भाव के भूखे भगवान की पूजा करें भक्ति भाव से ।

भगवान तो भाव के भूखे हैं। ये बात वेद, धर्मशास्त्र, भक्ति गीत या फिर किसी भी ऋषि, संत आदि से अनादि काल से सुनते आए हैं। भगवान की पूजा में सबसे अधिक महिमा अगर किसी की है तो वह है- भाव। बिना किसी कामना के किया जाने वाला कर्म जो फल देता है वहीं बिना कामना के की गई भक्ति भावना से पूजा भगवान को रिझाने वाली होती है। ऐसे कई उदाहरण हैं जो भाव की प्रमुखता को दर्शाते हैं। श्रीकृष्ण के विदुर जी के यहां केले के छिलके खाना, जाटनी के यहां खीचड़ा खाना, शबरी के झूठे बेर खाना या फिर अनजाने में ही भगवान का लिया नाम तक मोक्ष देने वाला बन जाता है। ऐसे ही शिवजी की शिव मानस स्तुति है, जो भावों से सराबोर होकर केवल मन से उसकी संपूर्ण पूजा का फल देने वाली मानी गई है। ऐसे भोलेनाथ की कृपा सहजता से मिले इसके लिए शिव की मानस स्तुति का नियमित भाव-विभोर कर वाचन-श्रवण करने से निश्चित ही मनुष्य इहलौक और पारलौक को सुधारने वाला होता है।

शिव मानस पूजा भगवान भोलेनाथ की अद्भुत स्तुति है। शिव मानस पूजा स्तोत्र से शिव की आराधना भक्ति दैहिक और भौतिक कष्टों से शीघ्र मुक्ति दिलाता है। कहते हैं कि जो शिव भक्त प्रत्येक दिन अथवा सोमवार को शिव को इस स्तुति से जल अर्पित करता है, उसके समस्त कष्ट दूर हो जाते हैं। पुराणों में भी शिव के इस स्तोत्र का वर्णन मिलता है। शिव मानस पूजा की रचना स्वयं शंकराचार्य ने शिव की स्तुति के लिए की थी। 

शिव मानस पूजा-स्तुति

रत्नै: कल्पितमासनं हिमजलै: स्नानं च दिव्याम्बरं नानारत्नविभूषितं मृगमदामोदाङ्कितं चन्दनम्। जातीचम्पकबिल्वपत्ररचितं पुष्पं च धूपं तथा दीपं देव दयानिधे पशुपते हृत्कल्पितं गृह्यताम्।1। सौवर्णे नवरत्नखण्डरचिते पात्रे घृतं पायसं भक्ष्यं पञ्चविधं पयोदधियुतं रम्भाफलं पानकम्। शाकानामयुतं जलं रुचिकरं कर्पूरखण्डोज्ज्वलं ताम्बूलं मनसा मया विरचितं भक्त्या प्रभो स्वीकुरु।2। छत्रं चामरयोर्युगं व्यजनकंं चादर्शकं निर्मलम् वीणाभेरिमृदङ्गकाहलकला गीतं च नृत्यं तथा। साष्टाङ्गं प्रणति: स्तुतिर्बहुविधा ह्येतत्समस्तं मया सङ्कल्पेन समर्पितं तवविभो पूजां गृहाण प्रभो।3। आत्मा त्वं गिरिजा मति: सहचरा: प्राणा: शरीरं गृहं पूजा ते विषयोपभोगरचना निद्रा समाधिस्थिति:। सञ्चार: पदयो: प्रदक्षिणविधि: स्तोत्राणि सर्वागिरो यद्यत्कर्म करोमि तत्तदखिलं शम्भो तवाराधनम्।4। करचरण कृतं वाक्कायजं कर्मजं वा श्रवणनयनजं वा मानसंवापराधम्। विहितमविहितं वा सर्वमेतत्क्षमस्व जय जय करुणाब्धे श्रीमहादेवशम्भो।5।

इति श्रीमच्छङ्कराचार्यविरचिता शिवमानसपूजा संपूर्ण।

Comments

  1. Very Good Vaibhav ji.... its amazing thoughts and knowledge... thank you so much for all your efforts and sharing

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  2. Sir aap ko thodaa sa margdarsan do me meri janm ptrika bhejta hu to mujhe help kar na 18/3/1963janm sthl Gondal gujrat janma naxtr jyeshtha smy 4,55janmsmy to me aage ka konsa rasta milega

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