नकारात्मकता मन में कुंठा का भाव उत्पन्न करती है ।

 अधिक जानकारियां हासिल करना भी कई बार दुविधाओं को निमंत्रण देने का एक आधार बन जाता है। हम घर परिवार के सारे ही व्यक्तियों के साथ बैठे हैं। अपनी बात को बहुत अच्छे से रख रहे हैं, किन्तु एक व्यक्ति ऐसा है जो हमेशा हमारे प्रति विद्रोह की भावना रखता है। कुंठा को रखता है। हम जो भी बात कहते हैं उसको वो एक तरह से कान्ट्राडिक्शन के साथ लेकर चलने का प्रयास करता है, किन्तु आज वो शांत है। जैसे ही हम वहां से निकलते हैं। मन के भीतर एक ही स्थिति रहती है। वो व्यक्ति हमारे बारे में क्या कह रहा होगा। हमारी बातचीत के बारे में क्या टिप्पणी कर रहा होगा। ये सब कुछ जानने की आकांक्षा मन के भीतर रहती है जबकि उससे हासिल नहीं होना है। जब हम हमारे परिचित के द्वारा उस बात को जान भी लेंगे तो एक तरह से वो बातचीत अतिश्योक्ति की एप्रोच के साथ होगी जहां कहीं न कहीं मिर्च मसाला सम्मिलित रहेगा। आप उस व्यक्ति के प्रति और अधिक कुंठा से ग्रसित होने वाले रहेंगे। जवाब देने के बारे में सोचेंगे। उसने पूर्ववत घर परिवार के साथ किस किस तरह के काम किया है, आपस में अनबन करवाने का काम किया है वो सारी बात मन में आएगी और पुन: परिवार इक_ा होगा व्यक्ति बात को रखने का प्रयास करेगा और बतायेगा कि वाकई में जो व्यक्ति नकारात्मक बोल रहा था वो आपके प्रति भी नकारात्मक होता है। जो बात नहीं जानकर वहीं पर खत्म की जा सकती है। इतने लम्बे चौड़े प्रोसेस के अंदर आकर रह गई। ऑफिस कल्चर में भी ये देखने को मिलता है। जहां कुछ जानने की आवश्यकता नहीं थी। 

एक व्यक्ति हमेशा हमारे से एक जलन की स्थिति रखता है। वो हमारे बारे में क्या कह रहा है उसको जानने का प्रयास करते हैं फिर कहीं न कहीं एक तरह से नकारात्मकता को मन के भीतर जन्म देने वाले हो जाते हैं। क्या इसकी आवश्यकता है। क्या वो व्यक्ति ऐसी कोई पद पर है आपको नुकसान पहुंचा जा सकता है। और यदि पद पर है भी तो क्या वो आपसे कर्म छीन सकता है, क्या उसकी कही गई बातें आपके कार्य को प्रभावित कर सकती है। यदि नहीं, तो उसको जानने की आवश्यकता कहां है। 

रविवार के दिन रात के समय व्यक्ति अपने ऑफिस के कामकाज पूरे होने के बाद कहीं न कहीं चैट करता है। लोगों से बातचीत करता है। और ये जानने की कोशिश करता है कि हमारे बारे में कोई ऐसी बातचीत चल तो नहीं रही है। जबकि वो निराधार है। आप अपना पास्ट देखते हैं तो ऐसी कई बातें सामने आएगी जिनका वहां पर अस्तित्व नहीं था। किन्तु हमने घंटों उस चर्चा के कारण बर्बाद किए। इनसे जब भी बचता है तो अपनी ही इग्नोरेंस की एप्रोच को बढ़ाता है और सजगता वर्किंग फ्रेम के साथ चलती नजर आती है। इस बात को गौर से समझने की आवश्यकता है कि जब भी कोई बात हमारे काम की नहीं हो या फिर ऐसी बातें जो उस व्यक्ति द्वारा सिर्फ और सिर्फ नकारात्मकता के स्वरूप में कही जा रही हो उससे दूर रहने का प्रयास किया जाए जिससे कि आत्मिक संतुष्टि मिले और जबरदस्ती व्यक्ति अपने भीतर नकारात्मकता को जन्म देने वाला नहीं रहे।

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