विपरीत प्रकृति के ग्रहों का प्रभाव ।

 विपरीत प्रकृति ग्रहों को एक ही स्वरूप में जोड़कर देख लेना कई बार स्वयं के लिए गफलतों के आधार को जन्म देने वाला एक नियम मात्र है। राहू और केतु दोनों ही छाया ग्रह हैं किन्तु जब भी इनकी अंतरदशा या फिर महादशा प्रवेश करती है तो व्यक्ति एक घबराहट के साथ में होता है। जबकि आप देखिये, कि राहू की महादशा 18 वर्षों के लिए चलने वाली होगी। राहू शनि देव मोक्ष फल करने वाले होते हैं वहीं केतु की महादशा है वो सात वर्षों के साथ में चलायमान रहती है। 

एक ग्रह मोक्ष कारक स्थितियों को निर्मित करता है तो दूसरा ग्रह व्यक्तिगत जीवन में नकारात्मक अंतर चेतनाओं को लेकर आने वाली प्रवृतियों को दर्शाता है। आप इनकी विपरीत प्रकृति के आधार देखिये, कि राहू जहां मिथुन में उच्चस्थ है और धनु में नीचस्थ है तो वहीं केतु की मिथुन में नीचस्थ हो जाएगी और धनु में उच्चस्थ होने वाली होगी। ये बिलकुल अलग आधार निकलकर आने वाली स्थितियां हो जाती है। 

पापी ग्रह और छाया ग्रह सिर्फ इतनी ही परिभाषा से स्थितियां स्पष्ट हो जाती तो दोनों ही परिणामों को एक तरह से देखा जा सकता था, किन्तु केतु कई बार ऐसी स्थितियों में परिवर्तन के आधार भी देते हैं जहां पर व्यक्ति ने सोचा भी नहीं था। कोई कामकाज होने के अंदेशे दूर-दूर तक नहीं थे, आप एक बार प्रयास करते हैं और वहीं से सफलता के आधार को लेकर आ जाते हैं ये प्रवृतियां दर्शाते हैं केतु। द्वादश में केतु हो तो सारे ही मोह के क्षरण करके अंततोगत्वा व्यक्ति अपनी पूर्ण आयु को प्राप्त करता हुआ मोक्ष कारक आधार की ओर जाता है। तो वहीं द्वादश में राहू हो तो व्यक्ति पूरे ही जीवन भयाक्रांत स्थितियों को अपने जीवन के भीतर देखने वाला होता है। इसी वजह से जब तक हम सिद्धान्तिक स्तर के साथ में है, व्यावहारिक स्तर और बारह ही भावों के साथ में क्या गणनाएं निकलकर आ रही है उसको नहीं देखेंगे तब तक किसी भी प्रक्रिया के साथ में हम एक तरह से विश्लेषण के आधार को लेकर नहीं चल सकते। यहां सूर्य और राहू भी ग्रहण दोष बनाते हैं तो वहीं सूर्य और केतु भी ग्रहण दोष बनाते हैं। बहुत बड़ा अंतर है इन प्रवृतियों के अंदर। इसको भी पहचनाने की आवश्यकता है। तो वहीं आप देखिये, सबटेन्सियल पार्ट में इन दोनों ही ग्रहों की एवीडेंस नहीं है किन्तु व्यक्ति के भीतर के मन की स्थितियां वो भी सामने नहीं आती। किन्तु कर्म के द्वारा वो सामने आती है। आपकी इच्छाओं के द्वारा सामने आती है। वैसे ही प्रभाव राहू और केतु का रहता है। 

कोई समूह खड़ा है और वहां कोई व्यक्ति मजबूरी में वहां मौजूद है तो इसका अर्थ यह नहीं है कि समूह जैसा सोच रहा है वैसा ही वह व्यक्ति सोच रहा है। ऑफिस पोलिटिक्स में छह-सात जने मिलकर चर्चा कर रहे हैं, वहां एक व्यक्ति मजबूरी में रिश्ते निभाने के लिए खड़ा है किन्तु उसके लिए हम यह नहीं कह सकते हैं कि गलत चर्चा में शुमार रहने वाला व्यक्तित्व विशेष है। बहुत बड़ा अंतर है जिसको समझकर चलने की आवश्यकताएं होती है। तो जब भी आप राहू और केतु की महादशा या फिर अंतरदशा के साथ में चल रहे हों इस प्रक्रिया को बहुत गौर से समझकर चलने की आवश्यकताएं होती है। एक ही फलाफल के साथ में नहीं चला जा सकता।

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