अमावस्या पर करें पितरों का तर्पण VAIBHAV VYAS

                          अमावस्या पर करें पितरों का तर्पण

हमारे धर्मशास्त्रों में पितरों के मोक्ष, पितृ दोष और उनकी संतुष्टि के उपायों का वर्णन मिलता है। इसके लिए किसी भी मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या के दिन उनके निमित्त किए गए धार्मिक क्रिया कर्म उन्हें तृप्ति और मोक्ष प्रदायक माने गए हैं। ऐसे में जाने-अनजाने में हुए पितृ दोषों से मुक्ति मिलती है और जीवन में सुख-शांति का वास होने लगता है। इसी दिन ज्ञात पितरों के अलावा अज्ञात पितरों का तर्पण करना चाहिए। शास्त्रों में आए वर्णन के अनुसार संसार में तीन ऋण प्रधान रूप से कहे गए हैं-देव-ऋण, गुरु-ऋण एवं पितृ-ऋण। इनमें पितृ-ऋण की प्रधानता बताई गई है। यद्यपि पित्र-ऋण से कोई भी उऋण नहीं हो सकता, तथापि पितरों के प्रति श्रद्धा-भाव रखना मनुष्य की उन्नति का कारण होता है। 

मान्यता है कि परलोक को गए हमारे पूर्वजों को पृथ्वी पर अपने परिवार के लोगों द्वारा अमावस्या के दिन याद करने, उनका तर्पण करने और दान-पुण्य करने से उनको मोक्ष की प्राप्ति होती है और साथ ही परिजनों को उनका आशीर्वाद भी प्राप्त होता है। अमावस्या के दिन संभव हो सके तो किसी नदी, सरोवर में विधि-विधान से पितरों का तर्पण, पिंडदान, अन्न और जल दिया जाता है तो उनकी आत्मा उसे ग्रहण कर अपने परिवार के लोगों का कल्याण करते हैं।

पितरों को जल देने की विधि को तर्पण कहते हैं। शास्त्रों में तर्पण के लिए अलग-अलग नियम बताए गए हैं। जैसे- पिता के तर्पण के लिए- सबसे पहले अपने हाथ में दूध, तिल और जौ मिला हुआ जल लेकर, अपनक नाम और गोत्र का उच्चारण करते हुए "गोत्रे अस्मतपिता (पिता का नाम) शर्मा वसुरूपत तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जलं वा तस्मै स्वधा नम:, तस्मै स्वधा नम:, तस्मै स्वधा नम:" मंत्र बोल कर तीन बार पिता को जलांजलि देना चाहिए। जल देते समय यह ध्यान रखें कि वसु रूप में मेरे पिता जल ग्रहण कर तृप्त हो रहे हैं। वैसे ही पितामह, प्रपितामह और माता-दादी के लिए भी करना चाहिए। पितरों के निमित्त किए जाने वाले तर्पण में देव-ऋण के लिए देवों का और गुरु-ऋण के लिए गुरु का भी तर्पण श्रेयष्कर माना गया है। विधि-विधान से स्वयं कर सकें तो स्वयं करें अन्यथा किसी योग्य ब्राह्मण से इस विधि को सम्पन्न करवाना चाहिए। यदि किसी ब्राह्मण द्वारा विधि विधान से करवाया जाए तो ब्राह्मण की संतुष्टि के लिए ब्राह्मण को यथासंभव दान, भोजन और दक्षिणा अवश्य देनी चाहिए। इसके बिना कर्म अधूरा माना जाता है।

तर्पण के समय मन में श्रद्धा का भाव रखना चाहिए। क्योंकि श्रद्धा से दिया गया अन्न-जल ही पितर ग्रहण करते हैं। उसके पश्चात यथासंभव जरूरतमंदों को दान करने के अलावा उन्हें भोजन करवाकर दक्षिणा भी देना चाहिए।

Comments

  1. आपका बहुत बहुत धन्यवाद इतने ज्ञानवर्धक विचारों को प्रदान करने के लिए।

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    1. धन्यवाद सुरिंदर जी

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  2. Do post such articles for generation who are unaware ...your simple language does helps easy to understand..Thank you

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