गलतियों को स्वीकार कर सुधार की प्रक्रियाओं की और चलें ।

 इस विषय को आपके सामने रखने से पहले मन में कई दिनों तक मंथन चलता रहा। चिंतन चलता रहा। मुझे ऐसा लगता रहा कि शायद यह विषय इतना परिपक्व आधार पर नहीं पहुंच पाया है कि आपके सामने रखूं। किन्तु विषय महत्वपूर्ण है। विषय संवेदनशील है। विषय जीवन की गहराइओं के साथ जुड़ा हुआ है। हम सही और गलत के भेद के साथ में हमेशा चलते हैं। जब तक हम कोई गलती कर रहे हैं, और मन के भीतर ये उजास गहरे से बनी हुई है कि हम गलत हैं। उस समय तक हम उस गलती को सुधारने की ओर जा सकते हैं। किन्तु जिस दिन हमारा किया हुआ गलत, हमारे लिए सही हो जाता है, उस दिन से सुधार की आशा और अपेक्षा पूरे तरीके से समाप्त हो जाती है। 

व्यक्ति जीवन में किसी शौक की वजह से एक एडिक्शन के साथ जुड़ गया, अब वो उसकी आदत और मजबूरी बन चुका है। शरीर पर उसका गलत प्रभाव भी आ रहा है, प्रत्येक दिन वो स्वयं की आर्थिक स्थितियों को भी इसी वजह से गिराता चला जा रहा है। किन्तु एक समय तक उसके लिए वो एडिक्शन था, आज उस एडिक्शन ने गलत की जगह सही का स्थान ले लिया है। उस व्यक्ति को यह लगने लगता है कि मैं बिलकुल सही हूं। मेरे शरीर के ऊपर कोई भी असर नहीं हो रहा है। वहीं दूसरे बहुत सारे लोग हैं तो उसका तो कोई प्रभाव नहीं होता। क्या वजह है कि मैं ही इसको गलत मानता हूं। आप अपने ही गलत को सही किए जा रहे हैं और ऐसे जस्टिफिकेशन के साथ चल रहे हैं जहां सुधार की गुंजाइश नहीं बचती। 

एक व्यक्ति अपनी पत्नी के साथ  कलह में आ जाता है और मन के भीतर कुछ समय बाद में ही ये विचार आने लगते हैं कि मैंने जो कहा, मैंने जो सुनाया, जो यह लड़ाई हुई यह बिलकुल सही है, अगला व्यक्ति ही गलत था। किन्तु यदि तटस्थ होकर देखा जाए तो शायद गलती हमारी भी होती। हम अपने ही गलत को पूरे तरीके से सही कर चुके हैं, और जब ऐसी प्रवृतियों के साथ में हम चलने लगते हैं तो जो पश्चात्ताप है वो गायब होने लगता है। और जब भी जीवन से पश्चात्ताप गायब होने लगता है यकीन मानिये, हम खुद को बहुत बड़ी दुविधाओं के साथ लेकर चलने लगते हैं। तो इसी वजह से जहां पर भी हम गलत हैं, भले ही बारम्बार उस गलती को दोहरा रहे हैं, किन्तु मन में ये भान हमेशा रहना चाहिए कि हम इस स्थिति को लेकर गलत है। 

हम अपने नजरिये के साथ में अब इसको सही करने का यदि प्रयास करेंगे तो अन्तोगत्वा व्यक्ति को जीवन में कभी न कभी उस स्थिति के परिणाम भोगने पड़ते हैं और वहीं से हम एक तरह से अपने लिए बड़ी नकारात्मकता को जन्म देने वाले हो जाते हैं। एडिक्शन हो, बातचीत हो, कोई और सीखने की ऐसी प्रवृतियां हो जहां आप अपने गलत को सही करते चले जाते हैं तो कहीं-न-कहीं बड़ी दुविधाओं के भंवर में फंसने वाले हो जाते हैं। यही वजह है कि पश्चात्ताप की आवश्यकता है। यही वजह है कि जीवन के अंदर प्रत्येक बातचीत के होने के बाद में एक समय के साथ उसे समझने की आवश्यकता है। गलत है, गलतियां हो गई और उसके बाद में सुधार की प्रक्रियाओं की ओर चल गए तो आप देखिये, जीवन कहीं-न-कहीं नए अनुभव लेता है। आप अपने दर्शन के अंदर एक नयापन ला पाते हैं। परिपक्वता लेकर आ पाते हैं। 

मैं जब भी इस कार्यक्रम के साथ में होता हूं। और कई बार ईश्वर प्रदत्त व्यस्तताओं की वजह से जब गलतियां होती है और खुद को ये कहूं जल्दबाजी में किया इस वजह से गलती हुई। तो वहां मैं अपनी गलती को सही करने का प्रयास कर रहा हूं। जबकि वजह यह थी कि शायद मैंने उस समय को मैनेज नहीं कर पाया इस वजह से यह गलती हुई है। गलत को गलत माना तो अगले दिन सुधार की प्रक्रियाएं मेरे साथ होती है। और जिस दिन मैं उसी गलत को अपने हिसाब से सही कर देता हूं उस दिन खुद के लिए ही एक नकारात्मकता को जन्म देने वाला होता हूं। आपके सम्मुख जो प्रस्तुतिकरण दे रहा हूं, उसमें गलतियों की गुंजाइशों को जब सही कर बैठता हूं, सोचता हूं कि मेरा रोज का काम है, तो शायद मैं अपनी जिम्मेदारियों से मुख मोड़ रहा हूं और शायद अपनी संभावनाओं को शून्य करता चला जा रहा हूं। इसी वजह से आप कोई भी ऐसी स्थिति में है, आज आप इस कार्यक्रम को देखने के बाद पांच मिनट निकालियेगा और अपने गलत को गलत रहने दीजियेगा और उसको सही करने का यदि प्रयास करते हैं तो खुद के लिए आप समझ ही सकते हैं कि कौन-सी स्थितियां लाने वाले होते हैं।

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