उसमें कितना आत्मविश्वास है। और यही आत्मविश्वास भावी भविष्य की सुरक्षा के रूप में संचित होता चला जाता है। 

व्यक्ति कई बार दूसरों की जिंदगी को देखकर कहता है कि उसकी लाइफ सिक्योर है। वो वहां तक पहुंच चुका है उसके बाद उसे कुछ करने की आवश्यकता नहीं है। जब तक जीवन है तक निरन्तर कर्म करने की आवश्यकता है। व्यक्ति कर्म करेगा ही। जब कर्म में विश्वास उत्पन्न रहेगा, कर्म में अनुभव की स्थितियां पूरे तरीके से समाहित रहेगी तो फिर भावी भविष्य की असुरक्षाएं सामने होती नहीं है। इस बात को मन के भीतर बहुत अच्छे से समाहित करके यदि हम चलते हैं तो रविवार के इस दिवस के अंदर खुद को सुकून दे पाते हैं। सुकून की तलाश करना आवश्यक है। या यूं कहूं सुकून भीतर है। उसके साथ में रहना आवश्यक है।

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