विचार व्यक्तित्व को निर्मित करते हैं ।

विचार। विचार व्यक्ति के व्यक्तित्व को निर्मित करने वाले होते हैं। जब भी हम किसी व्यक्ति के कर्म को देखते हैं वहां से कुछ ओब्जर्वेशन प्राप्त करते हैं तो वो ओब्जर्वेशन भी रिफाइन प्रोसेस के अंदर एक विचार की ही शक्ल में होता है। अगले दस वर्षों में क्या हासिल करेंगे, अगले बीस वर्षों में किस तरह से हम अपने जीवन को देखते है यह सब कुछ विचारों की प्रतिबद्धता ही है। वहीं अगले एक घंटे में क्या करना है? किस तरह से कार्य को लेकर चलना है, जब एक विचार जन्म लेता है व्यक्ति उस पर कार्य करने की शुरुआत करता है और यही एक महत्वपूर्ण बात और भी है। हम किसी भी कार्य की शुरुआत कर रहे हैं, मान लीजिये, व्यापार में एक नई शुरुआत है, वहां क्या विचार आया पहले, इतना रुपया-पैसा कमाना है या फिर इस तरह की सर्विसेज ऑफर करनी है या इसके साथ में ही सर्विसेज भी ऑफर करूंगा। यहां लोगों को इस तरह से सहूलियत दूंगा और उसके बाद में जब संतुष्टि का भाव लोगों के मन के भीतर जाग्रत होगा वहां से मेरा धनागमन चलता चला जाएगा। 

एक कलाकार सबसे पहले अपनी कला को मांजने का विचार करता है, फिर लोगों के सामने आता है, यह एक महत्वपूर्ण उदाहरण जीवन का। किसी भी कलाकार को देखें, वर्षों की तपस्या-साधना है, उसके बाद लोगों में ख्याति प्राप्त करने की एक बहुत गहरी आकांक्षा है जो विचार के साथ जुड़ी हुई है। और उसके बाद वो अपने फाइनेंसियल बेस के बारे में सोचता है, किन्तु ये रिट्रोगेटिंग प्रोसेस में नहीं हो सकता। सबसे पहले एक व्यक्ति सोचे मैं इस कला से रुपया-पैसा कमाऊंगा वहां वो खुद को मांजने की ओर नहीं जा सकता है, वहां खुद को निखारने की ओर नहीं जा सकता है, जब अर्थ पक्ष का विचार मन के भीतर आता है तो जो वैचारिक मौलिक गतिविध है, जो एक तरह से मूलभूत प्रकृति है थोट प्रोसेस की वो गायब होने लगती है, जब ऐसी प्रवृतियां दूर हो जाती है तो हमारे उद्देश्य ही बदल कर रह जाते हैं। जीवन में उद्देश्य क्या है? एक फ्लैट से दूसरे फ्लैट, एक गाड़ी से दूसरी गाड़ी या फिर भौतिक सुख-सुविधाओं को हासिल करते हुए खुद को संतुष्टि और सुकून देना। 

आप किसी और के उधार के विचार भीतर लाते हैं तो भी गफलतें सामने आने लगती है। हमारे पास जो है उससे संतुष्ट नहीं हुए और किसी व्यक्ति को देखा और मन के भीतर येे भाव आता चला जाएगा, कि मुझे ये हासिल करना है। कई बार ये विचार गलतफहमी देते हैं। मन के भीतर की परतें धुंधली हो जाती है और हम वो सोचने के लिए बाध्य हो पाते हैं या बाध्त हो जाते हैं, जो कि सिर्फ और सिर्फ फैशीनेस है। इसी वजह से विचारों में मौलिकता रहे। हम प्रतिदिन यह सोचे कि जो भी कार्य है उसके पीछे का उद्देश्य फाइनेंसियल के अलावा क्या है वहीं से एक स्पष्टता जीवन में आने लगती है। थोट प्रोसेस मन के भीतर आने से पहले यदि रिफाइन होता रहता है और उसके बाद में कर्म में उसकी झलक आती है तो आप देखिये, एक नयापन लगातार जीवन में प्रवेश करता है।

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