प्रशंसा और आलोचना दोनों ही जीवन को संवारती है ।

प्रशंसाएं और आलोचनाएं दोनों ही जीवन को बनाती है, संवारती है और निखारती है। किन्तु मानवीय स्वभाव ही ऐसा है कि वह दोनों ही जगह संकुचित हो जाता है। जब कोई प्रशंसा भी कर रहा है तो वो कहता है कि इन शब्दों को रहने दीजिये, आप तो जबरदस्ती की तारीफ कर रहे हैं, जबकि वह आपके ही गुणों से परिचित करवा रहा है। आप अनुशासित हैं, वो व्यक्ति आपसे प्रभावित है। आप मृदुभाषिता के साथ चलते हैं कोई व्यक्ति उससे प्रभावित है, वहीं पर किसी कामकाज में गलतियां हो रही है तो आलोचना भी उसका एक सिरा होता है। जब भी कोई व्यक्ति एक स्तर पर होता है लोग उसकी गलतियों को निकालते हैं, बार-बार ये कहते हैं कि आप इस तरह से इस कार्य को पूरा कीजिये। यहां ऐसे कार्य करना चाहिए। वो चाहे तो यह कह सकता है कि क्या आप कहां पहुंचे हैं, आप किस स्तर पर है, किन्तु वो व्यक्ति सहज स्वीरोक्ति के साथ आलोचनाओं को लेकर चलता है खुद को रिफाइन करता चला जाता है तो व्यक्तित्व को पोजिटिव डिफिनेशन देने वाला होता है। 

हम हमेशा इस बात को स्मृतियों में रखें अगला व्यक्ति हमारे बारे में कुछ कह रहा है तो हम बहुत अच्छे से और तल्लीनता से बात को सुनने वाले होंगे। आपने किसी कार्य को अच्छे से किया तो वहां गुणों की प्रतिध्वनित सामने आ रही है। खामियां रही तब भी लोग सीखाते हैं। दोनों अवसर सामने होते हैं। किन्तु जैसे-जैसे हम संकुचित होते हैं, रियेक्टिव होते हैं या बात को सुनना पसंद ही नहीं करते तो वहीं से स्वयं से निखार का एक तरह से लेवल आना चाहिए उसमें कमी आने लगती है। इसी वजह से जीवन निरन्तर ये प्रयास करता रहे कि भले ही प्रशंसा मिले, आलोचना या नया सीखने को मिले, हम इतना खुद को एक्सप्लोर करने की एप्रोच में हों। इतनी सहज स्वीकारोक्ति के साथ चल रहे हों कि बहुत ज्यादा हमको परेशानियां अनुभव नहीं हो। और यही आप देखिये, धीरे-धीरे यही प्रोसेस व्यक्ति के अंदर एक और अलग लेवल लेकर आता है। वो कैसे? आप जब ऐसी स्थितियों में सहज रहते हैं, भले ही प्रशंसा हो या आलोचना। 

जब भी कोई कठिन परिस्थिति आती है, भीतर का प्रोसेस इतना आसान और सरल हो चुका है कि जो भी आएगा हम सीधा समाधान की ओर ही जाने वाले होंगे। बार-बार वहां संकुचित होकर खुद को परेशान नहीं करेंगे। व्यक्तित्व का यह सार्वभौमिक गुण है जिसको स्वीकार करके चलना जीवन में आनंद देने वाला होता है। वहीं से हम प्रत्येक बात में न तो क्रोधित होते हैं और न ही खुद को बहुत ज्यादा संकुचित करने वाले होते हैं।

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