एक अकेला व्यक्ति ही आसपास के लोगों के भीतर सकारात्मकता का सम्प्रेषण कर सकता है।

 लोग कहते हैं कि मैं अकेला दुनिया नहीं बदल सकता, किन्तु एक अकेला व्यक्ति साथ रह रहे व्यक्ति के जीवन में खुशियां लेकर आ सकता है। उसके भीतर बदलाव की बयार सामने रखने वाला हो सकता है। एक अकेला व्यक्ति चाहे तो आसपास के लोगों के भीतर सकारात्मकता का सम्प्रेषण कर सकता है। किन्तु हम कई बार ऐसी टास्क को अपने जीवन के भीतर लेकर आते हैं और उसके बारे में सोचने लगते हैं, जो हाल फिलहाल संभव नहीं है। जैसा कि मैं अकेला दुनिया नहीं बदल सकता। किन्तु यदि आप एक चेष्टा के साथ जाते हैं तो अपने गृहस्थ के भीतर खुशियां ला सकते हैं। दोस्तों के साथ खुश वातावरण देने वाले हो सकते हैं। जिन दोस्तों के साथ सिर्फ हंसी मजाक की बातें किया करता है। 

एक समय के बाद सीरियस कन्र्सन की ओर आ जाता है। खुशियों के मूल मकसद को पीछे जोड़ चुका होता है। बदलाव एक प्रक्रिया है। बदल जाना एक निष्कर्ष की स्थिति है। इन दोनों को बहुत गहरे से समझने की आवश्यकता है। एक लक्ष्य है जहां पर व्यक्ति को पहुंचना है। और एक रास्ता है जो उस लक्ष्य तक पहुंचाने वाला होगा। रास्ता प्रोसेस है और जो लक्ष्य है वो निष्कर्ष की स्थिति है, जिसके बारे में हमने सोचा है। जब भी निष्कर्ष के बारे में सोचेंगे, पहले हमें रास्ते के बारे में सोचना होगा। हम चाहते हैं कि जीवन 365 दिन तक अनुशासित रहे तो सबसे पहले सुबह-सुबह उठकर अपने जीवन को एक दैनिक दिनचर्या के साथ में बिलकुल प्रेसाइज करना होगा। ये एक प्रोसेस है। उसके साथ में बदलाव निकलकर आने वाला होगा। 

हम कई बार लोगों को सलाह देते हैं, हिदायत देते हैं, अपने घर परिवार के भीतर वहां पर भी संतान पक्ष को तो कठोर शब्दों में हिदायत देने वाले होते हैं। किन्तु स्नेह की जो परिभाषा है वो बिलकुल अलग है। स्नेह की परिभाषा जीवन में खुशियों को लेकर आती है। हम अपने कामकाज के साथ में लक्ष्य को देखते हैं। बहुत सारी स्थितियों को देखते हैं और लगातार ये कोशिश करते हैं कि अगला व्यक्ति बदले। और हमको उससे खुशियां, संतुष्टि और सुकून प्राप्त हो। किन्तु अगर इस प्रोसेस को थोड़ा बदलकर देखा जाए तो आप पाएंगे कि हम एक अकेले व्यक्ति के रूप में किसी और व्यक्ति की जिंदगी को पूरे तरीके से बदलकर रखने वाले हो सकते हैं। वो एक प्रोसेस है। आपको भी मालूम नहीं चलेगा, अगले व्यक्ति को भी मालूम नहीं चलेगा कि किस तरह से बदलाव आ चुके और किस तरह से जीवन का दर्शन बदलकर रह गया, ये सोच के मायने है।

 हम 18 या 20 वर्ष की उम्र में कुछ और सोचा करते हैं और 40 वर्ष की उम्र में सोच अलग हो जाती है। और 20 वर्ष की सोच बचकानी लगती है। लगता है उस समय अनुभवहीनता थी। वहीं 60 वर्ष की उम्र में ये स्थिति बिलकुल अलग तरीके से सामने आती है। ये सारे ही प्रोसेस है। जो अलग-अलग हमेशा साथ चलने वाले होंगे, किन्तु बदलाव एक सतत प्रक्रिया है जिसके भीतर खुशियों को समाहित किया जाए। कहीं पर भी दुनिया को बदलने की चेष्टाएं करने की आवश्यकताओं से दूर हटकर यदि हम जिंदगी को देखते हैं और एक व्यक्ति विशेष के साथ में अपने जीवन के कुछ हिस्से को केन्द्रित करने वाले होते हैं, देखियेगा, बदलाव किस तरह से आ पाता है और वो बदलाव किस तरह से खुशियों की बयार को सामने रखने वाला होता है।

Comments

  1. आप भी तो इतनी महत्वपूर्ण जानकारी हमें देकर हमारे जीवन को बदलकर सकारात्मक बना रहे हैं।आपका बहुत बहुत धन्यवाद।

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  2. प्रणाम, आपके सकारात्मक विचार पढ़ कर एक अलग सी ऊर्जा मिलती है, धन्यवाद।

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