तुलना ।

 जिनके साथ अपने कैरियर की शुरुआत की थी तो आज उनको मुड़कर जब देखता हूं तो वो मुझसे बहुत आगे निकल चुके हैं। हमने एक शॉप व्यक्ति विशेष के साथ डाली थी, उन्होंने भी पास में ही एक दुकान ली थी, हमने भी कामकाज की शुरुआत की थी। उस व्यक्ति के साथ दिन दुनी और रात चौगुनी प्रगति जुड़ी रही, किन्तु हम आज भी वहीं पर है। एज्यूकेशन के अंदर मेरे दोस्त ने भी उतनी ही मेहनत की जितनी मेहनत मैंने की। किन्तु जब परीक्षा के परिणाम आए तो वो व्यक्ति बहुत आगे था और हम इतनी मेहनत करने के बावजूद कहीं पर भी नहीं पहुंच पाए। ये स्थितियां तुलनाओं को जन्म देने वाला और तुलनाओं के साथ कुंठाओं को आधारित करने वाला एक प्रमुख स्तर है। तो वहीं आप देखियेगा, कई बार घर परिवार में भी ये बात सुनने में आती है कि हमने सर्वस्व अर्पण कर दिया। अपने घर परिवार के लिए किन्तु दूसरे लोगों का सहयोग उस आधार पर कभी मिल ही नहीं पाया। दूसरे लोग हमारी भावनाओं को समझ ही नहीं पाए। अब हम आज वैसे ही हो चुके हैं जैसे दूसरे लोग हैं। हम उसी भाषा शैली में लोगों को जवाब देते हैं जैसा वो हमारे साथ में करते हैं। यानि कि तुलनाएं कई बार व्यक्ति को समानार्थक अर्थ पर लेकर जाती है। 

एक आर्गेनाइजेशन में काम कर रहे हैं, माहौल देखा, हम पूरी ऊर्जा के साथ आए थे। वहां लोगों ने ये बताने की शुरुआत की कि यहां पर उतना ही काम कीजिये जितना वेतन मिलता है। यहां पर आप इतनी ही ऊर्जा दिखाए जितनी दूसरी स्थितियां चलती है। कहीं पर भी एग्रेसिव होने की जरूरत नहीं है। यहां प्रमोशन तीन, पांच साल बाद ही होनी है, जो जी हुजुरी करेगा उसके साथ ये स्थितियां चलती नजर आएगी। तो व्यक्ति मन के भीतर वो सारी ही बातचीत को धीरे-धीरे बिठाता चला जाता है। और वहीं से तुलनाओं की शुरुआत कर देता है। ये तुलनाएं प्रत्येक स्तर पर जब मन को चिंतित करने लगती है तो व्यक्ति व्यावहारिक तौर पर अपने कामकाज के साथ में कभी भी संतुष्टि नहीं खोज पाता। हम अपने कामकाज के साथ में संतुष्टि खोजना चाहते हैं तो अपने पास्ट को जरूर देखें। वहां से कहां तक पहुंचे हैं ये देखे। हमारे सर्कमचांसेज क्या थे, उसमें व्यक्ति पहुंचा, किन्तु उसके साथ की स्थितियां क्या थी। 

हम अपनी जिम्मेदारियां, पारिवारिक आधार उसके साथ चलें, उसको स्वीकार किया तो अब इस बात के तनाव की आवश्यकता कहां है कि दूसरों के साथ में अपने जीवन को कम्पेयर करके खुद को परेशान किया जाए। आपको घर का कामकाज करना अच्छा लगता है। वहीं पर सुकून है। किन्तु दूसरे लोगों से तुलना की शुरुआत की और वहीं से अपनी सारी स्थितियों को शून्य करके रख दिया। आपके जीवन का सुकून भागदौड़ में नहीं है। आत्मीयता पसंद है। रुचिकर विषय पसंद है। किन्तु हम वहां पर भी तुलनाएं करने लगते हैं। 

एक लेखक जो दुनिया को बहुत सारे विचार दे सकता है। वो यदि किसी बिजनसमेन से कम्पेरीजन करने लगता है तो दोनों ही आधार बिलकुल अलग-अलग है एक को नाम मिला, ख्याति मिली उसके शब्दों की गूंज प्रखरता से पहचानी हुई  किन्तु कम्पेरीजन उससे कर रहा है जो अर्थ तंत्र को प्रधानता करके दूसरे लोगों के लिए रोजगार दिया। दूसरे स्थितियों को निर्मित किया। आप यहां देखेंगे एक स्पोर्टसमेन, एक लिटरेचर के साथ जुड़ा आदमी है, क्या कम्पेरीजन संभव है। किन्तु व्यक्ति ऐसी तुलनाओं के साथ में जाकर स्वयं को कुंठित करने के अलावा कुछ और कर नहीं पाता। आपका वजूद, आपका कामकाजी स्तर जिस आधार पर जुड़ा हुआ है वहीं से हम यदि अपनी निरन्तरता को जोड़ते हैं, कम्पेरीजन या प्रतिस्पर्धा करें तो अपने कामकाज के साथ में करें। कि आज से दो साल पहले जब मैं आप लोगों के सम्मुख प्रस्तुत होता था उसका क्या आधार था। आज मेरी सोच में क्या बदलाव है। मैं विश्लेषण की स्थितियों के साथ में कैसे चल रहा हूं वहीं से मुझसे एक आईना नजर आता है। वहीं दूसरों के साथ तुलनाएं कहीं पर पहुंचाने वाली नहीं होती। इसी वजह से तुलनाओं से थोड़ा दूर हटकर जीवन का आनंद जो कि प्रत्येक कर्म में समाहित है उस ओर चलने का प्रयास जरूर करना चाहिए।

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