पाप नाशिनी और मोक्षदायक होती है माघ पूर्णिमा स्नान ।

 पाप नाशिनी और मोक्षदायक होती है माघ पूर्णिमा स्नान

पुराणों और शास्त्रों में आए वर्णनों के अनुसार माघ मास की पूर्णिमा को स्वयं भगवान विष्णु गंगा के जल में निवास करते हैं। इस संदर्भ में यह भी कहा जाता है कि इस तिथि विशेष को भगवान नारायण क्षीर सागर में विराजते हैं और गंगा जी क्षीर सागर का ही एक रूप है। साथ ही सभी देवी-देवताओं का भी धरती पर आगमन माना है जो भिन्न-भिन्न रूपों में संगम स्थलों पर भ्रमण करने वाले होते हैं। यही वजह है कि इस दिन संगम स्नान को बहुत बड़ा महत्व और विशेष स्थान प्राप्त है। मान्यता है कि इस मास में शीतल जल में डुबकी लगाने वाले पापमुक्त होकर श्री हरि का आशीर्वाद पाते हैं।

देवी-देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए गंगा-यमुना के संगम स्थल पर माघ मास में पूरे तीस दिनों तक कल्पवास करते है। जरूरतमंदों को योग्य वस्तुओं, जैसे- ऊनी वस्त्र, कंबल और आग तापने के लिए लकड़ी और भोजन आदि का दान करते हैं जिससे अनंत पुण्य फल की प्राप्ति होती है।

इस दिन चन्द्रमा भी अपनी सोलह कलाओं से शोभायमान होते हैं। इस दिन पूर्ण चन्द्रमा अमृत वर्षा करते हैं जिनके अंश वृक्षों, नदियों, जलाशयों और वनस्पतियों पर पड़ते हैं। इसी वजह से इनमें आरोग्यदायक गुण उत्पन्न होते हैं। इस दिन चन्द्रमा की रश्मियों में रमने के लिए कुछ-न-कुछ समय अवश्य व्यतीत करना चाहिए। धार्मिक मान्यता है कि माघ पूर्णिमा में स्नान-दान करने से सूर्य और चन्द्रमा युक्त दोषों से भी मुक्ति मिलती है। इस दिन चंद्रमा का विशेष राशियों में प्रवेश होने से माघी पूर्णिमा को पुण्य योग बनता है तथा सभी तीर्थों के राजा (देवता) पूरे माह प्रयाग तथा अन्य तीर्थों में विद्यमान रहने से अंतिम दिन को जप-तप व संयम द्वारा सात्विकता को प्राप्त किया जा सकता है। इस दिन सूर्योदय से पूर्व जल में भगवान का तेज रहता है जो पाप का शमन करता है।

निर्णय सिंधु में कहा गया है कि माघ मास के दौरान मनुष्य को कम से कम एक बार पवित्र नदी में स्नान करना चाहिए। भले पूरे माह स्नान के योग न बन सकें लेकिन माघ पूर्णिमा के स्नान से स्वर्गलोक का उत्तराधिकारी बना जा सकता है। इस बात का उदाहरण इस श्लोक से मिलता है—-

॥ मासपर्यन्त स्नानासम्भवे तु त्रयहमेकाहं वा स्नायात्॥

अर्थात् जो लोग लंबे समय तक स्वर्गलोक का आनंद लेना चाहते हैं, उन्हें माघ मास में सूर्य के मकर राशि में स्थित होने पर अवश्य तीर्थ स्नान करना चाहिए।

साधु-संतों का कहना है कि पूर्णिमा पर चंद्रमा की किरणें पूरी लौकिकता के साथ पृथ्वी पर पड़ती हैं। जो न केवल आध्यात्मिक बल्कि विज्ञान के अनुसार भी स्नान के बाद मानव शरीर पर उन किरणों के पडऩे से शांति की अनुभूति होती है।

ब्रह्मवैवर्त पुराण में उल्लेख है कि माघी पूर्णिमा पर भगवान विष्णु गंगाजल में निवास करते हैं अत: इस पावन समय गंगाजल का स्पर्शमात्र भी स्वर्ग की प्राप्ति देता है।

वहीं पद्मपुराण में भी कहा गया है कि अन्य मास में जप, तप और दान से भगवान विष्णु उतने प्रसन्न नहीं होते जितने कि वे माघ मास में स्नान करने से होते हैं। यही वजह है कि प्राचीन ग्रंथों में नारायण को पाने का आसान रास्ता माघ पूर्णिमा के पुण्य स्नान को बताया गया है। भृगु ऋषि के सुझाव पर व्याघ्रमुख वाले विद्याधर और गौतम ऋषि द्वारा अभिशप्त इन्द्र भी माघ स्नान के सत्व द्वारा ही श्राप से मुक्त हुए थे। पद्म पुराण के अनुसार माघ-स्नान से मनुष्य के शरीर में स्थित उपाताप जलकर भस्म हो जाते हैं।

यही नहीं, पितर दोषों से मुक्ति और पितरों की सद्गति के लिए इस माघ मास में काले तिलों से हवन और पितरों का तर्पण करना विशेष फलदायी माना गया है।

मत्स्य पुराण के अनुसार-

पुराणं ब्रह्म वैवर्तं यो दद्यान्माघर्मासि  च,

पौर्णमास्यां शुभदिने ब्रह्मलोके महीयते।

मत्स्य पुराण का कथन है कि माघ मास की पूर्णिमा में जो व्यक्ति ब्राह्मण को दान करता है, उसे ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है। इस दिन किए गए यज्ञ, तप तथा दान का विशेष महत्व होता है। स्नान आदि से निवृत होकर भगवान विष्णु की पूजा कि जाती है, गरीबो को भोजन, वस्त्र, गुड, कपास, घी, लड्डु, फल, अन्न आदि का दान करना पुण्यदायक होता है.

इस दिन व्रत-उपवास के साथ ही सत्यनारायण कथा और दान-पुण्य को अति फलदायी माना गया है। शास्त्रों के अनुसार माघ के महीने में किसी भी नदी के जल में स्नान को गंगा स्नान करने के समान माना गया है। इस समय 'ऊँ नमो भगवते नन्दपुत्रायÓ, 'ऊँ नमो भगवते गोविन्दायÓ, 'ऊँ कृष्णाय गोविन्दाय नमो नम: मंत्र ध्यान के बाद भगवान सत्यनारायण की कथा व आरती करें। मान्यता है कि इस व्रत को करने से वर्ष भर रविवार व्रत करने का पुण्य प्राप्त होता है।

इस दिन शिव पूजा-उपासना का भी विशेष महात्म्य माना गया है। इस दिन भगवान शंकर की पूजा विशेष मंत्र से शहद स्नान के पश्चात शिवलिंग को एक पात्र में गंगा जल व दूध मिले पवित्र जल से स्नान कराएं।

शहद की धारा शिवलिंग पर यह मंत्र बोलते हुए करने से पाप नाश व समृद्धि की प्राप्ति होती है। मंत्र-

'दिव्यै: पुष्पै: समुद्भूतं सर्वगुणसमन्वितम्। मधुरं मधुनामाढ्यं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्Ó।।

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