परिवर्तन को स्वीकार करें और निरंतर गतिमान रहें ।

जब व्यक्ति को बुखार आ जाता है, वो हल्के फुल्के फीवर में होता है तो डॉक्टर के पास में पहुंचता है, और कुछ टेबलेट्स आदि लेता है और उसके बाद में ही कुछ दिनों में ही बुखार में फर्क पड़ जाता है, वो रुटिन में आ जाता है। किन्तु यदि वो बुखार उतरे नहीं तो कुछ दिनों बाद में ही वापस डॉक्टर के पास जाना होता है, फिर सारी जांचें आदि करवाई जाती है। कहीं शायद कोई और रोग का संकेत तो नहीं है। बॉडी एक तरह से फीवर के रूप से संकेत देती है कि भीतर कुछ गलत है जिसको सुधारने की आवश्यकता है, भले ही बाहरी प्रक्रिया के द्वारा हो या आंतरिक प्रक्रिया में है। ये एक संकेत है। 

वहीं हम सड़क पर चल रहे हैं वहां काफी साइन बोर्ड लगे होते हैं जो बताते हैं किसी ओर जाना है, आप अपने गंतव्य की ओर कैसे पहुंच सकते हैं, कौन-कौन से रास्ता अपनाकर। वहीं आप गाड़ी चलाते हैं तो यदि कोई भी ऐसी आवाज सुनाई देने लगती है तो उसको भी हम संकेत समझते हैं। आप देखियेगा, जो स्पीड का मीटर होता है वहां पर भी एक इशारा है इकोनीमी का होता है तो फ्यूल एफेंसियेंसी बराबर रहेगी आगे निकलेंगे तो लाल संकेत होता है वहां गाड़ी चलाने से बचना चाहिए। एक लौ ईंधन के अंतिम प्रवास के साथ होती है तो वो भी फडफ़ड़ाती है और बताती है कि यहां से र्इंधन का साधन समाप्ति की ओर अग्रसर है। प्रत्येक स्तर पर ऐसे ही संकेत देने वाला होता है। आप नौकरी पेशा जीवन में चल रहे हैं, लग रहा है कि कुछ गलत है, उस गलत स्थिति के साथ में भी आप अपनी इग्नोरेंस को लिए हुए हैं तो कई बार खुद के लिए दुविधा को क्रियेट करने वाले हो जाते हैं। 

व्यापारिक जीवन में एक समय आपके कामकाज में चर्मोत्कर्ष का था, अब वो मध्यम गति का आने लगा है। लोग दूसरी ओर डाइवर्ट होने लगे हैं, ये एक संकेत है जिसको समय पर पहचानने की आवश्यकता है कि हमको किन-किन परिवर्तन के साथ अब आगे बढऩा होगा जिससे कि इस कामकाज में वो ही गति बनी रहे। भले ही तकनीक का परिवर्तन हो, सामग्री का आधार हो या अपने व्यावहारिक स्तर पर परिवर्तन हो। परिवर्तन से पहले संकेत मिलते हैं कि अब आपको इस ओर जाना चाहिए। और जब व्यक्ति उनको थाम लेता है तो कहीं-न-कहीं स्वयं के जीवन के अंदर दुविधाओं का वो आधार नहीं लेकर आता है। स्वास्थ्य हो, नौकरी हो, जीवन में पति-पत्नी का संबंध हो, वहां पर ऐसे मनमुटाव के छोटे छोटे संकेत मिलते हैं, जिनको रिपेयर करने की, सुधारने की आवश्यकता रहती है। अन्यथा स्थितियां कहीं-न-कहीं दुविधाओं का आधार अपनाती है और व्यक्ति के जीवन में परेशानियां आने लगती है। इसी वजह से प्रो एक्टिव रहते हुए जब भी संकेतों को स्वीकार कर लेता है तो वहां ज्यादा परेशानियां नहीं आती है। जीवन में संकेतों को समझने की आवश्यकता। वहीं दशाएं परिवर्तन होती है वो भी ऐसे ही संकेत देने वाली होती है कि अब इस परिवर्तन के साथ जीवन बढ़ेगा आप उसे स्वीकारें और निरन्तर गतिमान रहिये।

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