इमेजिनेटिव कान्सिक्वेंसिस

 इमेजिनेटिव कान्सिक्वेंसिस अंग्रेजी के दो शब्द है। अब यहां पोजोटिव जुड़ जाए तो बात बिलकुल अलग और यहां नेगेटिव जुड़ जाए तो बात बिलकुल अलग-थलग होकर सामने आती है। इमेजेनेटिव कान्सिक्वेंसिस का अर्थ ये हो गया कि आप अपनी कल्पनाओं में विचरण करते हुए आगे से आगे उस कल्पना को ही धरातल मानते हुए, उसी स्थिति को यथार्थ मानते हुए परेशानियों को जोड़ रहे हैं या फिर सकारात्मकता को देख रहे हैं। एक व्यापार की शुरुआत करनी है तो वहां इमेजिनेटिव कान्सिक्वेंसिस के साथ में चलना है। कैसे कैसे हो सकता है वहां हम सकारात्मकता लेकर आए। दो से चार, चार से आठ, इसको जोडऩा है, ऐसे कामकाज करना है, तो पोजीटिविटी हो गई, कई बार ये भी बेस लैस एप्रोच है। वहीं नौकरी पेशा जीवन में कोई आता है कहता है कि हम कलिग है, हमें लगता है इसमें आगे चलकर ले-ऑफ हो सकता है, फाइनेंसियल स्ट्रक्चर गड़बड़ाया हुआ है, वहीं हम सोच लेते हैं आगे चलकर क्या होगा? मेरे तो सर पर लोन है, कहां जाएंगे, कैसे करेंगे, नई नौकरी की तलाश बड़ा मुश्किल काम है, ये सारे ही चिंतन के स्वरूप सामने आ गए। 

आपके संतान के साथ में थोड़े सी समस्या हुई, आपने सोचा 15-16 साल की उम्र में ऐसे तर्क हैं तो 25 की उम्र में क्या होगा, ये सारी ही कान्सिक्वेंसिस व्यक्ति को इतना घेर लेती है कि वो यथार्थ के धरातल से पूरे तरीके से दूर हो जाता है। आप यहां डिटेच करने वाली पोजीशन में चलने की शुरुआत करते हैं तो ऐसी इमेजिनेटिव कान्सिक्वेंसिस के साथ नेगेटिविटी जोडऩे से बचते हैं। हम किसी से चर्चा करते हैं, मन नहीं लगता है, उसकी बात सुनते हैं और वहां से दूर हो जाते हैं। ठीक इसी तरह से कोई व्यक्ति आपको ऐसी इमेजिनेसन के साथ लेकर चल रहा है जिसका यथार्थ से दूर-दूर तक सरोकार नहीं है तो वहीं खुद को रोक दीजिये।

 मन के भीतर तक उसे पहुंचाना खुद के लिए ऐसी कल्पनाओं की नकारात्मकता के सिरों को जोडऩे के बराबर हो जाता है। उससे बचने की आशा और अपेक्षा के साथ चलना चाहिए। दूसरे तत्व में ये भी बात मानकर चलियेगा कि इमेजिनेटिव कान्सिक्वेंसिस के अंदर जब भी सिर्फ और सिर्फ सकारात्मकता हो तब भी व्यक्ति यथार्थ नहीं देख पाता। जैसे ही उस कामकाज की ओर जाता है कि मालूम चलता है कि समस्याएं सामने थी, मैं तो सकारात्मक सोच रहा था। दोनों ही प्रवृतियों के अंदर हमको धरातल की आवश्यकता होती है और कल्पनाओं के साथ में व्यक्ति को चलना होता है। रचनात्मकता वहीं से जन्म लेगी, किन्तु एक बार बेस तैयार करके चलने की आवश्यकता रहती ही रहती है। इस बात का ख्याल रखा जाना आवश्यक है।

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