आंतरिक खुशी। Internal Bless

 सब कुछ हासिल किया जीवन में, किन्तु उलझन ये है कि मानसिक सुख और उससे भी अधिक आंतरिक खुशी दूर-दूर तक भी नहीं है। मानसिक सुख जो कि संतुष्टि का एक माध्यम मात्र है और आंतरिक खुशी जो भीतर अलग तरीके का उल्लास देती है। वर्षों से वो महसूस ही नहीं हो पाता यदि तथाकथित तौर पर कुछ मिनटों के लिए महसूस होता भी है तो गायब हो जाता है। ये यात्रा क्या है। ये जद्दोजहद क्या है। ये झुंझलाहट बारम्बार जीवन में क्यों आती है। व्यक्ति ये प्रश्न स्वयं से पूछता है। सुबह उठता है ऑफिस, व्यापार में कामकाज के लिए जाता है, घर-परिवार के साथ पुन: जुड़ता है, रुपया-पैसा कमाता है, जिम्मेदारियों का निर्वहन करता है, सामाजिक सरोकारों में उपस्थित रहता है। घूमना फिरना होता है वहां भी जाता है। 

भौतिकता के साथ हासिल करना है वो भी करता चला जाता है किन्तु ये शून्य कहां से पनपता है। इस शून्य का जवाब क्यूं नहीं मिल पाता। जो एक इंटरनल ब्लेस है वो हमारे साथ क्यों नहीं है। खुशी या आंतरिक सुख एक आंतरिक अवस्था है। जिसको महसूस करना बहुत अधिक आवश्यक है। हम कई बार इस जरणी में पोज लेकर खुद से पूछें कि बीस वर्ष की उम्र में जो सपने देखे थे, उसको पूर्ण करने की ओर बढ़े, 30 से 35 वर्ष की उम्र में फ्लैट बनाना था या जमीन खरीदनी थी, वैवाहिक जीवन के साथ में चलते हुए संतान प्राप्ति की ओर जाना था। ये सब कुछ हासिल होने वाली स्थितियां रही, किन्तु फिर भी एक शून्य बारम्बार मन के भीतर ऊहापोह को जन्म क्यों दे रहा है। कई बार व्यक्तिगत स्वार्थ इतने हावी क्यों हो जाते हैं कि हम अपने संबंधों को खराब कर बैठते हैं और वहीं से एक पश्चात्ताप  जीवन के भीतर आने लगता है। 

हम अपने कामकाज के साथ में रहते हुए भी सिर्फ और सिर्फ कल के बारे में सोचते हैं या परिणामों के बारे में सोचते हैं और वहीं से अपनी आज की खुशियों को धीरे-धीरे गायब करने लगते हैं। जो लोगों के साथ में जुड़ाव बनना चाहिए, वहां एक बनावटीपन आने लगता है। एक प्लास्टिक स्माइल के साथ व्यक्ति चलने लगता है। वजह क्या है इसके पीछे। हम कहीं न कहीं एक ऐसी भौतिकता की चमक-दमक के साथ में उलझ चुके हैं कि मन के भीतर के जो सम्प्रेषण है उसको महसूस कर ही नहीं पाते। इसी वजह से आंतरिक खुशी किसी भी काम को कर लेने के बाद जो क्षण होते हैं उसके साथ जुड़ी होती है। आज पूरा रुटिन किया। उस रुटिन की पूर्णता के साथ संतुष्टि का एसेंस साथ है, वही आंतरिक सुख का जन्म दाता मात्रा है। उसी एसेंस को फील करने की आवश्यकता है। अब जब आप उस एसेंस को फील नहीं कर पाएंगे तो स्वयं के भीतर जाने वाले होंगे। यहां इस कामकाज में गलती रही। यहां इस दिन की यात्रा के अंदर इन लोगों से मुलाकात हुई किन्तु रुखापन था, वहां एक तरह से बनावटीपन के साथ थे। वहीं व्यक्ति अगले दिन पुन: खुद को सुधारने की प्रक्रियाओं के साथ जाता है और वहीं से इस आंतरिक खुशी को धीरे-धीरे हासिल करने वाला होता है। हम जहां भी रहें, जिस तरह भी कामकाज करने वाले हों किन्तु इस भीतर की खुशी के जो द्वार हैं, उनको खोलने की आवश्यकता है। बारम्बार इस बारे में सोचना, स्वयं के साथ समय बिताना, एकांत की ओर जाते हुए अकेलेपन को दूर करना और वहीं इस इंटरनल ब्लैस को हासिल करते चले जाना ये भी यात्रा एक प्रमुख माध्यम मात्र है।

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