आराधना और उपासना का महत्व ।

 कई बार चर्चाओं में लोग ये कहते हैं कि हमको इस भागदौड़ भरी जिंदगी में आराधना का समय नहीं मिल पाता। हम नवग्रहीय व्यवस्था की आराधना के साथ स्वयं को जोडऩा चाहते हैं। किन्तु सुबह से शाम तक भौतिकता भरी जिंदगी के साथ में कुछ न कुछ हासिल करने की जद्दोजहद के साथ में, ये समय निकल ही नहीं पाता। इस नवग्रहीय व्यवस्था के आधार को एक अलग तरीके से आध्यात्मिक पक्ष और जीवन में यथार्थ का कार्मिक पक्ष है उसके साथ जोड़कर देखने की आवश्यकता है। ये आराधना वहां से भी पूरी हो सकती है। 

सूर्य अनशासित स्थितियों के साथ जीवन को लेकर चलते हैं। एक तेजवान प्रकृति है। तो वहीं व्यक्ति को तपाते भी है और इसी के साथ जीवन में अलग तरीके का प्रकाश भी देते हैं और आत्मा के कारकाधिपति भी यही ग्रह है। तो जब भी व्यक्ति अपने भीतर की अक्षुण्ण आवाज को सुनकर काम करता है और वहीं अनुशासित रहता है, जीवन में जो तेज अनुभव के साथ में मिला है वो लोगों के हितार्थ बांटता है तो वो सूर्य की आराधना के परोक्ष और प्रत्यक्ष स्तर के पर पहुंचने का कार्य करता है। वहीं चन्द्रमा में शीतलता है। लगातार अपनी कलाओं में उनका एक बदलाव है। द्रुतगामी ग्रह है। और वहीं जो जीवन में मन की सारी ही स्थितियां हैं उनका नियंत्रण भी चन्द्रमा के साथ में जुड़ा हुआ है। तरलता की प्रवृतियां भी चन्द्रमा के साथ है। व्यक्ति किसी से बात करे तो वहां शीतलता का अनुभव कराए। पूरे दिन के ताप के बाद चन्द्रमा अपनी स्थितियों के साथ में होते हैं तो वहां व्यक्ति कई बार एक अलग तरीके का सुकून भी महसूस करता है। तो यहां से चन्द्रमा की आराधना भी परोक्ष तौर पर जीवन में आती है। ऊर्जा का महत्वपूर्ण स्थान है। और वहीं मंगल जो कि ग्रहों में सेनापति है। इसी ऊर्जा के परिचायक ग्रह हैं और जब भी हमको भीतर की ऊर्जा लगातार किसी कार्य में संलग्न करने वाली हो, वहां से हम मंगल की आराधना की ओर जाते हैं। 

बुद्धि जब भी किसी सकारात्मक कार्य की ओर लगे, और हम अपनी मानसिक चेतनाओं को जाग्रत करने के लिए ध्यान की ओर आकृष्ट हों। किसी भी कार्य में हों और वहां पूरे तरीके से ध्यान लग जाए, तो हम एक तरह से जो ग्रहों में युवराज ग्रह की उपासना की ओर जाते हैं। देव गुरु वृहस्पति ज्ञान के ग्रह है। संतान की स्थितियां इनसे जुड़ी होती है। जब भी व्यक्ति अपने लिए ज्ञान की स्थितियों को समाहित करके चला जाता है। किसी भी उम्र में हो, ये संकल्प सिद्धि के साथ चले कि आज मुझे ज्ञान प्राप्त करना है, शिक्षा का अर्जन करना है। वहीं से देव गुरु वृहस्पति की आराधना की ओर जाने लगते हैं। इसका दूसरा पक्ष यह भी है कि जो हासिल किया है उसकी चमक है वो दूसरे लोगों तक भी पहुंचे। शुक्र भौतिकता की स्थितियों में चलते हैं, जब भी दृष्टि कुछ नया देखने का प्रयास करे और उसके साथ में रुचिकर स्तर को स्थापित करे जो कला संबंधी क्षेत्र है, वहां से यदि एक हद तक जुड़ाव महसूस करता है तो वो शुक्र की आराधना की ओर भी जाता है। 

शनि देव की स्थितियों के साथ में जब भी आप किसी ओहदे के साथ में है या किसी कार्य के साथ में है, वहां कर्तव्य निष्ठा है। प्रत्येक कर्म अपने प्रभाव की सकारात्मकता के साथ में हो, नकारात्मकता के साथ बिलकुल भी नहीं हो, वहीं से शनि देव की आराधना और उपासना की ओर चलते चले जाते हैं। संघर्षों में सहजता बनी रहती है। शनि देव की आराधना की ओर जाते हैं, अंतर चेतनाएं बारम्बार प्रभावित करने वाली होती है नकारात्मकता के साथ। उस नकारात्मकता के ऊपर विजय करने की स्थितियों की ओर व्यक्ति जाए तो वो राहू की आराधना और उपासना की ओर जाता है। मोह का जहां भी पूरे तरीके से क्षरण हो जाए, वहां पर मोक्ष प्राप्ति का स्थान इस जीवन में धीरे-धीरे निर्धारित होने लगता है। तो जब भी व्यक्ति किसी भी कार्य के साथ में जुड़ा हुआ उसके मोह से दूर हो जाता है वहीं से वो केतु की उपासना की ओर जाता है। ये नवग्रहीय व्यवस्था का आधार है। 

यदि हम जीवन में किसी भी कार्य के साथ हो, किसी भी क्षेत्र विशेष के साथ हो। यदि ऐसी प्रवृतियों के साथ में चलते हैं तो हम नवग्रहीय व्यवस्था के आराधना और उपासना के तत्त्व को धीरे-धीरे प्राप्त करते चले जाते हैं और उसके बाद में जो एक तरह से ध्यान योग के भक्ति मार्ग के साथ में और जो मंत्रों की प्रवृतियों के साथ आराधना चलती है, वो भी कहीं न कहीं जाग्रत हो पाती है। तो इस प्रवृति को जीवन में जोडऩे का प्रयास जरूर करना चाहिए।

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