ग्रहण ।

 ग्रहण नामक शब्द को जब भी हम सुनेंगे तो दो स्थितियां सामने होगी। कोई वस्तु या अन्न ग्रहण करना। किसी व्यक्ति के गुण ग्रहण करना या फिर सूर्य और चन्द्र ग्रहण की स्थितियां जिस समय काल को बेहतर नहीं माना जाता है। तो जब भी हम किसी नई आर्गेनाइजेशन की ओर जाएंगे वहां पर भी जो एक तरह से गुण या जो नियम बने हुए हैं उनको ग्रहण करने का कार्य करेंगे। वैसे ही किसी व्यक्ति विशेष के साथ में होंगे उसके भले ही दुर्गुण या सगुण है उनको भी ग्रहण करने का प्रयास रहता ही है। भले ही वह परोक्ष हो या प्रत्यक्ष तौर के ऊपर। ठीक उसी तरह से अन्न ग्रहण करने की स्थितियां भी रहती है। उस अन्न ग्रहण करने के अंदर शुद्ध स्थितियां कितनी है। यदि वहां पर आहार में पौष्टिकता नहीं रहती है तो कहीं न कहीं शारीरिक स्वास्थ्य के ऊपर ग्रहण लगने लगता है। किसी व्यक्ति के साथ में रहे और फैशीनेसन के साथ उसके गुणों में जुड़ते चले गए, जबकि उसके गुण वास्तविक तौर पर अवगुण थे तो आगे जाकर जो एक बेहतर जीवन चल रहा है, उसके ऊपर ग्रहण लगने लगता है। 

कोई व्यक्ति किसी एडिक्शन का शिकार है वहां से फैशीनेट होने लगता है। लगने लगता है यहां रुचि ली जाए, हर्ज क्या है। धीरे-धीरे एडिक्शन की प्रवृति इस तरह से चलने लगती है कि हम अपने जीवन उस वस्तुस्थिति से छुटकारा पा ही नहीं पाते और पूरे जीवन में एक बहुत बड़ी नकारात्मकता अपने आप ही प्रविष्ट करने लग जाती है। तो इसी वजह से हम जो भी ग्रहण कर रहे हैं अंततोगत्वा उसका प्रभाव भी परिणाम आगे जाकर क्या होगा ये समझने की पूरी पूरी आवश्यकताएं रहती है। आप एक आर्गेनाइजेशन के अंदर अनुशासन की वजह से जाने गए हैं। ये गुण आपने शुरुआत से ग्रहण किया। किसी और आर्गेनाइजेशन में गए, देखा, प्रत्येक व्यक्ति ऐसे ही चल रहा है जैसे कोई बड़ी ही नार्मल पोजीशन होती है। वही से हमको लगा हम भी इसी तरह से रहते हैं। 

जो भीतर का गुण था, जिसकी वजह से हम जाने गए, उसको त्यागा और एक अवगुण ग्रहण कर लिया जिसने आगे जाकर समय प्रबंधन के ऊपर ग्रहण लगाकर रख दिया। तो इसी वजह से इस शब्द का प्रभाव दो स्थितियों में निकलकर आती है। वो ही स्थितियां जीवन को काफी हद तक स्पष्टता देने वाली हो जाती है। जहां भी हों, जैसे भी हों, एक अदृश्य दीवार पहले बनाकर रखें कि जो भीतर प्रविष्ट कर रहा है वो गुण है या फिर अवगुण। हम फैशीनेसन के साथ में तो नहीं है। हम सिर्फ और सिर्फ चकाचौंध के साथ चलते हुए इस निर्णय की ओर तो नहीं जा रहे हैं, ये सब कुछ स्पष्ट करके ही बढऩा व्यक्ति के स्वयं के लिए हितगामी रहता है।

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