आध्यात्म भीतर की मजबूती का माध्यम है।

 मन कई बार इस बात को लेकर व्यथित होता है और चिंता का सिरा जाग्रत होता है कि आज के युवाओं से कहा जाता है कि पहले आप भौतिक पक्ष के साथ जो हासिल करना चाहते हैं उस ओर बढ़ जाइये। जो भी सुख-सुविधाएं हासिल करनी है वहां जाइये। जो फ्लैट लेना है, जो बढिय़ा करना हैे, रिश्ते बनाने हैं, उसके बाद आध्यात्मिकता की ओर भी जाइये। हमारी जिस पावन सनातन संस्कृति के साथ में आध्यात्मिक विकास प्रत्येक क्षण जुड़ा हुआ था, वहां पर आज के इस युग में ये कह देना क्या भौतिकता की ओर बढिय़े और आध्यात्मिकता को बाद के सिरों के साथ देखिये। बहुत बड़ा प्रश्न चिह्न खड़ा करता है। ये बात समझने लायक है कि प्रत्येक कार्य के साथ में भौतिक और आध्यात्मिक दोनों ही पक्ष बहुत गहरे से जुड़े हुए होते हैं।

 बारह ही भावों की ज्योतिष में बात करते हैं तो नवम भाव के साथ धर्म, भाग्य और विशेष तौर पर आध्यात्म को जोड़ा जाता है और देखा जाता है। तो वहीं नवम भाव से जो सातवीं दृष्टि है जो सातवां भाव का स्थान हो जाता है वो पराक्रम के साथ में जुड़ा होता है। आध्यात्म व्यक्तिगत जीवन में पराक्रम का भी निर्माता है। ये एक बहुत महत्वपूर्ण बात है जिसको यहां समझने की आवश्यकता है। आप देखिये कि एक व्यक्ति नौकरी पेशा जीवन के साथ में जुड़ा रहा। नौकरी पेशा जीवन के साथ में भौतिक पक्ष ये है कि जो आजीविका मिल रही है वो उसके घर परिवार का पालन पोषण करने के अंदर, दूसरी सुविधाएं के सुख जुटाने में महत्वपूर्ण स्तर रखती है। किन्तु वहां पर भी आध्यात्मिक पक्ष गहराई से मौजूद रहता है। किस विषय का गहरा ज्ञान प्राप्त कर रहा है। उसकी नैतिकता उस कार्य के साथ कितनी जुड़ी हुई है। 

क्या उस कार्य साथ में प्रत्येक दिन संतुष्टि कर पाता है। ये आध्यात्मिक प्रगति माध्यम है। व्यापारिक जीवन में भी वो ही स्थिति है। जहां पर व्यक्ति अपने लिए रुपये-पैसों की गणित के साथ में चल रहा है, किन्तु दूसरा महत्वपूर्ण पक्ष ये भी है कि वहां पर हम जिन लोगों को सेवाएं दे रहे हैं वहां पर अपनी रुचि को किस तरह स्थापित किए हुए हैं। नैतिकता का वहां पर जो आयाम चल रहा हैे, किस तरह से लोगों के साथ जुड़ा हुआ है और वहीं उस क्षेत्र विशेष के साथ में हम जो नयापन लेकर आते हैं उसकी कितनी गहराई का ज्ञान हमको है। ये सारा ही आध्यात्मिक पक्ष मात्र है। इसी वजह से जो भी कार्य रहेगा वहां आध्यात्मिक पक्ष तो रहेगा ही आप देखते हैं दसवीं-बारहवीं के रिजल्ट आते हैं, व्यक्ति कई बार ऐसी परेशानियों में फंस जाता है कि गलत निर्णय ले लेता है। इसके पीछे वजह क्या है। उसको सिर्फ वहां भौतिकता पक्ष दिखाए गए हैं। दसवीं बारहवीं के बाद ये करना है, अंक कम आ गए तो क्या करना है, किन्तु ये नहीं दिखाया गया कि वास्तविक स्थिति ज्ञानार्जन है। उसके साथ ही आगे जाकर जुटाते चले जाएंगे जिसकी आवश्यकता है। किन्तु वहां एक ही फ्रेम दिखाया जाता है। इसी वजह से कन्फ्यूजन क्रियेट होते हैं। जो ज्ञान साथ चलता है वो व्यक्तिगत विकास और भीतर की सतह के लिए बहुत अधिक आवश्यक है। 

आध्यात्म भीतर की मजबूती का माध्यम है। व्यक्ति प्रत्येक दिन कर्म करके लौटे और वो सिर्फ यही सोचता रहे कि अब आगे कैसे बढऩा है, अब कैसे रुपया पैसा जुटाना है। ये एक उलझन का साधन रहेगा। क्योंकि वहां से जो प्राप्त कर रहे हैं वो एक निरन्तरता के साथ में है ही। किन्तु दूसरा पक्ष जब आध्यात्मिक बिन्दु के साथ जुड़कर आता है कि जो आज कार्य किया वहां से क्या अनुभव प्राप्त किया, वहां से क्या शिक्षा ग्रहण की। भावी भविष्य की संभावनाओं को हम किस तरह से देख पा रहे हैं। ये सारे ही आध्यात्मिकक पक्ष जुड़कर साथ चलते हैं। जो भी आसपास है उनको इस स्थिति से जोडऩे की आवश्यकता है। 

जो भी युवा आसपास है वो भी इस दृष्टिकोण से जीवन को देखते हैं जो भौतिकता हावी होती है और आखिरकार मन में कम्परेजीन के साथ भिन्नता लाती है उससे एक दूरी बनने लगती है। जब कम्परेजीन की एप्रोच दूसरों से नहीं जुड़कर स्वयं के व्यक्तित्व के विकास के साथ जुड़ती है तो वहां आध्यात्मक यात्रा प्रारंभ होती है आौर आध्यात्म का अर्थ यह नहीं है कि भौतिकता से दूर रहिये। किन्तु ये एक जर्नी है जो कहीं न कहीं एंटरनेल अनंत सुख, अनंत आनंद की तरफ व्यक्ति को लेकर जाती ही जाती है। तो इसी वजह से ध्यान का मार्ग अपनाना और भक्ति भाव के साथ में अपने क्षेत्र विशेष के साथ में चलते चले जाना ये एक महत्वपूर्ण आधार है। आध्यात्मिक विकास क्रमबद्ध तरीके से सभी के जीवन में बढ़ता रहे, हम ऐसी उम्मीद रखते हैं।

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