ग्रहीय व्यवस्था में अस्तगत स्थितियों के प्रभाव ।

हाल ही में जब 17 जनवरी, 2021 को देव गुरु वृहस्पति अस्तगत हुए तो उसकी चर्चाएं चारों ओर रही। इस बात को मुझसे पूछा भी गया और मैं स्वयं भी ये आपके  सम्मुख रखना चाह रहा था। इस नव ग्रहीय व्यवस्था में अस्तगत स्थितियां होती है, इसका आधार कैसे होता है और क्या प्रभाव आते हैं। सबसे पहले यह समझें कि इन नौ ग्रहों में दो प्रकाश ग्रह हैं, सूर्य देव और चन्द्रमा। जिनकी रिफलेक्शन को अच्छे से देख पाते हैं। वहीं सूर्य आत्मा के कारकाधिपति भी है। इसके अलावा राहू और केतु छाया ग्रह हैं। सबस्टेन्सियल पार्ट में इनका असर नहीं है किन्तु अंतरचेतनाओं को प्रभावित करते हैं। इसके अलावा पांच ग्रह मंगल, बुध, वृहस्पति और शनि देव की स्थितियां हैं वो तारा ग्रहों के रूप में सामने आती है। आप अगर व्यावहारिक स्तर पर भी देखते हैं तो जब सूर्य देव उदित हो जाते हैं तो जितने भी तारे हैं उनका प्रकाशमान होना या टिमटिमाना नहीं होता क्योंकि वो सूर्य देव के आवरणीय प्रभाव क्षेत्र में आ चुके होते हैं। तो जब भी कोई ऐसा ग्रह जिसका प्रभाव मानवीय जीवन के ऊपर बहुत गहरे से है वो अस्तगत स्थितियों पर आ जाए, ऐसी स्थितियों में आ जाए तो उसका प्रभाव थोड़ा सा कम हो जाता है। 

17 जनवरी से लेकर 13 फरवरी तक का समय अंतराल रहेगा जब देव गुरु वृहस्पति अस्तगत स्थितियों में रहेंगे और इनके पास सबसे अधिक कारकत्व की स्थितियां साथ में रहती है। भले ही धन लाभ हो, संचय की प्रवृति हो, वहीं शिक्षा हो ज्ञान के साथ चल रहा आधार हो, कर्म हो, कर्म के साथ जुड़ा भाग्य हो, भाग्य के साथ जुड़ा हुआ कर्म के रूप में चल रहा लाभ हो। इन सारी स्थितियों में कहीं-न-कहीं एक अलग तरीके का नेगेटिव इम्पेक्ट आने लगता है। जैसे ही ये ग्रह सूर्य देव के आवरणीय क्षेत्र के अंदर आएंगे, आप देखें सूर्य देव मकरस्थ प्रवेश किए तो उसी समय देव गुरु वृहस्पति की स्थितियां अस्तगत हो गई। प्रश्न यह उठता है कि शनि देव मकर में ही चलायमान है तो शनि देव पहले ही अस्तगत स्थितियों में कैसे आ गए? जब सूर्य देव मकर में प्रवेश ही नहीं किए थे। इसके पीछे वजह यह है कि कोई भी ग्रह ऐसे प्रकाश ग्रह का आवरण है वो पहले से फैलने लगता है। 

जब भी सूर्योदय नहीं होता है उसके कुछ मिनटों पहले ही एक रोशनी चारों ओर दिखने लगती है और ये महसूस होने लगता है कि अब सूर्योदय होने वाला है यानि की सुबह होने वाली है। यही एक स्थिति है उनका आवरण यानि कि प्रथम प्रकाश ग्रह का पहले चलायमान होता है। इसी वजह से आवरण में आने की वजह से शनि देव पहले अस्तगत हुए उसके बाद देव गुरु वृहस्पति की एप्रोच अस्तगत स्थितियों में चलायमान रहेगी। यहां व्यक्ति को अपनी ऊर्जा का संचल अलग तरीके से करना होता है। भीतर किसी भी विषय को लेकर ऊहापोह महसूस करते हैं और वहां पर स्वयं को किसी निर्णय के लिए बाध्य कर देते हैं, रुकने की आवश्यकता होती है, ठहरने की दरकार होती है। ऐसी स्थितियों में अपने भीतर के आवरण है, अनुभव है उसको साथ लेकर चलने का प्रयास करना चाहिए जिससे कि अस्तगत प्रभाव है, इसमें थोड़ी न्यूनता जुड़ी हुई है वो कम हो पाती है और हम जीवन दर्शन को आसानी से देख पाते हैं। सूर्य देव का आवरणीय प्रभाव क्षेत्र ही ऐसा है और आप इसको अगर आध्यात्मिक दृष्टिकोण से देखना चाहते हैं तो आत्मा के ऊपर किसी भी तरीके की परत नहीं होती वो अक्षुण्ण होती है। इसी वजह से सूर्य देव आत्मा के कारकाधिपति भी हैं और जब आत्मा पूरे तरीके से प्रकाशमान है तो व्यक्ति के जीवन में आ रही बाधाएं कहीं पर भी परेशान नहीं करती।

Comments

  1. सटीक जानकारी, गागर में सागर सा प्रतीत हुआ 🙏

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