हम मन के साथ जुड़ी हुई स्थितियों का जब भी वर्णन सामने रखते हैं। क्या स्वयं भी उसके बारे में जो विचार करते हैं तो विश्वास की बात करते हैं, हौसले की बात करते हैं। लोगों को साथ जोडऩे की चर्चा करते हैं। हम हिम्मत की और धैर्य की चर्चा करते हैं। लेकिन उत्साह की चर्चा थोड़ी सी कम होती है। उत्साह जो किसी भी कार्य का अति आवश्यक अंग है। आप किसी व्यक्ति को कन्वेंस करने की ओर जा रहे हैं तो शब्दों में यदि रुखापन है, आप स्वयं भी उस बात से कन्वेंस नहीं है तो शायद अगले व्यक्ति के सामने बहुत अच्छे से नहीं रख पाएंगे। अक्सर यह भी होता है कि किसी कामकाज की शुरुआत करते हैं तो वहां ऊर्जा अच्छे से बनी रहती है। आपने मार्केटिंग में या आई.टी. फील्ड में कामकाज की शुरुआत की थी। महीने, दो महीने, तीन महीने, साल, दो साल और तीन साल तक उत्साह पूरे तरीके से बना रहा। प्रत्येक दिन हम अपनी पूरी ताकत के साथ जाते थे। व्यक्ति को कन्वेंस करना है, किसी टीम को प्रोग्रेसिव एप्रोच के साथ लेकर चलना है।
शब्दों के साथ हमारा जो व्यवहार है वो अलग तरीके का आवरण रखने वाली होती थी। किन्तु अब जैसे-जैसे दिन बीतने लगे हैं वो उत्साह कम होने लगा है। पारिवारिक जिम्मेदारियां, फाइनेंसियल गेन, चेंजेंज की प्रोग्रेस, कन्फर्ट जोन की एप्रोच यह सब कुछ आसपास घूमता रहता है। किन्तु उत्साह में कमी आने लगती है। आप अपना पहला इंटरव्यू याद कीजिये या पहली बिजनस डील याद कीजिये। व्यक्ति कितने एफर्ट के साथ जुड़ता है किन्तु धीरे धीरे वहां कमी आने लगती है या भीतर के एडजेस्टमेंट सामने आ जाते हैं। क्योंकि यह हमारा रुटिन बन चुका है। वहीं स्वयं को एक बार भीतर के साथ खटखटाहट में लेकर चलने की आवश्यकता है कि रुटिन यदि हमने अपने भीतर उस शब्द को समाहित कर लिया तो हम उत्साह को खोते चले जाएंगे।
प्रत्येक दिन जब हम उठें और कामकाज की ओर जाएं तो स्वयं को यह जरूर कहें उत्साहित रहना है। किसी से बातचीत करेंगे तो जिज्ञासाएं होंगी तो हम उत्साहित होंगे। अगले व्यक्ति को सुनते हैं, हमारा आई कान्टेक्ट कैसा है, उससे क्या ग्रहण करना चाहते हैं। ये लगता है कि बारम्बार रटी-रटाई बात करने वाला होगा तो स्वयं को ब्लॉक कर देते हैं। उत्साह भी क्षीण हो जाता है। इसी वजह से हम यदि हताश भी हों तो वहां स्वयं को उत्साहित करने का प्रयास करें। उस क्षणों के साथ जाएं जब आपने बड़ी सफलता को अर्जित किया था। वहीं से बदलाव के संकेत भी सामने आए थे। रिटायरमेंट की ऐज की ओर जब व्यक्ति होता है तो लगने लगता है कि जीवन संध्या अंतराल की ओर है। किन्तु नई पारी की शुरुआत की तौर पर आगे लेकर चल सकते हैं। इन अवस्थाओं के क्रम के साथ चलते हुए उत्साहित रहें।
महीने के आखिर दिनों में व्यक्ति ये बारम्बार सोचेगा कि कौन से कामकाज यहां बाकी रह गए, इसके अलावा यह सोचने की ओर जाएगा कि मैं पूर्णतया उत्साह से परिपूरित होता हूं और जो नया दिन जो सामने है उसमें पूरी जाग्रति के साथ चलने का प्रयास करता हूं। यकीन मानिये, ये सोच अपनाते हैं तो उत्साह लोगों के साथ जुड़ाव और जब भी उत्साह और लोगों के साथ जुड़ाव सामने आएगा तो आप अपने भीतर एक अलग आभा के साथ चलने वाले होंगे।
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