प्रत्येक रिश्ता महत्वपूर्ण होता है ।

 एक बच्चा जब स्कूल से घर लौटता है और मां उसका टिफिन खोलती है और अन्न के जो कण बिखरे होते हैं उनको देखकर वो यह जान जाती है अब शायद यह अपने दोस्तों के साथ में अपना टिफिन शेयर करता है। इसलिए शायद एक रोटी और शायद दो रोटी अधिक भेजने की आवश्यकता है। ये वात्सल्य का चरमोत्कर्ष है। घर से बहुत दूर एक व्यक्ति कॉलेज में अपनी स्टडीज को कम्पलीट करने की ओर जाता है। एक दोस्त से बहुत गहरे बांडिंग होती है। कब उसे घर की याद आ रही है, कब उसे आगे आने वाले समय की फिक्र सता रही है या फिर कोई रिलेशन में धोखा हुआ है तो वो उसका करीबी दोस्त उसकी शक्ल को देखकर वो बता देता है और उसी अनुरूप उससे बातचीत की शुरुआत करता है। ऑफिस कल्चर में कलिग के साथ में जो बांडिंग सामने आती है तो ये स्थितियां वहां भी रहती है। 

एक बहुत अधिक अपना बन जाता है जो आपकी शक्ल को देखते ही कहता है कि अभी कुछ न कुछ फाइनेंसियल दिक्कतें चल रही है या फिर नौकरी में क्या होगा, इसकी चिंता सता रही है। या इतने साल आप यहां रह लिए, प्रमोशन नहीं मिली, उसकी चिंताएं जब अचानक घर करने लगती है तो कोई न कोई एक अपना हमारे साथ होता है जो हमको सही सलाह देता है जो हमारे साथ में वात्सल्य, विश्वास, साहस और सहृदयता के साथ जुड़ा होता है। ये सारी ही स्थितियां है और प्रत्येक रिश्ते के साथ अलग-अलग आधार जोड़कर हमारे सामने आने वाले होते हैं। प्रत्येक रिश्ता महत्वूर्ण है। भले ही दोस्ती का हो, घर-परिवार से जुड़े बंधन हो या फिर हम अनचाहे तौर पर ही सही यात्राओं में भी कई बार ऐसे रिश्ते बना लेते हैं जो जीवनभर साथ निभाने वाले होते हैं। वहीं इसी विश्वास के साथ में जब अगला व्यक्ति हमारे साथ में जुड़ता है हम उसके प्रति कितनी आत्मीयता के भाव रख रहे हैं और जब भी किसी व्यक्ति विशेष ने ऐसे रिश्तों के साथ हमारे लिए बहुत कुछ किया हो तो वहां पर कृतज्ञता का भाव भी पूरे तरीके से जब भीतर उतरने लगता है तो यकीन मानिये, उस रिश्ते में और ज्यादा गहराई आने लगती है। रिश्ता व्यक्ति को जीवन भर साथ निभाने का एक वचन भी देता है। हालांकि गृहस्थ जीवन में कन्वेनसल पोजीशन में बात करूं तो साथ निभाने वाली स्थितियां आती है और वचन की बात आती है किन्तु परोक्ष रूप से जो रिश्ते जुड़ते हैं यदि उनमें आत्मीयता के गहरे पुट समाहित हैं तो स्थितियां इसी आधार पूरे साथ चलती होती है और वहीं से कहीं-न-कहीं सहजता महसूस करते हैं। 

ये सारी ही भूमिका के पीछे प्रयोजन यही है कि समय संघर्ष दिखाते हैं, समय सकारात्मकता के आवरण को दिखाते हैं। जब हम सकारात्मक हैं तो ऐसे सारे ही रिश्तों को और अच्छे से सहेजने की ओर जाएं। संघर्ष के सामने वो ही रिश्ते चट्टान की तरह खड़े होते हैं और आपको झुकने नहीं देते। कई लोगों से मिलिये, तो व्यक्ति कहता है जब संघर्ष था, तो मैं अकेला था। कोई भी साथ नहीं। एक व्यक्ति कहता है संघर्ष था, वो इसलिए महसूस नहीं हो पाया, न जाने कितने लोग मेरे साथ लगातार खड़े हुए थे। वात्सल्य, साहस और ऐसी ही सारी स्थितियों से परिपूर्ण रिश्तों को हम जीवन में आदर और मान देते चले जाएं, यही हमारी कामना है।

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