प्रशंसा ।

 कोई व्यक्ति प्रत्येक संघर्ष  पथ पर हमारे साथ में रहा, किन्तु हम संकोच की वजह से उसे धन्यवाद के शब्द भी नहीं कह पाए। और उसका अपना हक समझ बैठे। कोई व्यक्ति कामकाजी जीवन में प्रत्येक क्षण हमको कुछ न कुछ नया बताता रहा, सावधान करता रहा और पूरे जीवन हितैषी रहा। हम उसके प्रति भी कृतज्ञता के भाव प्रकट नहीं कर पाए। बहुत छोटी छोटी बातें हैं। घर आते हैं। खान पसंद आता है। थकान उतार देता है। दो शब्दों की आवश्यकता है। गृहस्थ जीवन में उन शब्दों के साथ में हम चलते हुए न जाने कितने भाव विभोर हो सकते हैं। किन्तु वो शब्द भी कई बार निकल नहीं पाते। संतान पक्ष ने बेहतर क्या नहीं किया, ये बहुत अच्छे से मालूम है, किन्तु कुछ बेहतर किया ये भी मन के भीतर बहुत गहरे से जानकारी है। किन्तु वहां पर भी हम शब्दों की कमी के साथ में चलते हैं। 

खुलकर प्रशंसा करने योग्य शब्द कई बार या तो होते नहीं है या फिर हम संकोच के साथ में होते हैं। या फिर लगता है कि ये तो हमारा अधिकार है। अगले व्यक्ति को ये करना ही है। जब भी व्यक्ति इस फ्रेम से आजाद होकर इस आईने से आजाद होकर, जिंदगी को देखता है तो वो कृतज्ञता के साथ में चलते हुए कई बार प्रशंसा योग्य शब्दों को भी भीतर हमेशा रखता है। जो भी उसको अच्छा लगता है वहां से दूसरे जगह की तुलनाएं शुरू नहीं करता। वहीं भाव विभोर होकर प्रशंसाएं शुरू करता है। आपने ये बहुत बेहतर किया। आपको बहुत बहुत धन्यवाद। और इसके साथ में ही न जाने कितने ऐसे शब्द हैं जो अगले व्यक्ति को प्रसन्न चित्त कर सकते हैं और उसको अधिक ऊर्जावान कर सकते हैं। 

आप एक ऑफिस में कर्मचारी को कहिये कि आपने बहुत बेहतर काम किया और आप शानदार तरीके से ऐसे ही कामकाज करते रहें हम सब आपके आभारी हैं। वो व्यक्ति आकंठ में नहीं आएगा, वो अपनी जिम्मेदारी को समझेगा और उसे समझते हुए आपके प्रति हमेशा सम्मान रखने वाला होगा। वहीं उस श्रेष्ठ कार्य में भी यदि हम कमियां निकालने लग जाते हैं तो मन में कहीं न कहीं संकुचित दायरों को सामने रखने लगते हैं। ऐसी प्रवृतियां जीवन में निरन्तर निकलकर आती है और इन्हीं प्रवृतियों से आजाद होने की आवश्यकता व्यक्ति को प्रत्येक क्षण होती है। कहीं की कोई स्थिति बेहतर लगी, हम तुलना करने लगते हैं, वहां ऐसा नहीं है। 

हम जहां रहते हैं उस तरह वो पोजीशन इतनी बेहतर नहीं है, किन्तु वहां उस स्थिति की प्रशंसा करने के अलावा कुछ और हमारे हाथ में नहीं है, क्यों तुलनाओं की ओर जा रहे हैं। जीवन ऐसी सारी स्थितियों के साथ चलता है। जब भी मौका मिले, जिस भी व्यक्ति के लिए मौका मिला, जीवन में सहयोग किया हो, किसी भी क्षण हमारे लिए मदद के लिए हाथ आगे बढ़ाया हो उस व्यक्ति को प्रशंसा योग्य शब्दों के साथ में लेकर जरूर चलें। आप देखियेगा, मन के भीतर की छोटी छोटी दरारें दूर होने लगती है और व्यक्ति ऐसी ही भाव के साथ प्रसन्न चित्त रहने लगता है।

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