सफलता और नएपन का आधार ।

 हम स्वयं की सोच के साथ, स्वयं के कामकाज के साथ कितने प्रयोग करते हैं यहीं से सफलता और नयेपन का आधार चिन्हित हो पाता है। व्यक्ति वर्षों से एक ही एक कार्य कर रहा है और वहां किसी भी तरीके का प्रयोग भी किया तो पिछडऩे लगता है। कोई नया व्यक्ति आता है जिसकी उम्र 20-25 की है और नई सोच लाया है। और आप 25 वर्षों के अनुभव के साथ चल रहे हैं, किन्तु कामकाज को एक ही तरीके से करते रहे, उसमें बहुत अच्छे से एक्सपर्टीज हासिल कर ली। वहीं से किसी को शिकायत नहीं थी। उस काम में पांच घंटे लग रहे थे, किन्तु नया व्यक्ति नया सीखकर आता है, प्रयोग में हिचकिचाहट नहीं है जैसे ही प्रवेश करता है आपके कामकाज की अवधि को तीन घंटे के साथ में पूर्ण करने वाला हो जाता है। वहीं से हम संकुचित होने लगते हैं, एक दबाव महसूस करने लगते हैं। 

जो भी व्यक्ति आएगा अपडेट होकर आएगा और नए प्रयोगों के साथ में आने वाला होगा। वहीं पर हमारे भीतर की जो स्थितियां हैं, वो प्रयोगों को कम से कम आधार के साथ में स्वीकार करने वाली होती है। इसी वजह से जो भी कार्य कर रहे हैं वहां रिफाइन प्रोसेस के साथ खुद को यह भी कहना चाहिए कि क्या ये कार्य इस तरह करके देखे जा सकता है, संभावनाओं को तलाशा जा सकता है, क्या कम्युनिकेट कर रहा हूं, इस शब्द को कहने से हिचकिचाता हूं, एक शुरुआत तो करूं, एक नएपन की शुरुआत भीतर होने लगेगी। आप एक रुटिन के साथ चल रहे हैं, खुद को इस तरह ढाल लिया है कि हम यही कहते हैं सात बजे से पहले उठना संभव नहीं हो पाता, मैं कोशिश तो करूं यह भी बड़ा प्रयोग है। हम कहते हैं कि बचपन को देखते हुए जैसे इस बच्चे को जैसा ढालोगे वैसे ही इसका जीवन चलने वाला होगा। स्वयं को यह क्यों नहीं कहते कि एक समय के बाद मुझे भी खुद को बारम्बार ढालने की ओर नएपन के साथ जाना होगा और जब ऐसी अनुगूंज मन के भीतर आने लगती है यकीन मानिये आप प्रत्येक क्षण एक नएपन के साथ में होते हैं। 

शब्दों में नयापन, शब्दों में प्रयोग की स्थितियां, कामकाज के अंदर कुछ नया सीखना और वहां पर प्रयोग करना और वहां एक्सपेक्टेशन के रास्ते हैं उनको खुद की तरफ मोड़कर रख देना जब भी नएपन के साथ में हो उसकी एक्सपेक्टेशन टीम के साथ जुड़ी होती है कि वो किस तरह से कार्य कर रही है। किन्तु आप उन सारी ही संभावनाओं को पहले खुद के साथ जोड़कर देखिये और जब इस प्रयोग की ओर जाते हैं तो लोग अपने आप ही हमारे साथ में जुडऩे वाले हो जाते हैं। इसमें किसी भी तरीके की नकारात्मकता नहीं रहती है। और आप खुद को इस तरह से एक सांचे में निरन्तर ढालते रहते हैं जैसी दुनिया की आवश्यकता है उसी हिसाब के हम प्रयोग कर रहे हैं। उस नएपन के साथ में जीवन को सफलता के आयाम भी दे रहे हैं। 50 वर्ष की उम्र, 55 वर्ष की उम्र हो, 75 वर्ष की उम्र हो, प्रकृति के साथ में और दुनिया के बदलाव के साथ प्रयोग करते चले जाएं, सहज स्वीकारोक्ति बने रहे, तो हम कहीं पर ठहरते नहीं है और लोग भी बातचीत में हिचकिचाने वाले नहीं होते। 

एक बीस वर्ष का व्यक्ति भी खुद को ब्लाक कर सकता है और एक 75 वर्ष का व्यक्ति खुद को ब्लाक नहीं करे, ऐसी ताकत रख सकता है। ऐसी सारी प्रवृतियों के साथ चलना ही जनमानस के भीतर स्वयं के लिए नई चेतना के आधार के साथ में होता है तो प्रयोग करते रहें, निरन्तर करते रहिये और वहीं से नएपन के साथ में चलने की कोशिश करना ही जीवन का एक नया नाम है।

Comments

  1. आपके विचार तो लाजवाब होते हैं।

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